अध्याय 2

कक्षा 12 Science रसायन विज्ञान अध्याय 2

विलयन

विलयन

दो या दो से अधिक पदार्थों के समांगी की मिश्रण को विलयन कहते हैं।

उदाहरण-

  • जल में चीनी डालकर पात्र को हिलाने पर चीनी, जल में घुल जाती है। तथा चीनी और जल एक पारदर्शक समांगी मिश्रण बन जाता है। अर्थात विलयन बन जाता है।
  • वायु भी कई प्रकार की गैसों का एक मिश्रण है अर्थात विलयन है।

विलयन के दो घटक होते हैं-

  1. विलेय
  2. विलायक

विलेय :- विलयन का वह घटक जो विलीन होता है अर्थात् जो घुलता है। उसे विलेय कहते हैं।

जैसे – जल में नमक घोलने पर नमक जल में विलीन हो जाता है अर्थात घुल जाता है तब नमक विलेय घटक मिला है।

विलायक :- विलयन का वह घटक जिसमें विलेय घुलते हैं अर्थात् वह घटक जो अधिक मात्रा में 

होता है। उसे विलायक कहते हैं।

जैसे – जल में नमक घोलने पर नमक जल में विलीन हो जाता है अर्थात जल विलायक घटक है।

विलयन की सांद्रता को व्यक्त करने की विधियां

  1. द्रव्यमान प्रतिशत :- 100 ग्राम विलयन में उपस्थित विलेय पदार्थ की ग्राम में मात्रा को विलयन की द्रव्यमान प्रतिशत कहते हैं। अर्थात्

संतृप्त विलयन :- किसी ताप पर जल की एक निश्चित मात्रा में थोड़ी चीनी डालकर उसे हिलाने पर चीनी जल में घुल जाती है। थोड़ी-थोड़ी मात्रा में चीनी को जल में डालकर विलयन को हिलाने पर चीनी का जल में विलेय होता रहता है। लेकिन अंत में एक ऐसी अवस्था आ जाती है जब चीनी का जल में घुलना रुक जाता है। एवं चीनी विलयन के पात्र के नीचे बैठ जाती है इस अवस्था में विलयन को संतृप्त विलयन कहते हैं। अथवा“वह अवस्था जिसमें निश्चित मात्रा के विलायक में और अधिक विलेय पदार्थ घोले जा सकें, तो उस अवस्था में बने विलयन को संतृप्त विलयन कहते हैं

तथा वह विलयन जिसमें उसी ताप पर और अधिक विलेय घोले जा सकें। तो इस प्रकार के विलयन को असंतृप्त विलयन कहते हैं।

परासरण

विलायक के अणुओं का अर्ध पारगम्य झिल्ली में से होकर शुद्ध विलायक से विलयन की ओर प्रवाह परासरण कहलाता है।

अर्ध पारगम्य झिल्ली

वे झिल्लियां जिनमें से केवल विलायक के अणुओं का ही प्रवाह होता है अर्थात इनमें से केवल विलायक के अणु ही आर-पार निकल सकते हैं। विलेय पदार्थ के अणुओं का प्रवाह नहीं होता है। अर्ध पारगम्य झिल्ली कहलाती है।

परासरण दाब

अर्ध पारगम्य झिल्ली द्वारा विलायक से पृथक किए गए विलयन में विलायक के प्रवेश को रोकने के लिए विलयन पर लगाए गए आवश्यक बाह्य बल को परासरण दाब कहते हैं। इसे Π (पी) से प्रदर्शित करते हैं।

परासरण दाब एक अणुसंख्यक के गुणधर्म है।

परासरण दाब, दिए गए ताप पर मोलरता के अनुक्रमानुपाती होता है। अर्थात्

II = MRT

जहां M – मोलरता, R – गैस नियतांक है

जहां w – विलेय का भार, m – विलेय का अणुभार है

परासरण दाब का जैविक महत्व

पौधे एवं जीव जंतुओं का शरीर अनेकों संख्यक कोशिकाओं से मिलकर बना होता है। सभी कोशिकाओं में एक द्रव भरा रहता है जिसे कोशिकाद्रव्य कहते हैं। इन कोशिकाओं की दीवारें एक अर्ध पारगम्य झिल्ली का कार्य करती हैं यह झिल्लियां अपने में से जल का ही प्रवाह होने देती हैं उसमें उपस्थित प्रोटीन, एंजाइम आदि को रोक लेती हैं। अर्थात जल का भूमि से पौधों की जड़ों में और फिर पौधों जड़ों से पौधों के तनों में प्रवाह परासरण के कारण ही होता है।

