अध्याय 15
कक्षा 12 Science रसायन विज्ञान अध्याय 15
बहुलक
बहुलक
उच्च अणुभार वाले वे यौगिक जो अनेक छोटे-छोटे अणुओं के परस्पर संयोग से बनते हैं। उन्हें बहुलक कहते हैं। एवं इस प्रक्रिया को बहुलीकरण कहते हैं।
बहुलक के उदाहरण – पॉलिथीन, नायलॉन 6, बैकेलाइट, रबर आदि बहुलक के उदाहरण हैं। बहुलक के निर्माण में जो सरल अणु सक्षम होते हैं उन्हें एकलक कहते हैं।
बहुलक का वर्गीकरण
बहुलको को विशिष्ट महत्व के आधार पर कई प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है।
- स्रोत के आधार पर :- इस आधार पर बहुलको को तीन प्रकार से वर्गीकृत किया गया है।
- प्राकृतिक बहुलक
- संश्लेषित बहुलक
- अर्द्ध संश्लेषित बहुलक
- प्राकृतिक बहुलक :- वे बहुलक जो पादपो तथा जंतुओं अर्थात् प्राकृतिक में पाए जाते हैं। उन्हें प्राकृतिक बहुलक कहते हैं।
उदाहरण – स्टार्च, प्रोटीन, सेल्यूलोज, प्राकृतिक रबर तथा न्यूक्लिक अम्ल आदि प्राकृतिक बहुलक के उदाहरण हैं।
2. संश्लेषित बहुलक :- वे बहुलक जो मनुष्य द्वारा प्रयोगशाला में संश्लेषित किए जाते हैं। उन्हें संश्लेषित बहुलक कहते हैं।
उदाहरण – पॉलिथीन, नायलॉन, PVC, बैकेलाइट, संश्लेषित रबर आदि संश्लेषित बहुलक के उदाहरण हैं।
3. अर्द्ध संश्लेषित बहुलक :- जब प्राकृतिक बहुलको को रासायनिक पदार्थों के साथ क्रिया कराकर एक नवीन बहुलक बनाया जाता है तो इसे अर्द्ध संश्लेषित बहुलक कहते हैं।
उदाहरण – वल्वीकृत रबर, सैलूलोज एसीटेट तथा सैलूलोज नाइट्रेट आदि अर्द्ध संश्लेषित बहुलक के उदाहरण हैं।
4. संरचना के आधार पर :- इस आधार पर बहुलको को तीन प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है।
- रेखीय बहुलक
- शाखित श्रंखला बहुलक
- जालक बहुलक (तिर्यक बहुलक)
5. रेखीय बहुलक :- वे बहुलक जिनमें एकलक इकाइयां आपस में जुड़कर एक लंबी और रेखीय श्रंखला बनाती हैं। उन्हें रेखीय बहुलक कहते हैं।
उदाहरण – उच्च घनत्व पॉलिथीन, नायलॉन तथा पॉलिएस्टर आदि रेखीय बहुलक के उदाहरण हैं।
6. शाखित श्रंखला बहुलक :- वे बहुलक जिनमें एकलक इकाइयां आपस में जुड़कर रेखीय श्रंखलाएं बनाती हैं लेकिन इन रेखीय श्रंखला में कुछ शाखाएं भी होती हैं। तो इन्हें शाखित श्रंखला बहुलक कहते हैं।
उदाहरण – निम्न घनत्व पॉलिथीन, स्टार्च तथा ग्लाइकोजन आदि शाखित श्रंखला बहुलक के उदाहरण हैं।
7. जालक बहुलक (तिर्यक बंधित) :- वे बहुलक जिनमें अनेकों रेखीय श्रृंखलाएं परस्पर श्रंखला द्वारा जोड़कर एक त्रिविम जालक संरचना बनाती हैं। तो उन्हें जालक अथवा तिर्यक बंधित बहुलक कहते हैं।
उदाहरण – बैकेलाइट, यूरिया फॉर्मेल्डिहाइड रेजिन, मेलैमीन आदि।
8. बहुलीकरण के प्रकार के आधार पर :- बहुलको को बहुलीकरण विधि के आधार पर दो प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है।
- योगात्मक बहुलक
- संघनन बहुलक
