अध्याय-7
कक्षा 12 Art भूगोल अध्याय-7
खनिज तथा ऊर्जा संसाधन
खनिज :-
एक खनिज वह प्राकृतिक पदार्थ है जिसमें निश्चित रासायनिक व भौतिक गुण होते हैं। इनकी उत्पत्ति का आधार अजैविक, कार्बनिक या अकार्बनिक हो सकता है।
खनिज के प्रकार :-
रासायनिक व भौतिक गुणों के आधार पर खनिज के प्रकार :-
- धात्विक खनिज
- अधात्विक खनिज
- धात्विक खनिज :-लौह अयस्क, तांबा व सोना, मैंगनीज और वाक्साइट आदि धातु से प्राप्त होते है, इन्हें धात्विक खनिज कहते है।
- अधात्विक खनिज :-ये खनिज दो प्रकार के होते है। इनमें कुछ खनिज, कार्बनिक उत्पति के होते हैं, जैसे जीवाश्म ईधन, जिन्हें खनिज ईधन भी कहते है, जैसे कोयला और पैट्रोलियम। अन्य अकार्बनिक उत्पति के खनिज होते है। जैसे अभ्रक, चूना पत्थर और ग्रेफाइट आदि।
भारत में खनिज एजेंसियाँ :-
- राष्ट्रीय अल्यूमिनियम कंपनी लि .
- भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण (GSI)
- तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग ONGC (1956)
- खनिज अन्वेषण निगम लि . MECL
- राष्ट्रीय खनिज विकास निगम
- भारतीय खान ब्यूरो
- भारत गोल्ड माइन्स लि .
- हिन्दुस्तान कॉपर लि .
भारत में खनिजों की प्रमुख पट्टियां :-
नोट :- खनिज पट्टियों का अर्थ होता है जहाँ खनिज पाए जाते है।
- उतर पूर्वी पठारी पट्टी :- इस पट्टी के अंतर्गत छोटा, नागपुर, पठार (झारखंड), उड़ीसा का पठार, पं . बंगाल तथा छतीसगढ़ के कुछ भाग सम्मिलित है। यहां पर विभिन्न प्रकार के खनिज उपलब्ध है। इनमें लोह अयस्क, कोयला, मैंगनीज आदि प्रमुख है।
- दक्षिणी परिचमी पठारी पट्टी :- यह पट्टी कर्नाटक, गोआ, तमिलनाडु की उच्च भूमि और केरल में विस्तृत है। यह पट्टी लौह धातुओं तथा बॉक्साइट में समद्व है।
- उत्तर पश्चिमी पट्टी :- यह पट्टी राजस्थान में अरावली और गुजराज के कुछ भाग पर विस्तृत है। यहां खनिज धारवाड़ क्रम की शैलों में पाये जाते है। जिनमें तांबा, जिंक, आदि प्रमुख खनिज है। गुजरात में पेट्रोलियम के निक्षेप है।
तांबे के लाभ तथा क्षेत्र :-
- बिजली की मोटरें, ट्रांसफार्मर, जेनरेटर्स आदि के बनाने तथा विद्युत उद्योग के लिए ताँबा अपरिहार्य धातु है।
- यह एक आघातवर्द्धनीय तथा तन्य धातु हैं।
- आभूषणों को मजबूती प्रदान करने के लिए इसे सोने के साथ मिलाया जाता है।
- खनन क्षेत्र – झारखण्ड का सिंहभूमि जिला, मध्यप्रदेश में बालाघाट कर्नाटक में चित्रदुर्ग राजस्थान में झुंझुनु, अलवर व खेतड़ी जिले।
मैंगनीज के लाभ तथा क्षेत्र :-
- लौह अयस्क के प्रगलन के लिए महत्वपूर्ण कच्चा माल है।
- इसका उपयोग लौह मिश्र धातु तथा विनिर्माण में भी किया जाता है।
- खनन क्षेत्र :- उड़ीसा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश व झारखण्ड।
ऊर्जा संसाधन :-
- वह सभी संसाधन जो ऊर्जा प्रदान करते हैं, ऊर्जा संसाधन कहलाते हैं।
- कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस जैसे खनिज ईंधन (जो जीवाश्म ईंधन के रूप में जाने जाते हैं), परमाणु ऊर्जा, ऊर्जा के परंपरागत स्रोत हैं।
