अध्याय-1

कक्षा 12 Art भूगोल अध्याय-1

मानव भूगोल प्रकृति एवं विषय क्षेत्र

भूगोल (Geography) :-

ज्योग्राफी (Geography) का शाब्दिक अर्थ है पृथ्वी का वर्णन करना तथा उसके बदलते रूप का वर्णन करना। भूगोल को ज्ञान की शाखाओं की जननी कहा जाता है।

भूगोल की दो शाखा :-

1) भौतिक भूगोल

2) मानव भूगोल

भौतिक भूगोल :-

भौतिक भूगोल भूगोल की एक प्रमुख शाखा है जिसमें पृथ्वी के भौतिक स्वरूप का अध्ययन किया जाता है।  यह धरातल पर अलग अलग जगह पायी जाने वाली भौतिक परिघटनाओं के वितरण की व्याख्या व अध्ययन करता है, साथ ही यह भूविज्ञान, मौसम विज्ञान, जंतु विज्ञान और रसायन विज्ञान से भी जुड़ा हुआ है। इसकी कई उपशाखाएँ हैं जो विविध भौतिक परिघटनाओं की विवेचना करती हैं।

मानव भूगोल :-

  1. मानव भूगोल भौतिक पर्यावरण और सामाजिक – सांस्कृतिक पर्यावरण के बीच अंतर – संबंध का अध्ययन करता है जो मानव द्वारा एक – दूसरे के साथ पारस्परिक संपर्क के माध्यम से बनाया जाता है। 
  2. मानव भूगोल मनुष्य तथा उसके पर्यावरण के पारस्पारिक संबंधों का बोध कराता है। 
  3. भूगोल की इस शाखा (मानव भूगोल) का अध्ययन 19 वीं शताब्दी के अंत में चार्ल्स डार्विन की पुस्तक ‘ Origin of Species ‘ के प्रकाशन के समय हुआ। लोगों की इस विषय में जिज्ञासा भी बढ़ी। 

रैटजेल के अनुसार मानव भूगोल :-

रैटजेल जिन्हें आधुनिक मानव भूगोल का जनक भी कहा जाता है। इन्होनें अपनी पुस्तक, Anthropgeographies में लिखा है कि ” मानव को जीवित रहने के लिए वातावरण से सहयोग प्राप्त करना अनिवार्य है। 

ऐलेन सी सैप्पल के अनुसार मानव भूगोल :-

  • भौतिक पर्यावरण द्वारा प्रदान संसाधनों का उपयोग करके गांवों, शहरों, सड़क – रेल नेटवर्क, आदि और भौतिक संस्कृति के अन्य सभी तत्वों को मानव द्वारा बनाया गया है।  
  • ऐलेन सी सैप्पल, रैटजेल की एक अमेरिकी शिष्या के अनुसार मानव भूगोल अस्थिर पृथ्वी तथा क्रियाशील मानव के बदलते रिश्तों का बोध कराता है। 

मानव भूगोल का इतिहास :-

  1. मानव भूगोल का उद्भव मनुष्यों और पर्यावरण के बीच बातचीत, अनुकूलन, समायोजन और संशोधन के साथ शुरू हुआ। 
  2. खोज की उम्र से पहले, विभिन्न समाजों के बीच बहुत कम बातचीत हुई थी लेकिन 15 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में अज्ञात समाजों के बारे में जानकारी अब उपलब्ध कराई गई थी। यात्रियों द्वारा अन्वेषण ने मानव भूगोल के क्षेत्र का विस्तार किया और विभिन्न समाजों के साथ बातचीत की। 
  3. इसके साथ, नए दृष्टिकोण कल्याणकारी या मानवतावादी विचारधारा, विचार के कट्टरपंथी स्कूल और विचारधारा के व्यवहार विद्यालय की तरह भर सकते हैं।

मानव भूगोल के क्षेत्र और उप – क्षेत्र :-

मानव भूगोल प्रकृति में अंतर – अनुशासनात्मक है और सामाजिक विज्ञानों में अन्य बहन विषयों के साथ विशाल संबंध विकसित करता है। 

मानव भूगोल के क्षेत्र और उप – क्षेत्र पृथ्वी की सतह पर मानव जीवन के सभी तत्वों के हर पहलू की व्याख्या करते।

मानव भूगोल के प्रमुख अध्ययन क्षेत्र :-

  • सांस्कृतिक भूगोल
  • सामाजिक भूगोल 
  • नगरीय भूगोल 
  • जनसंख्या भूगोल 
  • राजनीतिक भूगोल 
  • आवास भूगोल
  • आर्थिक भूगोल

मानव भूगोल के प्रमुख उपक्षेत्र :-

  • व्यवहारवादी भूगोल 
  • सामाजिक कल्याण का भूगोल
  • संस्कृतिक भूगोल
  • ऐतिहासिक भूगोल
  • चिकित्सा भूगोल
  • लिंग भूगोल

मानव भूगोल की विचारधाराएँ :-

 विचारधारा :- अलग – अलग वैज्ञानिकों के मानव भूगोल को देखने के नजरिए को मानव भूगोल की विचारधारा कहा गया।