परासरण दाब के नियम

परासरण दाब के तीन नियम है

  • बायल वांट हाउ नियम
  • चार्ल्स‌‌ वांट हाउ नियम
  • आवोगाद्रो वांट हाउ नियम
  1. बायल वांट हाउ नियम :- इस नियम के अनुसार, स्थिर ताप पर किसी तनु विलयन का परासरण दाब, विलयन की सांद्रता के अनुक्रमानुपाती होता है। अर्थात् Π C

चूंकि विलयन की सांद्रता को मोल/ लीटर में ही व्यक्त करते हैं। तो

  1. चार्ल्स‌‌ वांट हाउ नियम :- इस नियम के अनुसार, स्थिर सांद्रता पर किसी तनु विलयन का परासरण दाब, परमताप के अनुक्रमानुपाती होता है। अर्थात् Π या Π = KT (K – नियतांक)
  2. आवोगाद्रो वांट हाउ नियम :- इस नियम के अनुसार, यदि दो तनु विलयनों के ताप व परासरण दाब समान है तो विलयन के समान आयतन में विलेय के मोलों की संख्या भी समान होगी। अर्थात्

Π1 = Π2

अल्प व अति परासरी विलयन

जब दो विलयनों में एक विलयन का परासरण दाब, दूसरे के परासरण दाब से कम या ज्यादा होता है। तो जिस विलयन का परासरण दाब अधिक होता है। उसे अति परासरी विलयन कहते हैं। एवं जिस विलयन का परासरण दाब कम होता है उसे अल्प परासरी विलयन कहते हैं।

विसरण और परासरण में अंतर

  • परासरण में अर्ध पारगम्य झिल्ली का होना आवश्यक है। जबकि विसरण में अर्ध पारगम्य झिल्ली का होना आवश्यक नहीं है।
  • परासरण की प्रक्रिया केवल द्रव अवस्था में ही होती है। जबकि विसरण की प्रक्रिया ठोस, द्रव तथा गैस तीनों अवस्थाओं में हो
  • परासरण में केवल विलायक के अणु गति करते हैं। जबकि विसरण में विलायक एवं विलेय दोनों के अणु गति करते हैं। ‌

हिमांक में अवनमन

जब किसी शुद्ध विलायक में कोई विद्युत अपघट्य पदार्थ मिलाया जाता है तो विलायक का हिमांक कम हो जाता है। हिमांक में उत्पन्न इस कमी को हिमांक में अवनमन कहते हैं। इसे ∆Tf से प्रदर्शित करते हैं।

हिमांक में अवनमन एक अणुसंख्यक गुणधर्म है।

यदि किसी विलयन में विलायक का हिमांक T1 व विलयन का हिमांक T2 हो तो हिमांक में अवनमन

जहां Kf एक स्थिरांक है जिसे मोलल हिमांक अवनमन स्थिरांक कहते हैं।
यदि M = 1
∆Tf = Kf
अर्थात् यदि विलयन की मोललता एकांक है तो इस दशा में हिमांक अवनमन स्थिरांक विलयन के हिमांक में अवनमन के बराबर होता है।

हिमांक अवनमन तथा विलेय के अणुभार में संबंध

जहां Kf = मोलल अवनमन स्थिरांक
m = विलेय का अणुभार
w = विलेय का भार
W = विलायक का भार
यही हिमांक अवनमन तथा विलेय के अणुभार के बीच संबंध है।

मोलल अवनमन स्थिरांक

किसी विलायक के 1000 ग्राम में किसी अवाष्पशील विलेय पदार्थ के एक मोल को घोलने पर उसके हिमांक में हुई कमी को विलायक का मोलल अवनमन स्थिरांक कहते हैं। इसे Kf से प्रदर्शित करते हैं।

