अध्याय-4
कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान अर्थशास्त्र अध्याय-4
वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था
वैश्वीकरण:-
विभिन्न देशों के बीच परस्पर संबंध और तीव्र एकीकरण की प्रक्रिया को ही वैश्वीकरण के नाम से जाना जाता है।
वैश्वीकरण का शाब्दिक अर्थ स्थानीय या क्षेत्रीय वस्तुओं या घटनाओं के विश्व स्तर पर रूपांतरण की प्रक्रिया है। इसे एक ऐसी प्रक्रिया का वर्णन करने के लिए भी प्रयुक्त किया जा सकता है जिसके द्वारा पूरे विश्व के लोग मिलकर एक समाज बनाते हैं तथा एक साथ कार्य करते हैं। यह प्रक्रिया आर्थिक, तकनीकी, सामाजिक और राजनीतिक ताकतों का एक संयोजन है।वैश्वीकरण का उपयोग अक्सर आर्थिक वैश्वीकरण के सन्दर्भ में किया जाता है, अर्थात व्यापार, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश, पूँजी प्रवाह, प्रवास और प्रौद्योगिकी के प्रसार के माध्यम से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का अन्तरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं में एकीकरण।
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टॉम जी काटो संस्थान (Cato Institute) के पामर (Tom G. Palmer) “वैश्वीकरण” को निम्न रूप में परिभाषित करते हैं” सीमाओं के पार विनिमय पर राज्य प्रतिबन्धों का ह्रास या विलोपन और इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न हुआ उत्पादन और विनिमय का तीव्र एकीकृत और जटिल विश्व स्तरीय तन्त्र।”यह अर्थशास्त्रियों के द्वारा दी गई सामान्य परिभाषा है, अक्सर श्रम विभाजन (division of labor) के विश्व स्तरीय विस्तार के रूप में अधिक साधारण रूप से परिभाषित की जाती है।
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आर्थिक वैश्वीकरण ने दुनिया भर की विभिन्न संस्कृतियों के एकीकरण पर प्रभाव डाला है। यहाँ यूनाइटेड किंगडममें एक इस्पात संयन्त्र दिखाया गया है जिसकी मालिक भारतकी एक कम्पनी टाटा समूहहै।
थामस एल फ्राइडमैन (Thomas L. Friedman) “दुनिया के ‘सपाट’ होने के प्रभाव की जांच करता है” और तर्क देता है कि वैश्वीकृत व्यापार (globalized trade), आउटसोर्सिंग (outsourcing), आपूर्ति के शृंखलन (supply-chaining) और राजनीतिक बलों ने दुनिया को, बेहतर और बदतर, दोनों रूपों में स्थायी रूप से बदल दिया है। वे यह तर्क भी देते हैं कि वैश्वीकरण की गति बढ़ रही है और व्यापार संगठन तथा कार्यप्रणाली पर इसका प्रभाव बढ़ता ही जाएगा।
नोअम चोमस्की का तर्क है कि सैद्वांतिक रूप में वैश्वीकरण शब्द का उपयोग, आर्थिक वैश्वीकरण (economic globalization) के नव उदार रूप का वर्णन करने में किया जाता है।
हर्मन ई. डेली (Herman E. Daly) का तर्क है कि कभी कभी अंतर्राष्ट्रीयकरण और वैश्वीकरण शब्दों का उपयोग एक दूसरे के स्थान पर किया जाता है लेकिन औपचारिक रूप से इनमें मामूली अंतर है। शब्द “अन्तरराष्ट्रीयकरण” शब्द का उपयोग अन्तरराष्ट्रीय व्यापार, सम्बन्ध और सन्धियों आदि के महत्व को प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है। अन्तरराष्ट्रीय का अर्थ है राष्ट्रों के बीच।
“वैश्वीकरण” का अर्थ है आर्थिक प्रयोजनों के लिए राष्ट्रीय सीमाओं का विलोपन, अन्तरराष्ट्रीय व्यापार तुलनात्मक लाभ (comparative advantage) द्वारा शासित), अन्तर क्षेत्रीय व्यापार पूर्ण लाभ (absolute advantage) द्वारा शासित) बन जाता है।
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उदारीकरण:-
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निजीकरण:-
सार्वजनिक क्षेत्रों की कंपनियों को चरणाबद्ध तरीके से निजी क्षेत्र में बेचना निजीकरण कहलाता है।
निजीकरण व्यवसाय, उद्यम, एजेंसी या सार्वजनिक सेवा के स्वामित्व के सार्वजनिक क्षेत्र (राज्य या सरकार) से निजी क्षेत्र (निजी लाभ के लिए संचालित व्यवसाय) या निजी गैर-लाभ संगठनों के पास स्थानांतरित होने की घटना या प्रक्रिया है। एक व्यापक अर्थ में, निजीकरण राजस्व संग्रहण तथा कानून प्रवर्तन जैसे सरकारी प्रकार्यों सहित, सरकारी प्रकार्यों के निजी क्षेत्र में स्थानांतरण को संदर्भित करता है।
शब्द “निजीकरण” का दो असंबंधित लेनदेनों के वर्णन के लिए भी उपयोग किया गया है। पहला खरीद है, जैसे किसी सार्वजनिक निगम या स्वामित्व वाली कंपनी के स्टॉक के सभी शेयर बहुमत वाली कंपनी द्वारा खरीदा जाना, सार्वजनिक रूप से कारोबार वाले स्टॉक का निजीकरण है, जिसे प्रायः निजी इक्विटी भी कहते हैं। दूसरा है एक पारस्परिक संगठन या सहकारी संघ का पारस्परिक समझौता रद्द कर के एक संयुक्त स्टॉक कंपनी बनाना.
