अध्याय-3
कक्षा 11 Art राजनीति विज्ञान अध्याय-3
समानता
समानता का अर्थ:-
समानता का अर्थ है कि सभी मनुष्य सभी पहलुओं में समान हैं क्योंकि वे एक इंसान के रूप में जन्म से समान हैं। और सभी को समाज में समान रूप से शिक्षित, धनी और समान दर्जा प्राप्त होना चाहिए।
समानता:-
समानता मौलिक अधिकारों में अत्यंत महत्वपूर्ण अधिकार है। समानता का दावा है कि समान मानवता के कारण सभी मनुष्य समान महत्व और सम्मान के अधिकारी है। यही धारणा सार्वभौमिक मानवाधिकार की जनक है।
अनेक देशों के कानूनों में समानता को शामिल किए जाने के बावजूद भी समाज में धन, सम्पदा, अवसर, कार्य, स्थिति व शक्ति की भारी असमानता नजर आती हैं।
समानता के अनुसार, व्यक्ति को प्राप्त अवसर या व्यवहार, जन्म या सामाजिक परिस्थितियों से निर्धारित नहीं होने चाहिए।
प्राकृतिक असमानताएं लोगों में उनकी विभिन्न क्षमताओं और प्रतिभाओं के कारण तथा समाज जनित असमानताएं अवसरों की असमानता व शोषण से पैदा होती है।
समानता का सकारात्मक पहलु:-
समानता के सकारात्मक पहलुओं से तात्पर्य है अपनी क्षमता विकसित करने के लिए पर्याप्त अवसर देना और समाज के कुछ वर्गों को दिए जाने वाले विशेष विशेषाधिकार को समाप्त करना।
समानता के तीन आयाम:-
- राजनीतिक समानता:-
सभी नागरिकों को समान नागरिकता प्रदान करना राजनीतिक समानता में शामिल है। समान नागरिकता अपने साथ मतदान का अधिकार संगठन बनाने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आदि का अधिकार भी लाती है।
- आर्थिक समानता:-
आर्थिक समानता का लक्ष्य धनी व निर्धन समूहों के बीच की खाई को कम करना है यह सही है कि किसी भी समाज में धन या आमदनी की पूरी समानता शायद कभी विद्यमान नहीं रही किंतु लोकतांत्रिक राज्य समान अवसर की उपलब्धि कराकर व्यक्ति को अपनी हालत सुधारने की मौका देती हैं।
- समाजिक समानता:-
राजनीतिक समानता व समान अधिकार देना इस लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में पहला कदम था साथ ही समाज में सभी लोगों के जीवनयापन के लिये अनिवार्य – चीजों के साथ पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधा, शिक्षा, पोषक आहार व न्यूनतम वेतन की गारण्टी को भी जरूरी माना गया है। समाज के वंचित वर्गों और महिलाओं को समान अधिकार दिलाना भी राज्य की जिम्मेदारी होगी।
समानता का महत्त्व:-
- स्वतंत्रता के लिए समानता का होना आवश्यक है।
- समानता होने से कोई नागरिकों के बीच जाति, धर्म, भाषा, वंश, रंग और लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करता है।
- सामाजिक न्याय और सामाजिक स्वतंत्रता पाने के लिए समानता होना बहुत ही जरुरी है।
- लोकतंत्र में अच्छी कानून के शासन के लिए समानता आवश्यक है अन्यथा लोकतंत्र का कोई मूल्य नहीं है।
- मौलिक अधिकारों कि सार्थकता भी समानता से ही है।
- सभी के विकास के लिए समानता होना अति आवश्यक है।
मार्क्सवाद:-
सामाजिक व आर्थिक असमानताओं को मिटाने का उपाय निजी स्वामित्व को समाप्त करके आर्थिक संसाधानों पर जनता का स्वामित्व होना चाहिए।
मार्क्सवाद आर्थिक संशोधन पर जनता का नियंत्रण करके समानता की स्थापना करने के प्रयास में विश्वास रखते है।
उदारवादी:-
उदारवादी, समाज में, संसाधनों के वितरण के मामले में, प्रतिद्वंद्विता के सिद्धांत का समर्थन करते है और राज्य के हस्तक्षेप को अनिवार्य समझते है। उदारवादी खुली प्रतिस्पर्धा द्वारा सभी वगों से योग्य व्यक्तियों को बाहर निकालने में यकीन रखते हैं।
समाजवाद:-
समाजवाद का अर्थ असमानताओं को न्यूनतम करके संसाधनों को न्यायपूर्ण बंटवारा करना है। भारत के प्रमुख समाजवादी चिंतक राम मनोहर लोहिया।
समाजवाद व मार्क्सवाद के अनुसार आर्थिक असमानताएं सामाजिक रूत्वे या विशेषाधिकार जैसी असमानाताओं को बढ़ावा देती है इसीलिए समान अवसर से आगे जाकर आर्थिक संसाधनों पर निजी स्वामित्व न होकर जनता का नियंत्रण सुनिश्चित करने की जरूरत है।
संयुक्त राज्य अमेरिका में नस्ल के आधार पर असमानता से निपटने के लिये सरकार के द्वारा उठाए गये कदम:-
1964 में Civil Right Act सरकार द्वारा पास किया गया जिसमें रंग नस्ल व धर्म के आधार पर समानता की स्थापना का प्रयास था। एक अश्वेत व्यक्ति बराक हुसैन ओबामा अमेरिका के सबसे गरिमा मय पद पर दो बार आसीन हो चुके हैं। जो रंगभेद की नीति के नकारे जाने का उदाहरण है किंतु फिर भी समाज में समय – समय पर अश्वेतों के विरूद्ध हिंसा की गूंज सुनाई पड़ जाती है।
भारत सरकार द्वारा सामाजिक समानता के लिए उठाये गए कदम:-
- कानून के समक्ष समानता (अनुच्छेद 14)
- अस्पृश्यता का अंत (अनुच्छेद 17)
- (संसद तथा विधानसभाओं में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान।
- सरकारी सेवाओं में एससी, इसटी, और ओबीसी का आरक्षण।
- स्थानीय शासन में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण (अनुच्छेद 73-74)
विभेदक बर्ताव (आरक्षण):-
विभेदक बर्ताव अर्थात् लोगों के बीच अंतर को ध्यान रखकर कुछ विभेदक बर्ताव (आरक्षण) की नीति बनाई गई है जिससे समाज के सभी वर्गों की अवसरों तक समान पहुंच हो सके। कुछ देशों में इसे सकारात्मक कार्यवाही की नीति का नाम दिया गया है।
स्त्रियों द्वारा समान अधिकारों के लिए संघर्ष मुख्यतः नारीवादी आंदोलन से जुड़ा है। मातृत्व अवकाश जैसे विशेषाधिकार नारी समाज के लिये अत्यंत आवश्यक हैं।
विभेदक बर्ताव या विशेषाधिकार का उद्देश्य न्यायपरक व समानता मूलक समाज को बढ़ावा देना है समाज में विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग को फिर से खड़ा करना नहीं है।
देश में मौजूद कुछ असमानताएँ हैं:-
- आय की असमानता
- लैंगिक असमानता समाज है
- मौजूदा मलिन बस्तियां
- शैक्षिक संस्थानों के बीच असमानता