जहां Kf मोलल अवनमन स्थिरांक है। इसका मात्रक केल्विन-किग्रा/मोल होता है।

जल का हिमांक 273 केल्विन मोलल अवनमन स्थिरांक 1.86 होता है।

आंकिक प्रशन

1.50 ग्राम बेंजीन में कोई कार्बनिक यौगिक 0.643 ग्राम मिलाया जाता है। जिसका अणुभार 156 है। तो हिमांक की गणना कीजिए। जबकि Kf का मान 5.12 केल्विन-किग्रा/ मोल है।

हल –
विलेय का भार w = 0.643 ग्राम
विलेय का अणुभार w = 156
विलायक का भार W = 50 ग्राम
मोलल अवनमन स्थिरांक Kf = 5.12K-kg/ mol

क्वथनांक का उन्नयन

जब किसी शुद्ध विलायक में कोई अवाष्पशील विलेय पदार्थ को विलीन किया जाता है तो विलायक के वाष्पदाब में कमी उत्पन्न हो जाती है। विलायक के वाष्पदाब में कमी के कारण विलयन का क्वथनांक, विलायक क्वथनांक से अधिक हो जाता है। अर्थात्
“शुद्ध विलायक में कोई अवाष्पशील विलेय के घोलने पर विलायक के क्वथनांक में होने वाली वृद्धि को क्वथनांक में उन्नयन कहते हैं।”
क्वथनांक का उन्नयन एक अणुसंख्यक गुणधर्म है।
क्वथनांक के उन्नयन को इस प्रकार भी परिभाषित कर सकते हैं कि
वह तो आप जिस पर द्रव का वाष्पदाब, वायुमंडलीय दाब के समान (बराबर) हो जाता है तो उस ताप को द्रव का क्वथनांक कहते हैं।
इसे उदाहरण से समझते हैं जैसे –
जल H2O का क्वथनांक 273 K होता है तो इसका अर्थ है कि जल का वाष्पदाब 273 K ताप पर वायुमंडलीय दाब के बराबर हो जाता है।

यदि किसी विलयन में विलायक का क्वथनांक T1 तथा विलयन का क्वथनांक T2 है तो
क्वथनांक का उन्नयन ∆Tb = T2 – T1
किसी विलयन का क्वथनांक उन्नयन ∆Tb विलयन में विलेय की मोललता M के अनुक्रमानुपाती होता है अतः
∆Tb  M

या

जहां w = विलेय का भार

m = विलेय का अणुभार

W = विलायक का भार

मोलल उन्नयन स्थिरांक 

किसी विलायक के 1000 ग्राम में किसी अवाष्पशील विलेय पदार्थ के 1 मोल को घोलने पर उसके क्वथनांक में होने वाली वृद्धि को विलायक का मोलल उन्नयन स्थिरांक कहते हैं। इसे Kb या K1000 से प्रदर्शित करते हैं।

मोलर उन्नयन स्थिरांक

किसी विलायक के 100 ग्राम में किसी अवाष्पशील विलेय पदार्थ के 1 मोल को घोलने पर उसके क्वथनांक में होने वाली वृद्धि को विलायक का मोलर उन्नयन स्थिरांक कहते हैं। इसे Kb या K100 से प्रदर्शित करते हैं।

Note –
मोलल उन्नयन स्थिरांक और मोलर उन्नयन स्थिरांक दोनों समान ही हैं। दोनों एक जैसे ही लगते हैं सूत्र भी समान हैं।
बस अंतर यह है कि जहां मोलल उन्नयन स्थिरांक होगा वहां 1000 से गुना होगी। और जहां मोलर उन्नयन स्थिरांक होगा वहां 100 से गुणा होगी। दोनों के सूत्र देखें।

आंकिक प्रश्न

1.6 ग्राम यूरिया को 400 ग्राम जल में मिलाकर प्राप्त विलयन का क्वथनांक ज्ञात कीजिए। जबकि जल का मोलल उन्नयन स्थिरांक 0.56 प्रति किलोग्राम है।

हल –
यूरिया का भार m = 6 ग्राम
यूरिया (NH2CONH2) का अणुभार w = 60
जल का भार W = 400 ग्राम
मोलल उन्नयन स्थिरांक = 0.56 kg-1

यह पूरे विलयन का क्वथनांक नहीं है। क्योंकि जल का क्वथनांक 273K या 100°C होता है तो