मानव भूगोल की मुख्य 3 विचारधाराऐ है।

  • नियतिवाद।
  • संभववाद।
  • नव निश्चयवाद।

मानव भूगोल की मानवतावादी विचारधारा :-

  • मानवतावादी विचारधारा से आशय मानव भूगोल के अध्ययन को मानव के कल्याण एवं सामाजिक चेतना के विभिन्न पक्षों से जोड़ना था। इसका उदय 1970 के दशक में हुआ। 
  • इसके अन्तर्गत आवास, स्वास्थय एंव शिक्षा जैसे पक्षों पर ध्यान केन्द्रित किया गया। 
  • यह मनुष्य की केन्द्रीय एवं क्रियाशील भूमिका पर बल देता हैं। 
  • प्रादेशिक असमानतायें, निर्धनता, अभाव जैसे विषयों के कारण एंव निवारण पर ध्यानाकर्षित करता है। 

पर्यावरणीय निश्चयवाद :-

मनुष्य अपनी प्रारम्भिक अवस्था में प्रकृति के अनुसार ही जीवन जीता था। प्रकृति के अनुसार अपने को ढालने की कोशिश को ही पर्यावरणीय निश्चयवाद कहा गया।

नव निश्चयवाद :-

  1. नव निश्चयवाद की संकल्पना ग्रिफिथटेलर द्वारा प्रस्तुत की गई। यह दो विचारों पर्यायवरणीय निश्चयवाद और संभववाद के मध्य के मार्ग को परिलक्षित करती है। 
  2. यह संकल्पना दर्शाती है कि ना तो यह नितांत आवश्यकता की स्थिति है और न ही नितांत स्वतंत्रता की अवस्था है। 
  3. इस संकल्पना के अनुसार मानव प्रकृति के नियमों का अनुपालन करके ही प्रकृति पर विजय प्राप्त कर सकता है।

नव निश्चयवाद की विशेषताएँ :-

  1. यह विचारधारा पर्यावरणीय निश्चयवाद और सम्भावनावाद के बीच के मार्ग को प्रस्तुत करती है। 
  2. यह पर्यावरण को नुकसान किये बगैर समस्याओं को सुलझाने पर बल देती है। 
  3. पर्यावरणीय निश्चयवाद के अनुसार मनुष्य न तो प्रकृति पर पूरी तरह निर्भर हो कर रह सकता और न ही प्रकृति से स्वतन्त्र रह कर जी सकता है।
  4. प्रकृति पर विजय पाने के लिये प्रकृति के ही नियमों का पालन करना एंव उसे विनाश से बचाना होगा। 
  5. प्राकृतिक देनों का प्रयोग करते हुये प्रकृति की सीमाओं का ख्याल रखना चाहिये। उदाहरणार्थ औद्योगीकरण करते हुये जंगलों को नष्ट होने से बचाना। खनन करते समय अति दोहन से बचाना।

नियतिवाद :-

  • इस विचारधारा के अनुसार मनुष्य के प्रत्येक क्रियाकलाप को पर्यावरण से नियंत्रित माना जाता है। 
  • मानव की आदिम अवस्था में मानव के लगभग सभी क्रियाकलाप पूर्णतया प्राकृतिक पर्यावरण की शक्तियों द्वारा नियंत्रित थे। 
  • रैटजेल, रिटर, हम्बोल्ट, हटिगंटन आदि नियतिवाद के प्रमुख समर्थक थे।
  • नियतिवाद सामान्यतः मानव को एक निष्क्रिय कारक समझता हैं जो पर्यावरणीय कारकों से प्रभावित होता है। उदाहरण – आदिवासियों की प्रकृति पर निर्भरता। किसानों की जलवायु पर निर्भरता।  जलवायु के अनुसार शारीरीक गठन।

संभववाद / संभावनावाद :-

  • इस विचारधारा के अनुसार मनुष्य अपने पर्यावरण में परिवर्तन करने में समर्थ है तथा वह प्रकृति प्रदत्त अनेक संभावनाओं का इच्छानुसार अपने लाभ के लिए उपयोग कर सकता है। 
  • मानव का प्रकृति पर निर्भरता की अवस्था से स्वतन्त्रता की अवस्था की ओर प्रस्थान संभव है।
  • विडाल – डी – ला ब्लाश तथा लुसियन फैले इस विचारधारा को मानने वाले प्रमुख थे।
  • संभावनावाद प्रकृति की तुलना में मनुष्य को महत्वपूर्ण स्थान देता और उसे सक्रिय शक्ति के रूप में देखता है। उदाहरण – नदी पर पुल, खेती, परिवहन।

मनुष्य का प्रकृतिकरण :-

  • मनुष्य तकनीक की मदद से अपने भौतिक वातावरण के साथ बातचीत करता है। यह सांस्कृतिक विकास के स्तर को इंगित करता है।
  • भौतिक पर्यावरण के साथ आदिम समाजों की बातचीत को पर्यावरणीय नियतावाद कहा जाता है जो मनुष्यों का प्राकृतिककरण है। 

प्रकृति का मानवीकरण :-

  • प्रौद्योगिकी के विकास के साथ, मानव ने प्रकृति को संशोधित करना शुरू किया और सांस्कृतिक परिदृश्य बनाया। इसे भोगवाद या प्रकृति का मानवीकरण कहा जाता है। 
  • ग्रिफिथ टेलर द्वारा नव नियतत्ववाद का एक मध्य मार्ग पेश किया गया जिसका अर्थ है कि न तो पूर्ण आवश्यकता (पर्यावरणीय नियतत्ववाद) की स्थिति है और न ही पूर्ण स्वतंत्रता (अधिभोग) की स्थिति है। 

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