ऊर्जा संसाधनों के प्रकार :-
ऊर्जा के संसाधनों को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जाता है :-
- परंपरागत संसाधन
- अपरंपरागत संसाधन
ऊर्जा के परंपरागत संसाधन :-
- कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा नाभिकीय ऊर्जा जैसे ईंधन के स्रोत समाप्य कच्चे माल का प्रयोग करते हैं।
- इन साधनों का वितरण बहुत असमान है।
- ये साधन पर्यावरण अनुकूल नही है अर्थात पर्यावरण प्रदूषण में इनकी बड़ी भूमिका है।
ऊर्जा के गैर अपरंपरागत संसाधन :-
- सौर, पवन, जल, भूतापीय ऊर्जा असमाप्य है।
- ये साधन अपेक्षाकृत अधिक समान रूप से वितरित है।
- ये ऊर्जा के स्वच्छ साधन और पर्यावरण हितैषी है।
ऊर्जा के अपरम्परागत स्रोत :-
- सौर ऊर्जा – भारत के परिचमी भागों गुजराज व राजस्थान में और ऊर्जा के विकास की अधिक संभावनाएं है।
- पवन ऊर्जा – पवन ऊर्जा के लिए राजस्थान, गुजराज, महाराष्ट्र, तथा कर्नाटक में अनुकूल परिस्थितियों विधमान है।
- ज्वारीय ऊर्जा – भारत के पश्चिमी तट के साथ ज्वारीय ऊर्जा विकसित होने की व्यापक संभावनाएं है।
- भूतापीय ऊर्जा – इसके लिए हिमालय प्रदेश, में विकसित होने की व्यापक संभावनाएं है।
- जैव ऊर्जा – ग्रामीण क्षेत्रों में जैव ऊर्जा विकसित होने की व्यापक संभावनाएं है।
अपटत वेधन :-
समुद्र तट से दूर समुद्र की तली में मौजूद प्राकृतिक तेल को वेधन करके प्राप्त करना अपतट वेधन है।
भारत में पाए जाने वाली खनिजों की विशेषताए :-
- खनिज, असमान रूप में वितरित होते हैं। सब जगह सभी खनिज नहीं मिलते।
- अधिक गुणवत्ता वाले खनिज, कम गुणवत्ता वाले खनिजों की तुलना में कम मात्रा में पाए जाते हैं। खनिजों की गुणवत्ता व मात्रा में प्रतिलोमी संबंध पाया जाता है।
- सभी खनिज समय के साथ समाप्त हो जाते हैं। भूगार्भिक दृष्टि से इन्हें बनने में लम्बा समय लगता है और आवश्यकता के समय इनका तुरन्त पुनर्भरण नहीं किया जा सकता है।
भारत में खनिजों का संरक्षण क्यों आवश्यक है ?
- खनिज समय के साथ समाप्त हो जाते हैं।
- भूगर्मिक दृष्टि से इन्हें बनने में लम्बा समय लगता है।
- आवश्यकता के समय तुरन्त इनका पुनर्भरण नहीं किया जा सकता।
- सतत् पोषणीय विकास तथा आर्थिक विकास के लिए खनिजों का संरक्षण करना आवश्यक हो जाता है।
खनिजों का संरक्षण की विधियाँ :-
- इसके लिए ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों जैसे सौर ऊर्जा, पवन, तरंग व भूतापीय ऊर्जा के असमाप्य स्रोतों का प्रयोग करना चाहिए।
- धात्विक खनिजों में, छाजन धातुओं के उपयोग तथा धातुओं के पुर्नचक्रण पर बल देना चाहिए।
- अत्यल्प खनिजों के लिए प्रति स्थापनों का उपयोग भी खनिजों के। संरक्षण में सहायक है।
- सामरिक व अति अल्प खनिजों के निर्यात को भी घटाना चाहिए।
- सबसे उचित तरीका है खनिजों का सूझ – बूझ से तथा मितव्यतता से प्रयोग कराना है ताकि वर्तमान आरक्षित भण्डारों का लंबे समय तक प्रयोग किया जा सके।