क्वथनांक = 100 + 0.14

क्वथनांक = 100.14°C 

वाष्पदाब में आपेक्षिक अवनमन

जब कोई अवाष्पशील पदार्थ किसी शुद्ध विलायक में मिश्रित कर दिया जाता है तो विलायक के वाष्पदाब में कमी आ जाती है। जिसे वाष्पदाब में आपेक्षिक अवनमन कहते हैं। वाष्पदाब का आपेक्षिक अवनमन एक अणुसंख्यक गुणधर्म है।

किसी विलयन का वाष्पदाब उसने विलीन विलेय की मात्रा के अनुक्रमानुपाती होता है। अर्थात्
वाष्पदाब में अवनमन विलेय की मात्रा
यदि कोई अवाष्पशील विलेय पदार्थ किसी विलीन करने पर विलयन का वाष्पदाब Ps है। एवं इसमें उपस्थित विलायक का वाष्पदाब Po है। तो
वाष्पदाब में अवनमन = Po – Ps
वाष्पदाब में अवनमन तथा विलायक के वाष्पदाब के अनुपात को वाष्पदाब में आपेक्षिक अवनमन कहते हैं। अर्थात

जहां w = विलेय का भार

m = विलेय का अणुभार

W = विलायक का भार

M = विलायक का अणुभार

आंकिक प्रश्न

कोई अवाष्पशील विलेय पदार्थ जिसका अणुभार 160 है। उसके 16 ग्राम भाग को 100 ग्राम जल में विलीन कर दिया जाता है। तो विलयन के वाष्पदाब की गणना कीजिए। जबकि जल का वाष्पदाब 18mm है।

हल 

दिया है
विलेय का भार w = 16 ग्राम
विलेय का अणुभार m = 160
एवं जल का भार W = 100 ग्राम
जल का अणुभार M = 2 + 2 × 8 18
जल का वाष्पदाब Po = 18mm
विलयन का वाष्पदाब = ?

अणुसंख्यक गुणधर्म

विलयन में उपस्थित वह गुण जो विलेय पदार्थों के मोलों की संख्या पर निर्भर करते हैं। उन्हें अणुसंख्यक गुणधर्म कहते हैं। इसमें विलयन के गुण विलेय के मोलों की संख्या पर निर्भर करते हैं। विलेय की प्रकृति पर निर्भर नहीं करते हैं।

अणुसंख्यक गुणधर्म को चार भागों में बांटा गया है-

  • वाष्पदाब का आपेक्षिक अवनमन
  • क्वथनांक में उन्नयन
  • हिमांक में अवनमन
  • परासरण दाब
  1. वाष्पदाब में अपेक्षिक अवनमन :- जब कोई अवाष्पशील पदार्थ को किसी विलायक में मिलाया जाता है तो विलयन के वाष्पदाब में कमी उत्पन्न हो जाती है। जिसे वाष्पदाब का अवनमन कहते हैं। वाष्पदाब का आपेक्षिक अवनमन विलयन में विलेय की मात्रा के अनुक्रमानुपाती होता है।

यदि शुद्ध विलायक का वाष्पदाब Po एवं इसमें कोई अवाष्पशील विलेय मिलाने पर वाष्पदाब Ps है तो
वाष्पदाब में अवनमन = Po – Ps

तथा वाष्पदाब का अपेक्षिक अवनमन =

जब विलायक शुद्ध अवस्था में होता है तो वाष्पदाब अधिक होता है लेकिन जैसे ही उसमें कोई अवाष्पशील विलेय मिला दिया जाता है तो विलायक के वाष्पदाब में कमी आ जाती है।

  • क्वथनांक में उन्नयन :- जब किसी शुद्ध विलायक में कोई अवाष्पशील विलेय पदार्थ मिला दिया जाता है। तो विलायक के वाष्पदाब में कमी आ जाती है। दाब में कमी के कारण विलयन का क्वथनांक, विलायक के क्वथनांक से अधिक होता है। अर्थात “किसी शुद्ध विलायक में कोई अवाष्पशील विलेय पदार्थ मिलाने पर विलायक के क्वथनांक में वृद्धि को क्वथनांक में उन्नयन कहते हैं।”

यदि विलायक का क्वथनांक T1 तथा विलयन का क्वथनांक T1
2 है तो
क्वथनांक में उन्नयन = T2 – T1