9. योगात्मक बहुलक :- वे बहुलक जो द्विआबंध या त्रिआबंध युक्त एकलक इकाइयों के परस्पर संयोग से प्राप्त होते हैं। उन्हें योगात्मक बहुलक कहते हैं। एवं इस प्रक्रिया को योगात्मक बहुलीकरण कहते हैं। योगात्मक बहुलक भी दो प्रकार के होते हैं।
- समबहुलक
- सहबहुलक
10. समबहुलक :- एक ही प्रकार की एकलक इकाइयों के बहुलीकरण से बनने वाले योगात्मक बहुलक को समबहुलक कहते हैं।
उदाहरण – पॉलिथीन
![बहुलक](https://gyanchakra.co.in/wp-content/uploads/2023/06/Screenshot_1-136.png)
- आण्विक बलों के आधार पर :- इस आधार पर बहुलको को चार प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है।
- प्रत्यास्थ बहुलक
- रेशे
- तापसुघट्टय बहुलक
- तापदृढ़ बहुलक
- प्रत्यास्थ बहुलक :- वे बहुलक जिनमें बहुलक की श्रंखलाएं परस्पर दुर्बल अंतराण्विक बलों द्वारा जुड़ी रहती हैं तो उन्हें प्रत्यास्थ बहुलक कहते हैं। प्रत्यास्थ बहुलक अक्रिस्टलीय होते हैं।
उदाहरण – ब्यूना-N, ब्यूना-S तथा नियोप्रीन आदि प्रत्यास्थ बहुलक के उदाहरण हैं।
2. रेशे :- वे बहुलक जिनमें बहुलक की श्रंखलाएं परस्पर प्रबल अंतराण्विक बलों द्वारा जुड़ी रहती हैं तो उन्हें रेशे कहते हैं। ये क्रिस्टलीय होते हैं।
उदाहरण – नायलॉन 6, 6 तथा पॉलिएस्टर आदि रेशे के उदाहरण हैं।
3. तापसुघट्टय बहुलक :- वे बहुलक जिनमें अंतराण्विक आकर्षक बल प्रत्यास्थ बहुलक तथा रेशे के मध्य का होता है। तो उन्हें तापसुघट्टय बहुलक कहते हैं। यह बहुलक सामान्य ताप पर कठोर होते हैं तथा गर्म करने पर यह मृदुल तथा ठंडा करने पर पुनः कठोर हो जाते हैं।
उदाहरण – पॉलीविनाइल क्लोराइड (PVC), पॉलिथीन, पॉलीस्टायरीन आदि तापसुघट्टय बहुलक के उदाहरण हैं।
4. तापदृढ़ बहुलक :- वे बहुलक जो गर्म करने पर अनुत्क्रमणीय रूप से कठोर, दृढ़ तथा घुलनशील पदार्थों में परिवर्तित हो जाते हैं। तो उन्हें तापदृढ़ बहुलक कहते हैं।
उदाहरण – बैकेलाइट, यूरिया फॉर्मेल्डिहाइड रेजिन आदि।
पॉलिथीन
यह सबसे सामान्य बहुलक है। इसका उपयोग अनेक घरेलू उपकरणों के निर्माण में किया जाता है। इसे पॉलीएथिलीन भी कहा जाता है। पॉलिथीन दो प्रकार की होती है इन दोनों के लक्षण एक दूसरे से भिन्न होते हैं।
- अल्प घनत्व पॉलिथीन
- उच्च घनत्व पॉलिथीन
- अल्प घनत्व पॉलिथीन
इसे अल्प, निम्न तथा कम घनत्व पॉलिथीन के नाम से जाना जाता है। अल्प घनत्व पॉलिथीन को 1000 – 2000 तक के वायुमंडलीय दाब पर तथा 350 – 570K ताप पर ऑक्सीजन या परॉक्साइड की उपस्थिति में एथीन के बहुलीकर द्वारा प्राप्त किया जाता है।
![](https://gyanchakra.co.in/wp-content/uploads/2023/06/Screenshot_2-123.png)
अल्प घनत्व पॉलिथीन की संरचना अत्यधिक शाखित होती है। इन शाखाओं के कारण बहुलक अणुओं को अत्यधिक पास नहीं बांधते हैं। इसलिए इनका घनत्व बहुत कम होता है इनका दाब अत्यधिक उच्च होता है। जिस कारण इन्हें उच्च दाब पॉलिथीन भी कहते हैं।
