अध्याय 1

कक्षा 12 Science जीव विज्ञान अध्याय 1

जीवों में जनन

जनन(Reproduction)

प्रत्येक जीव में अपने समान नई जीव संतति उत्पन्न करने को जनन कहते है।

जनन क्यों आवश्यक है? 

जनन के द्वारा जीव अपनी संख्या में वृद्धि करता है जिससे उसकी पीढियों में निरन्तरता बनी रहती है जनन जीव का अस्तित्व बनाए रखने में आवश्यक है क्योंकि  किसी जीव की मृत्यु होने पर भी जनन के कारण उसकी जाति का अस्तित्व बना रहता है।

जनन के प्रकार (types of reproduction)

(i) अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction)

(ii) लैंगिक जनन (Sexual Reproduction)

अलैंगिक जनन(Asexual reproduction)

इस प्रकार के जनन में दो जीवों (जनकों) की भागीदारी नहीं होती, इसमें केवल एकल जनक के द्वारा संतान उत्पन्न होती हैं।

अलैंगिक जनन से उत्पन्न संतति अनुवांशिक रूप से आपस में तथा जनकों के समान होती है। अतः इन्हें क्लोन कहते है।

अलैंगिक जनन के प्रकार (Types of Asexual Reproduction)

अलैंगिक जनन की प्रक्रिया कई विधियों द्वारा होतीं हैं।जो निम्न प्रकार है-

  1. द्विखण्डन :- अमीबा,युग्लीना, पैरामिशियम

2. बहुखण्डन :- प्लाज्मोडियम

3. मुकुलन :- यीस्ट ,हाइड्रा

4. बीजाणु द्वारा

जीवों में जनन
जीवों में जनन
  • कायिक प्रवर्धन (Vegetative Propagation)

यह एक प्रकार का अलैगिक जनन है। पादपों में कायिक भागों जैसे जड़, तना, पत्ती, पुष्प आदि के द्वारा नई संतति उत्पन्न होने को कायिक प्रवर्धन कहते है।

कायिक प्रवर्धन में भाग लेनी वाले पादप के भागों को कायिक प्रवर्ध (Propagule) कहते है। जैसे आलू में आंख, अदरक में प्रकन्द आदि।

कायिक प्रवर्धन के प्रकार (Types of Vegetative Propagation)

कायिक प्रवर्धन प्राकृतिक रूप से होता है किन्तु कृत्रिम रूप से कायिक जनन कराया जा सकता है।

1- प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन (Natural Vegetative Propagation)

2- कृत्रिम कायिक प्रवर्धन (Artificial Vegetative Propagation)

प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन

जड के द्वारा कायिक प्रवर्धन (Vegetative Propagation by Root)

शीशम , सीरस , मुराया ,शकरकंद , एस्पेरेगस

शकरकंद

तने के द्वारा कायिक प्रवर्धन (Vegetative Propagation by Stem)

भूमिगत तने के द्वारा कायिक प्रवर्धन

कंद –आलू

जीवों में जनन

प्रकंद – अदरक , केला

शल्ककंद – प्याज

जीवों में जनन

घनकंद – अरबी

अर्धवायवीय तने के द्वारा कायिक प्रवर्धन

उपरिभुस्तरी – दूब घास

अन्तः भुस्तरी – पोदीना

भूस्तरी – स्ट्राबेरी

भूस्तारिका – जलकुम्भी

वायवीय तने के द्वारा कायिक प्रवर्धन

गन्ना

पर्ण द्वारा कायिक प्रवर्धन (Vegetative Propagation by Leaf)

ब्रायोफिल्लम (पत्थरचट्टा) – पत्तियों के किनारों पर पर्ण कलिकाएँ उपस्थित

बिगोनिया – पत्तियों के पर्ण वृन्त तथा पर्ण शिराओं पर पर्ण कलिकाएँ उपस्थित

पुष्प द्वारा द्वारा कायिक प्रवर्धन ((Vegetative Propagation by Flower)

पुष्प रूपांतरित होकर पत्र कलिकाएँ बनता है जिससे संतति उत्पन्न होती है जैसे अगेव, लिलियम, डायोस्कोरिया       

कृत्रिम कायिक प्रवर्धन (Artificial Vegetative Propagation)

कायिक प्रवर्धन कृत्रिम रूप से भी किया जाता है। जिसमें पादप के किसी का कायिक  भाग का उपयोग करके पौधे तैयार किए जाते हैं।

कृत्रिम कायिक प्रवर्धन विधियों द्वारा किया जाता है।

1- कर्तन (Cutting)

2- दाब लगाना (Layring)

3- रोपण (Grafting)

कर्तन (Cutting)

इसमें पादप के किसी कायिक भाग को लेकर उसे भूमि में रोपित कर दिया जाता है। जिसे नया पादप तैयार होता है। जैसे-

स्तंभ कर्तन (Stem Cutting)

इस विधि में पौधे के स्तंभ या किसी टहनी के छोटे टुकड़े को काटकर जमीन में रोप दिया जाता है। जिससे नया पादप तैयार होता है।