  1. हिमांक में अवनमन :- जब किसी शुद्ध विलायक में कोई अवाष्पशील पदार्थ मिला दिया जाता है तो विलयन के वाष्पदाब में कमी उत्पन्न हो जाती है। अर्थात् विलयन का वाष्पदाब, विलायक के वाष्पदाब से सदैव कम रहता है। अतः विलायक का हिमांक कम हो जाता है हिमांक में उत्पन्न इस कमी को हिमांक में अवनमन कहते हैं।

जहां k = मोलल अवनमन स्थिरांक

w = विलेय का भार

m = विलेय का अणुभार

W = विलायक का भार है।

  1. परासरण दाब :- जब अर्ध पारगम्य झिल्ली द्वारा किसी विलायक का कम सांद्रता के विलयन से ज्यादा सांद्रता के विलयन की ओर प्रवाह परासरण कहलाता है। अर्थात् “अर्ध पारगम्य झिल्ली द्वारा विलायक का एक विलयन से दूसरे विलयन की ओर प्रवेश को रोकने के लिए विलयन पर लगाए गये बाह्य दाब को परासरण दाब कहते हैं।” यह चारों अणुसंख्यक गुणधर्म है इनसे संबंधित प्रशन हर साल वार्षिक परीक्षाओं में पूछा जाता है। तो आप इन्हें जरूर याद करें। या हो सके तो इन चारों के नाम याद रखें चूंकि प्रशन में अणुसंख्यक गुणधर्म के नाम भी पूछ लिये जाते हैं।

आदर्श और अनादर्श विलयन

आदर्श विलयन

वह विलयन जो प्रत्येक सांद्रता पर राउल्ट के नियम का पालन करते हैं उसे आदर्श विलयन कहते हैं।

आदर्श विलयन के गुण

  1. आदर्श विलयन बनाने में मिश्रित एंथैल्पी में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए।अर्थात

∆H = 0

  1. आदर्श विलयन के मिश्रण पर आयतन में कोई परिवर्तन नहीं होता है। अर्थात

∆V = 0

  1. आदर्श विलयन में भाग लेने वाले विलयन के अणुओं की संरचना, आकार एवं रासायनिक गुण बराबर होने चाहिए।

आदर्श विलयन के उदाहरण

  • ब्रोमोएथेन और क्लोरोएथेन का विलयन
  • बेंजीन और टालूईन का विलयन
  • ब्रोमो बेंजीन और क्लोरो बेंजीन का विलयन
  • n-हेक्सेन और n-हेप्टेन का विलयन

अनादर्श विलयन

वह विलयन जो प्रत्येक सांद्रता पर राउल्ट के नियम का पालन नहीं करते है उन्हें अनादर्श विलयन कहते हैं। अनादर्श विलयनों का वाष्पदाब राउल्ट के नियम द्वारा प्रस्तुत वाष्पदाब के या तो अधिक होता है या कम होता है। लेकिन किसी भी स्थिति में समान नहीं होता है।

जब विलयन का वाष्पदाब अधिक होता है तो यह विलयन राउल्ड के नियम से धनात्मक विचलन दर्शाता है लेकिन विलयन का वाष्पदाब कम होता है तो यह विलयन राउल्ट के नियम से ऋणात्मक विचलन दर्शाता है।

अनादर्श विलयन में अणुओं की संरचना, आकार एवं रासायनिक गुण समान नहीं होते हैं।

अनादर्श विलयन के उदाहरण

  • एथिल एल्कोहल और एसीटोन का विलयन, 
  • कार्बन टेट्राक्लोराइड और क्लोरोफॉर्म का विलयन, 
  • एसीटोन और क्लोरोफॉर्म का विलयन

आदर्श विलयन और अनादर्श विलयन में अंतर

  • आदर्श विलयन प्रत्येक ताप पर सांद्रता पर राउल्ट के नियम का पालन करते हैं। जबकि अनादर्श विलयन प्रत्येक ताप सांद्रता पर राउल्ट के नियम का पालन नहीं करते हैं।
  • आदर्श विलयन पर आयतन में कोई परिवर्तन नहीं होता है। जबकि अनादर्श विलयन पर आयतन परिवर्तन होता है।
  • आदर्श विलयन राउल्ट के नियम से कोई विचलित प्रदर्शित नहीं करता हैं। जबकि अनादर्श विलयन राउल्ड के नियम से धनात्मक व ऋणात्मक विचलित प्रदर्शित करता हैं।
  • बेंजीन और टालूईन का विलयन एक आदर्श विलयन है। जबकि एथिल एल्कोहल और एसीटोन का विलयन एक अनादर्श विलयन है।