अल्प घनत्व पॉलिथीन रासायनिक रूप से अक्रिय, कठोर तथा विद्युत की कुचालक होती हैं। इनका गलनांक कम लगभग 111°C होता है अतः यह निम्न ताप पर ही कोमल तथा लचीली हो जाती हैं।
अल्प घनत्व पॉलिथीन के उपयोग
- इलेक्ट्रिक तारों के ऊपर चढ़ाकर उन्हें विद्युत अवरोधन करने में।
- लचीले गुण के कारण इसका उपयोग पाइप, बोतल, खिलौनों के निर्माण में किया जाता है।
2. उच्च घनत्व पॉलिथीन :- उच्च घनत्व पॉलिथीन को 6 – 7 वायुमंडलीय दाब पर तथा 333K ताप पर ट्राइएथिल एल्युमिनियम और टाइटेनियम टेट्राक्लोराइड जैसे उत्प्रेरक की उपस्थिति में एथीन के बहुलीकरण द्वारा प्राप्त किया जाता है
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इस प्रकार प्राप्त उच्च घनत्व पॉलिथीन में अणु रेखीय होते हैं। इनका घनत्व उच्च होता है एवं गलनांक भी उच्च लगभग 130°C होता है। इनका दाब कम होता है। इसलिए इन्हें निम्न दाब पॉलीथिन भी कहते हैं।
उच्च घनत्व पॉलिथीन भी निम्न घनत्व पॉलिथीन की तरह रासायनिक रूप से अक्रिय होती हैं तथा यह अधिक कठोर और दृढ़ होती हैं। इनमें तन्यता क्षमता भी अत्यधिक पाई जाती है।
उच्च घनत्व पॉलिथीन के उपयोग
- बाल्टी, खिलौने तथा कठोर पाइपों के निर्माण में।
- रसायन में प्रयोग होने वाले पात्रों के निर्माण में उच्च घनत्व पॉलिथीन का उपयोग होता है।
पॉलिविनाइल क्लोराइड PVC
PVC का पूरा नाम पॉलिविनाइल क्लोराइड होता है। इसका निर्माण विनाइल क्लोराइड द्वारा होता है।
रबर
रबर दो प्रकार की होती हैं।
- प्राकृतिक रबर :- रबर एक प्राकृतिक बहुलक है इसे विशेष पेड़ से प्राप्त किया जाता है। इसमें प्रत्यास्थ का गुण पाया जाता है इसलिए इसे प्रत्यास्थ बहुलक भी कहते हैं। यह रबर प्राकृति में ही पाई जाती है इसलिए इसे प्राकृतिक रबर कहते हैं।
प्राकृतिक रबर का उत्पादन वृक्ष की छाल को काटकर उसमें से निकाले गए लैटेक्स द्वारा किया जाता है। लैटेक्स में 25 – 45% रबर पाया जाता है तथा शेष अशुद्धियां
जैसे – प्रोटीन, जल तथा वसीय अम्ल उपस्थित होते हैं। प्राकृतिक रबर आइसोप्रीन का एक बहुलक है। इसे निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है।
![बहुलक](https://gyanchakra.co.in/wp-content/uploads/2023/06/Screenshot_4-110.png)
रबर का वल्कनीकरण
प्राकृतिक रबर उच्च (62°C) ताप पर नर्म और कम ताप (10°C) पर भंगुर हो जाती हैं। यह कम प्रत्यास्थता का गुण प्रदर्शित करती हैं। क्योंकि इसमें तिर्यक बंद नहीं पाया जाता है। अतः इसमें प्रत्यास्थता की मात्रा बढ़ाने के लिए इसकी सल्फर से क्रिया कराते हैं। जिससे प्राकृतिक रबर में सल्फर के तिर्यक बंध बन जाते हैं। यह रबर प्राकृतिक रबर की तुलना में अधिक कठोर हो जाती है। तो इस प्रक्रिया को रबर का वल्कनीकरण कहते हैं। इस विधि में प्राकृतिक रबर को 373 – 415K ताप पर गर्म किया जाता है।
प्राकृतिक रबर का उपयोग
- प्राकृतिक रबर का उपयोग टायर, वाहन पट्टा तथा होज पाइप में किया जाता है।
- गैस सिलेंडर में छल्ले के रूप में।