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बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ:-
बहुराष्ट्रीय कंपनी एक से अधिक देशों में उत्पादन पर नियंत्रण व स्वामित्व रखती है।
बहुराष्ट्रीय कंपनियों से लाभ:-
- विभिन्न देशों में उत्पादन का विस्तार होने से बहुराष्ट्रीय कंपनियों को सस्ती कीमतों पर सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले संसाधन प्राप्त होते हैं, जिससे उनका लाभ अत्यधिक बढ़ जाता है।
- उत्पादन के विस्तार से बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अविकसित देशों में रोजगार के अवसर उत्पन्न करती हैं।
विदेशी व्यापार:-
विदेशी व्यापार एक माध्यम है, जो अपने देश के बाजारों से बाहर के बाजारों में पहुँचने के लिए उत्पादकों को एक अवसर प्रदान करता है।
निवेश:-
परिसंपत्तियों जैसे- भूमि, भवन, मशीन और अन्य उपकरणों की खरीद में व्यय की गई मुद्रा को निवेश कहते है।
विदेशी निवेश:-
बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा किए गए निवेश को विदेशी निवेश कहते है।
विदेशी व्यापार और विदेशी निवेश में अंतर:-
- विदेशी व्यापार:-
- विदेशों से वस्तुओं को खरीदने और बेचने को विदेशी व्यापार कहते हैं।
- इसके अन्तर्गत आयात और निर्यात की दोनों प्रक्रियाएँ शामिल होती हैं।
- यह उत्पादन के लिये अवसर प्रदान करता है।
- विदेशी निवेश:-
- अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से जब बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ मेजबान देश में धन से उत्पादन इकाई की स्थापना करती है, उसे विदेशी निवेश कहते हैं।
- विदेशी निवेश में बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा किया गया पूँजी निवेश आता है।
- यह पूँजी की कमी को दूर करता है।
बहुराष्ट्रीय कंपनियो का उत्पादन पर नियंत्रण करने की विधियाँ:-
- संयुक्त उपक्रम विधि।
- स्थानीय कम्पनियों को खरीदना।
- छोटे उत्पादकों से माल खरीदना।
- अपने ब्रांड का इस्तेमाल करके।
विदेश व्यापार कैसे बाजारों का एकीकरण करता है ?