मोल प्रभाज (अंश)

विलयन में विलेय या विलायक में से किसी एक घटक के मोलों की संख्या तथा विलयन के कुल मोलों की संख्या के अनुपात को मोल प्रभाज कहते हैं। इसे मोल अंश भी कहते हैं। यदि किसी विलयन में विलेय के मोलों की संख्या n तथा विलायक के मोलों की संख्या N है तो

मोललता

1 किलोग्राम विलायक में विलीन विलेय पदार्थ के मोलों की संख्या को विलयन की मोललता कहते हैं।

Note – 

अगर विलायक का द्रव्यमान किलोग्राम में लिया जाएगा तो 1000 से गुणा नहीं होगी। अगर ग्राम में होगा तो 1000 से गुणा करनी होगी।

विलयन
विलयन

उपरोक्त सूत्र से मोललता को इस प्रकार भी परिभाषित कर सकते हैं। कि “1000 ग्राम विलायक में विलेय पदार्थ का 1 मोल विलीन है तो विलयन की मोललता एक होगी।”

मोलरता और मोललता में अंतर

  • 1 लीटर विलयन में विलीन विलेय के मोलों की संख्या को विलयन की मोलरता कहते हैं। जबकि एक किलोग्राम विलायक में विलीन विलेय के मोलों की संख्या को विलयन की मोललता कहते हैं।
  • किसी विलयन की मोललता ताप के साथ परिवर्तित नहीं होती है। जबकि विलयन की मोलरता ताप के साथ परिवर्तित होती है।

मोललता के आंकिक प्रश्न

  1. उस विलयन की मोललता ज्ञात कीजिए, जिसमें 11.7 ग्राम NaCl को 500 ग्राम विलयन में घोला गया है?

हल‌ –

2. 7.45 ग्राम पोटेशियम क्लोराइड को 250 ग्राम जल में घोला जाता है तो विलयन की मोललता ज्ञात कीजिए?

हल‌ –

मोलरता

निश्चित ताप पर एक लीटर विलयन में विलीन विलेय पदार्थ के मोलों की संख्या को विलयन की मोलरता कहते हैं।

विलयन

मोलरता का मात्रक मोल/ लीटर होता है।

मोलरता के उदाहरण

  1. शुद्ध जल का घनत्व 1 ग्राम/मिली होता है। अर्थात् 1 मिली का भार 1 ग्राम होगा। तो जल की सांद्रता = 1000 ग्राम/ ली
विलयन

मोलरता के आंकिक प्रश्न

  1. उस विलयन की मोलरता ज्ञात कीजिए, जिसके 7.45 ग्राम पोटेशियम क्लोराइड (KCl) को 500 मिलीलीटर विलयन में घोला गया हो।

हल – 

विलयन

राउल्ट का नियम

सन 1887 ई० में वैज्ञानिक राउल्ट ने अवाष्पशील पदार्थों के द्रव विलायको में विलयन के वाष्प दाब अवनमन पर अनेकों परीक्षण किये एवं इनसे प्राप्त निष्कर्ष के आधार पर राउल्ट ने एक नियम प्रस्तुत किया, जिसे राउल्ट का नियम कहते हैं। इस नियम के अनुसार,
किसी विलायक में कोई अवाष्पशील विलेय मिलाने पर विलायक का वाष्प दाब का आपेक्षिक अवनमन विलयन में विलेय के मोल प्रभाज के बराबर होता है। यही राउल्ट का नियम कहलाता है।

माना किसी विलायक का वाष्प दाब Po एवं उसके अणुओं की संख्या N हो, तो इसमें विलेय पदार्थ के n अणु मिलाने पर विलयन का वाष्प दाब Ps है तो

इस समीकरण को राउल्ट के नियम का समीकरण या राउल्ट का सूत्र कहते हैं। यह समीकरण उस विलयन के लिए ही मान्य है जिसमें अवाष्पशील विलेय घुले हों।

उपरोक्त सूत्र के आधार पर राउल्ट का नियम इस प्रकार भी व्यक्त किया जा सकता है कि “विलयन का वाष्प दाब विलयन में विलय के मोल प्रभाज के समानुपाती होता है।”