टहनी के उस छोटे टुकड़े को हार्मोन में रखने से मूल निर्माण की प्रक्रिया तेजी से होती है। उदाहरण गन्ना, गुलाब, बोगनविलिया, चमेली, अंगूर, आदि।

मूल कर्तन (Root Cutting)

इस विधि में किसी पादप की जड़ को भूमि में उर्ध्व स्थिति में भूमि में रोप दिया जाता है। जिससे कलिकाएँ व जड़े निकलकर नए पादप का निर्माण करती है।

दाब लगाना (Layering)

इस विधि में शाखाओं या तने से जड़ निकली जाती है। जैसे-

टीला दाब लगाना (Mound Layering)

इस तकनीक में पौधें की ऐसी शाखा को जमीन में दबाया जाता है जिस पर एक से अधिक पर्वसन्धियाँ पाई जाती हो, ताकि पर्वसन्धियाँ से अपस्थानिक जड़ें निकलने लगे। जब अपस्थानिक जड़ें निकलने लगती है। तो इसे अपने जनक पादप से काटकर अलग पादप के रूप में उगाया जाता है। ऐसा चमेली और मोगरा में किया जाता है।

वायुदाब लगाना (Air Layering)

इस विधि का प्रयोग वृक्ष की किसी शाखा में कृत्रिम रूप से जड़ों का निर्माण करने के लिए किया जाता। इसके लिए पादप के किसी मोटी शाखा को चुनकर उसके चारों ओर से छाल को एक वलय के रूप में हटा दिया जाता है। तथा इस छाल हटाए हुए भाग को गीली मिट्टी, गीली रुई या मोस के द्वारा ढक दिया जाता है। तथा इसे नाम रखने के लिए इससे एक पात्र जोड़ दिया जाता है। जो इसे बूंद-बूंद पानी प्रदान करता है। इस ढके हुए भाग को गुट्टी (Gootee) कहते हैं। उदाहरण संतरा, नींबू, अमरूद, लीची, आदि।

रोपण (Grafting)

इस विधि में दो अलग-अलग पादपों के हिस्सों को जोड़कर उत्तम किस्म वाला पादप तैयार किया जाता है।इसे कलम लगाना भी कहा जाता है।

कलम (Scion)  अच्छी किस्म वाले पादप को कहा जाता है। जिसका दूसरे पादप पर रोपण किया जाता है।

स्कन्ध (Stock) जिस पौधे पर कलम (Scion) लगाई जाती है, उसे स्कन्ध (Stock) कहा जाता है। रोपण गुलाब, आम, अमरूद, सेब, नींबू आदि में किया जाता है।

यह निम्न विधियों द्वारा किया जाता है

जिह्वा रोपण (Whip or Tongue Grafting)

इसमें स्कन्ध (Stock) तथा कलम (Scion) को तिरछा 45 डिग्री के कोण पर काटा जाता है। और उनके मध्य में एक चिरा लगा देते हैं। ताकि यह एक-दूसरे में फिट हो जाए। इसको फिर रस्सी या रबड़ ट्यूब से कसकर बांध दिया जाता है।

फच्चर रोपण (Wedge Grafting)

इस विधि में स्कन्ध (Stock) में V आकार का तथा कलम (Scion) को वेज (उल्टा V या फच्चर) के आकार का काटा जाता है। फिर दोनों को जोड़कर रस्सी या रबर ट्यूब से बांध दिया जाता है।

मुकुट रोपण (Crown Grafting)

इस विधि में स्कन्ध (Stock) की मोटाई बहुत अधिक होती है। जिसमें कई कलम (Scion) रोप दी जाती है।

कलिका रोपण (Bud Grafting)

इस विधि में स्कन्ध (Stock) की छाल में T आकार का चीरा लगाकर उसमें कलिका को रोप दिया जाता है। और उनको रबड़ या रस्सी से अच्छी तरह कसकर बांध दिया जाता है।

नोट- रोपण के लिए स्कन्ध (Stock) और कलम (Scion) दोनों के कैंबियम (एधा) को एक-दूसरे के संपर्क में आना आवश्यक होता है। ताकि यह दोनों विभाजन कर एक-दूसरे से जुड़ जाए।

लैंगिक जनन(Sexual reproduction)

जब जनन प्रक्रिया में दो जीव जनक भाग लेते है। तो उसे लैंगिक जनन कहते है। इसमें-

  1. अर्धसूत्री विभाजन एवं निषेचन की क्रिया होती है।
  2. नर युग्मक एवं मादा युग्मक बनते है। (युग्मकजनन)
  3. नर युग्मक एवं मादा युग्मक के संयोजन से बने युग्मनज बनता है। (निषेचन)
  4. युग्मनज के द्वारा नया जीव बनता है। (भुर्णीय परिवर्धन)

लैंगिक जनन की क्रिया में अलैंगिक जनन की तुलना अधिक समय लगता है। तथा यह अलैंगिक जनन की तुलना में जटिल प्रक्रिया है।

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