- ऑक्सीकृत रबर, चक्रीत रबर, एवोनाइट्स आदि के निर्माण में।
- संश्लेषित रबर :- संश्लेषित रबर वल्कनीकरण विधि द्वारा बनाई गई रबर की तरह ही होती है। इसमें प्रत्यास्थता का गुण अधिक पाया जाता है। इसे इसकी लंबाई से दुगुनी तक खींचा जा सकता है। बल हटाने पर यह पुनः अपनी अवस्था में आ जाती है।
कुछ महत्वपूर्ण संश्लेषित रबर का निम्न प्रकार वर्णन किया गया है।
- नियोप्रीन :- नियोप्रीन का निर्माण क्लोरोप्रीन के मुक्त मूलक बहुलीकरण द्वारा किया जाता है
![बहुलक](https://gyanchakra.co.in/wp-content/uploads/2023/06/Screenshot_5-103.png)
पॉलिएमाइड
एमाइड बंध (-CO–NH-) युक्त बहुलकों को पॉलिएमाइड कहते हैं। इनका निर्माण डाइऐमीन अथवा डाइ कार्बोक्सिलिक अम्लों के साथ किया जाता है। पॉलिएमाइड को नायलॉन भी कहते हैं। कुछ महत्वपूर्ण नायलॉन का निर्माण निम्न प्रकार से है।
नायलॉन 6, 6
इसे नायलॉन छह-छह पढ़ा जाता है न कि नायलॉन छियासठ।
इसका निर्माण हेक्सामैथिलीन डाइएमीन तथा एडिटिक अम्ल के उच्च ताप उच्च दाब पर संघनन बहुलीकरण द्वारा किया जाता है।
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नायलॉन 6, 6 एक थर्मोप्लास्टिक है एवं इसे गलित अवस्था में रेशों में ढ़ाला जा सकता है। यह उच्च क्रिस्टलीयता युक्त होता है। इसकी तन्यता, दृढ़ता तथा प्रत्यास्थता अधिक होती है। नायलॉन 6,6 हेक्सामैथिलीन डाइएमीन तथा एडिटिक अम्ल का बहुलक है। इसका गलनांक 450°C(523K) होता है। यह अधिकांश विलायक में अविलेय है यह केवल फिनोल, फॉर्मिक अम्ल तथा क्रिसोल में विलेय है।
नायलॉन 6, 6 के उपयोग :- नायलॉन 6,6 का उपयोग ब्रूशों के शूक, रस्सी तथा वस्त्रों के निर्माण में किया जाता है।
नायलॉन 6
नायलॉन 6 का निर्माण कैप्रोलेक्टम एकलक के बहुलीकरण द्वारा किया जाता है।
![बहुलक](https://gyanchakra.co.in/wp-content/uploads/2023/06/Screenshot_7-95.png)
नायलॉन 6 का उपयोग टायर की डोरियों, वस्त्रों तथा रस्सी के निर्माण में किया जाता है।
फिनोल फार्मेल्डिहाइड रेजिन (बैकेलाइट)
यह एक संघनन बहुलक है। जब फिनोल तथा फॉर्मेल्डिहाइड की क्रिया क्षारीय उत्प्रेरक की उपस्थिति में कराई जाती है। तो फिनोल फॉर्मेल्डिहाइड रेजिन प्राप्त होता है। जिसे बैकेलाइट कहते हैं। इस प्रक्रिया के आरंभ में ऑर्थो और पैरा हाइड्रोक्सी मैथिल फिनोल का निर्माण होता है।
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बैकेलाइट का उपयोग कंघे, फोनोग्राफ रिकॉर्ड, बिजली के स्विच तथा प्लग एवं वार्निश के निर्माण में किया जाता है।
मेलैमीन फॉर्मेल्डिहाइड बहुलक
मेलैमीन बहुलक :- मेलैमीन और फॉर्मेल्डिहाइड के संघनन बहुलक द्वारा इसका निर्माण होता है।
![बहुलक](https://gyanchakra.co.in/wp-content/uploads/2023/06/Screenshot_9-79.png)
इसका उपयोग प्लास्टिक क्रॉकरी, कप प्लेट, डिनर सेट तथा सजावटी सामान के निर्माण में किया जाता है।