जहां Po = शुद्ध विलायक का वाष्प दाब
Ps = शुद्ध विलयन का वाष्प दाब
N = विलायक के मोलो की संख्या
n = विलेय मोलो की संख्या
w = विलेय भार
m = विलेय अणुभार
W = विलायक का भार
M = विलायक का अणुभार

राउल्ट के नियम की सीमाएं

  • राउल्ट का नियम तनु विलयन के लिए मान्य है सांद्र विलयन राउल्ट के नियम से विचलन दर्शाता है।
  • विद्युत अपघट्य के विलयनों पर राउल्ट का नियम लागू नहीं होता है।
  • यह नियम केवल अवाष्पशील विलेय के विलयनों पर लागू होता है।
  • इसमें ताप स्थिर रहना चाहिए।
  • यह नियम केवल आदर्श विलयनों पर ही लागू होता है अनादर्श विलयन पर नहीं।

विलेयता 

निश्चित ताप पर किसी पदार्थ की वह अधिकतम मात्रा जो विलायक की एक निश्चित मात्रा में घूलकर एक संतृप्त विलियन का निर्माण करती है। उसे पदार्थ की विलेयता कहते हैं। विलेयता का मान विलेय तथा विलायक की प्रकृति, ताप व दाब पर निर्भर करता है।

विलेयता का सूत्र

निश्चित ताप पर 100 ग्राम विलायक में विलेय पदार्थ की ग्राम में जितनी अधिक मात्रा घोली जा सकती है उसे विलेयता कहते हैं।

ठोसों की द्रवों में विलेयता

निश्चित ताप पर किसी द्रव विलायक में ठोस पदार्थ की घूली हुई वह अधिकतम मात्रा जिससे संतृप्त विलयन का निर्माण हो सके, उसे ठोस की द्रव में विलेयता कहते हैं।

ठोसों की द्रवों में विलेयता को प्रभावित करने वाले कारक

  1. ताप का प्रभाव :- साधारणतः पदार्थों की विलेयता ताप बढ़ाने पर बढ़ती है। क्योंकि जब कोई पदार्थ किसी विलायक में घूलता है तो उसमें ऊष्मा अवशोषित होती है।
  2. विलेय और विलायक की प्रकृति पर :- विलायक मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं। 

ध्रुवी विलायक, अध्रुवी विलायक।

साधारणतः किसी विलायक पदार्थ में वे पदार्थ ही विलेय होते हैं जिनकी प्रकृति विलायक के समान ही होती है। आयनिक व ध्रुवी पदार्थ, ध्रुवी विलायको में घुलते हैं। अध्रुवी पदार्थ, अध्रुवी विलायको में विलेय होते हैं।

    1. विलेय के कणों के आकार पर :– किसी क्रिस्टलीय ठोस के छोटे-छोटे कण बड़े कणों की अपेक्षा जल्दी विलेय हो जाते हैं।
  • सम आयन प्रभाव :- विलयन में सम आयन की उपस्थिति में साधारणतः अल्प विलेय लवणों की विलेयता कम हो जाती है।
    उदाहरण – NaCl की अपेक्षा AgCl की जल में विलेयता अधिक होती है। क्योंकि क्लोराइड आयन Cl की उपस्थिति AgCl की विलेयता को कम कर देती है।

गैसों की द्रवों में विलेयता

अगर देखा जाए तो अधिकतम गैसें जल में विलेय होती हैं लेकिन इनमें से कुछ गैसें जल के अतिरिक्त अन्य विलायको में भी घूल जाती हैं। इसे ही गैसों की द्रवों में विलेयता कहते हैं। इसे अवशोषण गुणांक α से प्रदर्शित करते हैं।

गैसों की द्रवों में विलेयता को प्रभावित करने वाले कारक

  • ताप का प्रभाव :- साधारणतः गैस से द्रवों में विलेय होती हैं। अतः ताप बढ़ाने पर गैसों की द्रवों में विलेयता घट जाती है।
  • दाब का प्रभाव :- दाब बढ़ाने पर गैसों की द्रवों में विलेयता बढ़ती है। गैसों की द्रवों में विलेयता के प्रभाव को हेनरी नियम से स्पष्ट किया जा सकता है।
  • गैस तथा द्रव की प्रकृति :- जो गैसें द्रव से अभिक्रिया कर लेती हैं तब उनकी विलेयता अधिक होती है एवं जो गैसें द्रव से अभिक्रिया नहीं करती हैं तो उनकी विलेयता कम होती है।<br> जैसे – CO2, NH3 जल से अभिक्रिया करती है अर्थात इनकी विलेयता अधिक होती है।
    जबकि H2, O2 जल से अभिक्रिया नहीं करती हैं अर्थात इनकी विलेयता कम होती है।

