हिन्दी सारांश (Summary)

कक्षा 11 Commerce हिन्दी काव्य भाग सारांश (Summary)

अध्याय-5 घर की याद

-भवानी प्रसाद मिश्र

सारांश

आज पानी गिर रहा है,

बहुत पानी गिर रहा है,

रात भर गिरता रहा है,

प्राण-मन धिरता रहा है,

बहुत पानी गिर रहा हैं,

घर नजर में तिर रहा है,

घर कि मुझसे दूर है जो,

घर खुशी का पूर हैं जो,

 

घर कि घर में चार भाई,

मायके में बहिन आई,

बहिन आई बाप के घर,

हाय रे परिताप के घर।

घर कि घर में सब जुड़े हैं,

सब कि इतने कब जुड़े हैं,

चार भाई चार बहिन,

भुजा भाई प्यार बहिन,

और माँ बिन-पढ़ी मोरी,

दु:ख में वह गढ़ी मेरी

माँ कि जिसकी गोद में सिर,

रख लिया तो दुख नहीं फिर,

माँ कि जिसकी स्नेह-धारा,

का यहाँ तक भी पसारा,

उसे लिखना नहीं आता,

जो कि उसका पत्र पाता।

 

पिता जी जिनको बुढ़ापा,

एक क्षण भी नहीं व्यापा,

जो अभी भी दौड़ जाएँ

जो अभी भी खिलखिलाएँ,

मौत के आगे न हिचकें,

शर के आगे न बिचकें,

बोल में बादल गरजता,

काम में झझ लरजता,

अर्थ – सावन की बरसात में कवि को घर के सभी सदस्यों की याद आती है। उसे अपनी माँ की याद आती है। उसकी माँ अनपढ़ है। उसने बहुत कष्ट सहन किया है। वह दुखों में ही रची हुई है। माँ बहुत स्नेहमयी है। उसकी गोद में सिर रखने के बाद दुख शेष नहीं रहता अर्थात् दुख का अनुभव नहीं होता। माँ का स्नेह इतना व्यापक है कि जेल में भी कवि उसको अनुभव कर रहा है। वह लिखना भी नहीं जानती। इस कारण उसका पत्र भी नहीं आ सकता। कवि अपने पिता के बारे में बताता है कि वे अभी भी चुस्त हैं। बुढ़ापा उन्हें एक क्षण के लिए भी आगोश में नहीं ले पाया है। वे आज भी दौड़ सकते हैं तथा खूब खिल-खिलाकर हँसते हैं। वे इतने साहसी हैं कि मौत के सामने भी हिचकते नहीं हैं तथा शेर के आगे डरते नहीं है। उनकी वाणी में ओज है। उसमें बादल के समान गर्जना है। जब वे काम करते हैं तो उनसे तूफ़ान भी शरमा जाता है अर्थात् वे तेज गति से काम करते हैं।

आज गीता पाठ करके,

दंड दो सौ साठ करके,

खूब मुगदर हिला लेकर,

मूठ उनकी मिला लेकर,

जब कि नीचे आए होंगे,

नैन जल से छाए होंगे,

हाय, पानी गिर रहा है,

घर नजर में तिर रहा हैं,

 

चार भाई चार बहिनें

भुजा भाई प्यार बहिनें

खेलते या खड़े होंगे,

नजर उनकी पड़े होंगे।

पिता जी जिनको बुढ़ापा,

एक क्षण भी नहीं व्यापा,

रो पड़े होंगे बराबर,

पाँचवें का नाम लेकर,

अर्थ – कवि अपने पिता के विषय में बताता है कि आज वे गीता का पाठ करके, दो सौ साठ दंड-बैठक लगाकर, मुगदर को दोनों हाथों से हिलाकर व उनकी मूठों को मिलाकर जब वे नीचे आए होंगे तो उनकी आँखों में पानी आ गया होगा। कवि को याद करके उनकी आँखें नम हो गई होंगी। कवि को घर की याद सताती है। घर में चार भाई व चार बहनें हैं जो सुरक्षा व प्यार में बँधे हैं। उन्हें खेलते या खड़े देखकर पिता जी को पाँचवें की याद आई होगों और वे जिन्हें कभी बुढ़ापा नहीं व्यापा था, कवि का नाम लेकर रो पड़े होंगे।

पाँचवाँ मैं हूँ अभागा,

जिसे सोने पर सुहागा,

पिता जी कहते रहे हैं,

प्यार में बहते रह हैं,

 

आज उनके स्वर्ण बेटे,

लगे होंगे उन्हें हेटे,

क्योंकि मैं उन पर सुहागा

बाँधा बैठा हूँ अभागा,

अर्थ – कवि कहता है कि वह उनका भाग्यहीन पाँचवाँ पुत्र है। वह उनके साथ नहीं है, परंतु पिता जी को सबसे प्यारा है। जब भी कभी कवि के बारे में चर्चा चलती है तो वे भाव-विभोर हो जाते हैं। आज उन्हें अपने सोने जैसे बेटे तुच्छ लगे होंगे, क्योंकि उनका सबसे प्यारा बेटा उनसे दूर जेल में बैठा है।

और माँ ने कहा होगा,

दुख कितना बहा होगा,

आँख में किसलिए पानी

वहाँ अच्छा है भवानी

वह तुम्हारी मन समझकर,

और अपनापन समझकर,

 

गया है सो ठीक ही है,

यह तुम्हारी लीक ही है,

पाँव जो पीछे हटाता,

कोख को मेरी लजाता,

इस तरह होआो न कच्चे,

रो पड़गे और बच्चे,

अर्थ – माँ ने पिता जी को समझाया होगा। ऐसा करते समय उसके मन में भी बहुत दु:ख बहा होगा। वह कहती है कि भवानी जेल में बहुत अच्छा है। तुम्हें आँसू बहाने की जरूरत नहीं है। वह आपके दिखाए मार्ग पर चला है और इसे अपना उद्देश्य बनाकर गया है। यह ठीक है। यह तुम्हारी ही परंपरा है। यदि वह आगे बढ़कर वापस आता तो यह मेरे मातृत्व के लिए लज्जा की बात होती। अत: तुम्हें अधिक कमजोर होने की जरूरत नहीं है। यदि तुम रोओगे तो बच्चे भी रोने लगेंगे।

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