- विदेश व्यापार उत्पादकों को अपने देश के बाजार से बाहर के बाजारों में पहुँचने का अवसर प्रदान करता है।
- देशों के मध्य माल और सेवाओं के आवागमन की सुविधा।
- घरेलू बाजारों अर्थात् अपने देश के बाजारों से बाहर के बाजारों में पहुँचने के लिए उत्पादकों को एक अवसर प्रदान करना।
- बाजार में ग्राहकों के लिए वस्तुओं के विकल्प बढ़ जाते हैं।
- बाजार में नई प्रौद्योगिकी और विचारों को बढ़ावा मिलता है।
- उत्पादकों में बढ़ती हुई प्रतिस्पर्द्धा से ग्राहकों को वस्तुओं और सेवाओं की बेहतर गुणवत्ता प्राप्त होती है।
वैश्वीकरण को संभव बनाने वाले कारक:-
- प्रौद्योगिकी का विकास
- परिवहन में सुधार
- सूचना प्रौधोगिकी
- दूरसंचार एवं संचार उपग्रह
- सरकार द्वारा अवरोधों की समाप्ति
- इंटरनेट
व्यापार अवरोधक:-
- सरकार द्वारा माल या सेवाओं के अंतर्राष्ट्रीय आदान – प्रदान पर प्रतिबंध लगाना व्यापार अवरोधक कहलाता है। आयात पर कर ( आयात शुल्क ) व्यापार अवरोधक का एक उदाहरण है।
- इसे अवरोधक इसलिए कहा गया है, क्योंकि यह कुछ प्रतिबंध लगाता है। सरकार व्यापार अवरोधक का प्रयोग विदेशी व्यापार में नियमन हेतु करती है।
स्वतंत्रता के पश्चात भारत सरकार द्वारा विदेश व्यापार और विदेशी विनिमय पर अवरोधक लगाने के के कारण:-
- विदेशी प्रतिस्पर्धा से देश के उत्पादकों की रक्षा करना।
- स्वतंत्रता से पहले अंग्रेजो ने भारतीय उद्योग धन्धों को चौपट कर दिया था। स्वतंत्रता के बाद यहाँ भारतीय उद्योग स्थापित किए गए। उद्योगों के विकास के लिए विदेशी व्यापार पर रोक आवश्यक थी।
- स्वतंत्रता के बाद भारत 562 टुकड़ों में बंटा हुआ था। यहाँ परिवहन तथा संचार के साधन अस्त व्यस्त थे।
- स्वतंत्रता के शुरूआती वर्षों में भारत के वैदेशिक संबंध इतने सुदृढ़ नहीं बन पाए थे कि विश्व के अन्य देशों के साथ व्यापार विकसित हो सके।
मुक्त व्यापार:-
जब दो देशों के बीच व्यापार बिना किसी प्रतिबंध के होता है तो उसे मुक्त व्यापार कहते हैं।
विदेशी व्यापार तथा विदेशी निवेश का उदारीकरण:-
- 1991 के शुरूआत से विदेशी व्यापार तथा विदेशी विनेश पर से अवरोधों को काफी हद तक हटा दिया गया।
- वस्तुओं का आयात निर्यात सुगमता से किया जा सकता था।
- विदेशी कंपनियाँ आसानी से यहाँ अपने कार्यलय और कारखाने स्थापित कर सकती थी।
विश्व व्यापार संगठन:-
- विश्व व्यापार संगठन ( डब्लू . टी . ओ . ) एक ऐसा संगठन है जिसका उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को उदार बनाना और मुक्त व्यापार की सुविधा देना है।
कार्य:- इसका मुख्य कार्य यह सुनिश्चित करना है कि व्यापार आसानी से, अनुमानित रूप से और जितना संभव हो उतना स्वतंत्र रूप से हो।
- विश्व के लगभग 160 देश विश्व व्यापार संगठन के सदस्य हैं।
- इसने भारत के विदेशी व्यापार और निवेश के उदारीकरण का समर्थन किया है।
विश्व व्यापार संगठन का मुख्य उद्धेश्य:-
- विदेशी व्यापार को उदार बनाना।
- विकसित देशों की पहल पर शुरू किया गया।
- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से संबंधित नियमों को निर्धारित करता है।
- विकासशील देशों को व्यापार अवरोधक हटाने के लिए विवश करता है।
- विकसित देशों ने अनुचित ढंग से व्यापार अवरोधकों को बरकरार रखा है।
किन कारणों से भारत में आर्थिक सुधार की आवश्यकता पड़ी:-
- राजकोषीय घाटे में वृद्धि।
- प्रतिकूल भुगतान संतुलन में वृद्धि।
- विदेशी मुद्रा भंडार में कमी।
- कीमतों में वृद्धि।
- भारतीय कंपनियों को तैयार करना।
वैश्वीकरण का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:-
- वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप उत्पादकों ( स्थानीय और विदेशी दोनों ) के बीच अधिक प्रतिस्पर्द्धा से उपभोक्ताओं, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में समृद्ध वर्ग को लाभ पहुँचता है। यह बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पादों और कम कीमतों के साथ बेहतर विकल्प देता है।
- बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारत में अपने निवेश में वृद्धि की है ; जैसे:- सेल फोन, मोटरगाड़ियाँ, इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, ठंडे पेय पदार्थ, जंक खाद्य पदार्थों एवं बैंकिंग जैसी सेवाओं में निवेश इत्यादि।
- उद्योगों और सेवाओं में नए रोजगार उत्पन्न हुए हैं, साथ ही इन उद्योगों को कच्चे माल इत्यादि की आपूर्ति करने वाली स्थानीय कंपनियाँ समृद्ध हुईं।
- वैश्वीकरण नई और उन्नत तकनीक को लाता है, जिसके द्वारा स्थानीय कंपनियों को भी लाभ मिलता है।
वैश्वीकरण का लोगों के जीवन पर पड़े प्रभाव:-
- उपभोक्ताओं के सामने पहले से अधिक विकल्प हैं।
- उपभोक्तओं को कम कीमत पर अधिक गुणवत्ता वाले उत्पाद उपलब्ध हो रहे हैं।
- लोग पहले की तुलना में आज उच्चतर जीवन स्तर का मजा ले रहे हैं।
- उद्योगों और सेवाओं में नये रोज़गार उत्पन्न हुए हैं।
- उद्योगों को कच्चे माल इत्यादि की आपूर्ति करने वाली स्थानीय कंपनियाँ समृद्ध हुई हैं।
विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए उठाए गए कदम:-
- विशेष आर्थिक क्षेत्र की स्थापना की जा रही है।
- विशेष आर्थिक क्षेत्रों में विश्व स्तरीय सुविधाएँ, बिजली, पानी, सड़क, परिवहन, भण्डारण, मनोरंजन और शैक्षिक सुविधाएँ उपलब्ध कराई जा रही हैं।
- विशेष आर्थिक क्षेत्र में उत्पादन इकाइयाँ स्थापित करने वाली कंपनियों को आरंभिक पाँच वर्षों तक कोई कर नहीं देना पड़ता है।
- विदेशी निवेश आकर्षित करने हेतु सरकार ने श्रम कानूनों में लचीलापन लाने की अनुमति दे दी है।
- नियमित आधार पर श्रमिकों को रोजगार देने के बजाय, जब काम का दवाब अधिक हो, छोटी अवधि के लिए श्रमिकों को रखने की छूट।
- आर्थिक नीतियों को उदार बनाया जा रहा है।
सेज ( SEZ ):-
किसी विशेष क्षेत्र में अतिरिक्त सुविधाएँ प्रदान कर विदेशी कंपनियों को निवेश के लिए आकर्षित करता।
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वैश्वीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने में प्रौद्योगिकी की भूमिका:-
- परिवहन तकनीक में कई सुधारों ने दूर – दूर के स्थानों पर कम लागत पर वस्तुओं को भेजना संभव बनाया है।
- सूचना प्रोद्यौगिकी में सुधार से विभिन्न देश आपस में जुड़कर तुरंत सूचना प्राप्त कर लेते हैं।
- इंटरनेट टैक्नालॉजी से व्यापार में गति आई है।
वैश्वीकरण के कारण प्रतिस्पर्धा के कुप्रभाव:-
- प्रतिस्पर्धा के कारण छोटे उद्योगों जैसे बैटरी, प्लास्टिक, खिलौने, टायरों आदि के उत्पादकों पर बुरा प्रभाव पड़ा।
- फलस्वरूप काफी इकाइयाँ बंद हो गईं।
- श्रमिकों की बेरोज़गारी में वृद्धि।
- श्रमिकों को अस्थाई आधार पर नियुक्त किया गया।
- श्रमिकों को संरक्षण और लाभ नहीं मिल रहा।
- श्रमिकों का अधिक घंटों तक काम करना आम बात हो गई।
उदारीकरण तथा वैश्वीकरण की नीति अपनाने के फलस्वरूप भारत में आए मुख्य परिवर्तन:-
- उदारीकरण तथा वैश्वीकरण की नीति अपनाने के फलस्वरूप निजी निवेश बढ़ने का अधिक अवसर मिला।
- विदेशी विनिमय कोष ( भंडार ) बढ़ गया।
- आई टी उद्योग का विस्तार हुआ।
- सरकारी राजस्व में वृद्धि।
न्याय संगत वैश्वीकरण के लिए प्रयास:-
- न्याय संगत वैश्वीकरण सभी के लिए अवसर प्रदान करेगा।
- सरकार की नीतियाँ सबको सरंक्षण प्रदान करने वाली होनी चाहिए।
- सरकार सुनिश्चित कर सकती है कि श्रमिक कानूनों का उचित कार्यान्वयन हो और श्रमिकों को उनके अधिकार मिलें।
- सरकार न्यायसंगत नियमों के लिए विश्व व्यापार संगठन से समझौते कर सकती है।
- समान हित वाले विकासशील देशों से गठबंधन कर सकती है।
वैश्वीकरण को न्यायसंगत बनाने के लिए सरकार की भूमिका:-
- वैश्वीकरण की नई नीति के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व अर्थव्यवस्था से जोड़ने का प्रयत्न किया गया ताकि पूँजी, तकनीकी ज्ञान और अनुभव का विश्व के विभिन्न देशों से आदान – प्रदान हो सके।
- सरकार ने माल के आयात पर से अनेक प्रतिबन्ध हटा दिए।
- आयातित माल पर कर, कम कर दिए।
- विदेशी निवेशकों को भारत में निवेश के लिए प्रोत्साहन दिया गया।
- तकनीकी क्षेत्र को हर ढंग से उन्नत करने का प्रयत्न किया गया।