हेनरी का नियम

इस नियम के अनुसार, स्थिर ताप पर किसी गैस की विलेयता उस गैस के दाब के अनुक्रमानुपाती होती है।
यदि किसी निश्चित ताप तथा साम्य दाब P पर किसी गैस की घुलन मात्रा (विलेयता) m ग्राम है। तो हेनरी के नियम के अनुसार
m P
m = kHP
जहां k < sub > H < /sub > एक नियतांक है जिसे हेनरी नियतांक कहते हैं।

< b >हेनरी नियतांक संबंधी कुछ बिंदु < /b>

  • हेनरी नियतांक kH का मान गैस की प्रकृति पर निर्भर करता है।
  • ताप बढ़ाने पर हेनरी नियतांक kH का मान बढ़ता है।
  • हेनरी नियतांक kH का मान स्थिर ताप पर अलग-अलग गैसों के लिए अलग-अलग होता है।
  • हेनरी नियतांक का मान जिस गैस के लिए जितना ज्यादा होता है उस गैस की विलेयता उतनी ही कम होती है।

हेनरी के नियम की सीमाएं

  1. हेनरी का नियम केवल आदर्श गैस के लिए ही मान्य है।
  2. हेनरी का नियम इन गैसों पर लागू होता है जब विलयन से कोई रसायनिक अभिक्रिया नहीं करती हैं।
  3. इसमें विलयन का दाब बहुत अधिक नहीं होना चाहिए।
  4. इसमें विलयन का ताप बहुत कम नहीं होना चाहिए।
  5. गैसों की विलेयता बहुत अधिक नहीं होनी चाहिए।
  6. यह नियम इन गैसों के नियम मान्य नहीं है जो किसी द्रव (जल) में विलेय होकर आयनों में विघटित हो जाती हैं।

हेनरी नियम के अनुप्रयोग

  1. सोडा जल या शीतल पेय पदार्थों में CO(कार्बन डाइऑक्साइड) की विलेयता बढ़ाने के लिए इन पदार्थों को अधिक दाब पर बोतल में बंद किया जाता है।
  2.  अधिक ऊंचाई के स्थानों पर ऑक्सीजन का आंशिक दाब कम ऊंचाई यह समतल स्थान की अपेक्षा कम होता है। अतः यहां पर रहने वाले व्यक्ति के रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है जिसके कारण शरीर कमजोर हो जाता है। एवं इनकी सोचने की शक्ति भी कम हो जाती है। इन लक्षणों को एनोक्सिया कहते हैं।
  3. जब समुंदरी गोताखोर समुद्र के अंदर जाते हैं तो गोताखोर को अधिक दाब पर गैसों की घुलनशीलता का सामना करना पड़ता है। समुद्र के बाहर का दाम अधिक होने के कारण वायुमंडलीय गैसों की रक्त में विलेयता बढ़ जाती है।< b r > जब गोताखोर बाहरी सतह की ओर आने लगते हैं तो दाब कम होने लगता है। दाब के कम होने के कारण रुधिर में उपस्थित गैसें (नाइट्रोजन) बुलबुले के रूप में बाहर निकलती है। जिससे कोशिकाओं में रुकावट उत्पन्न हो जाती है यह एक चिकित्सीय अवस्था उत्पन्न कर देती है जिसे वेंट्स कहते हैं। इस घातक स्थिति से बचने के लिए गोताखोरों द्वारा सांस लेने में एक प्रयोग होने वाले टैंकों में हीलियम गैस मिलाई जाती है।
  4. ऊंचे स्थानों पर ऑक्सीजन की मात्रा कम होती है जिसके कारण वहां दाब भी कम हो जाता है इससे रुधिर में ऑक्सीजन की मात्रा कम विलेय होती है। जिससे यहां के व्यक्तियों में एनोक्सिया नामक बीमारी उत्पन्न हो जाती है।

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