अध्याय 1

कक्षा 12 Science भौतिकी अध्याय 1

वैद्युत आवेश

वैद्युत आवेश (Electric Charge)

वैद्युत आवेश पदार्थ का वह गुण है जिस कारण वह वैद्युत एवं चुम्बकीय प्रभाव उत्पन्न करता है या इनका अनुभव करता है। विद्युत आवेश एक अदिश भौतिक राशि है।

वैद्युत आवेश दो प्रकार का होता है:-

धन आवेश (Positive Charge):किसी वस्तु पर धन आवेश, उसकी सामान्य अवस्था से इलेक्ट्रॉनों की कमी को प्रदर्शित करता है।

ऋण आवेश (Negative Charge):- किसी वस्तु पर ऋण आवेश, उसकी सामान्य अवस्था से इलेक्ट्रॉनों की अधिकता को प्रदर्शित करता है।

वैद्युत आवेशों के गुण (Properties of Electric Charges):- विद्युत् आवेशों में सजातीय आवेशों के बीच प्रतिकर्षण बल तथा विजातीय आवेशों के बीच आकर्षण बल कार्य करता है। यह आवेश का एक महत्वपूर्ण गुण है।  

आवेशों का क्वान्टीकरण (Quantization of Charges):- आवेशों का क्वान्टीकरण किसी आवेशित वस्तु पर आवेश एक न्यूनतम आवेश (e) के सरल गुणक के रूप में ही हो सकता है अर्थात् वैद्युत आवेश को अनिश्चित रूप से विभाजित नहीं किया जा सकता है। अतः किसी वस्तु पर आवेश Q =± ne न जहाँ, n = 12,3, …..

आवेशों का संरक्षण (Conservation of Charges):– इस सिद्धांत अनुसार आवेश न तो नष्ट किया जा सकता है और न ही उत्पन्न किया जा सकता केवल एक वस्तु से दूसरी वस्तु पर स्थानान्तरण सम्भव है,इसे ही आवेश सरंक्षण का सिद्धांत कहते है।

किसी वस्तु पर कुल आवेश उसे दिए गए अलग – अलग आवेशों के बीजगणितीय योग के बराबर होता है।

आवेश सदैव द्रव्यमान सम्बद्ध रहता है अर्थात् आवेश द्रव्यमान रहित नहीं हो सकता है जबकि द्रव्यमान आवेश रहित हो सकता है।

स्थिर अवस्था में आवेश केवल वैद्युत क्षेत्र एवं एकसमान गति की अवस्था में वैद्युत एवं चुम्बकीय क्षेत्र दोनों तथा त्वरित गति की अवस्था में वैद्युत एवं चुम्बकीय क्षेत्र के साथ वैद्युत चुम्बकीय विकिरण उत्पन्न करता है।

वैद्युत आवेश के मात्रक (Units of Electric Charge)

आवेश का SI मात्रक ‘ ऐम्पियर सेकण्ड ‘ या ‘ कूलॉम ‘ है। इसके अन्य छोटे मात्रक मिलीकूलॉम (mC) या माइक्रोकूलॉम (μC) हैं आवेश का (CGS) मात्रक स्टैट कूलॉम (stat coulomb) या स्थिर वैद्युत मात्रक है आवेश का वैद्युत चुम्बकीय मात्रक ऐब कूलॉम है

 1 कूलॉम 3 ×109  स्टैट कूलॉम ऐब =1/10`कूलॉम 

आवेशन की विधियाँ (Methods of Charging)

किसी वस्तु को निम्न विधियों द्वारा आवेशित किया जा सकता है:-

(a) घर्षण द्वारा (By Friction) 

जब दो वस्तुओं को आपस में रगड़ते हैं तो उनके मध्य इलेक्ट्रॉनों के स्थानान्तरण के कारण, ये वस्तुएँ आवेशित हो जाती हैं दोनों वस्तुओं पर बराबर तथा विपरीत प्रकार के आवेश उत्पन्न होते हैं।

उदाहरण:

(i) जब एक काँच की छड़ को रेशम के कपड़े से रगड़ा जाता है, तो काँच की छड़ धनावेशित एवं रेशम का कपड़ा ऋणावेशित हो जाता है।

(ii) ऐबोनाइट (ebonite rod) की छड़ को ऊन से रगड़ने पर ऐबोनाइट की छड़ ऋणावेशित तथा ऊन धनावेशित हो जाती है।

(b) स्थिर वैद्युत प्रेरण द्वारा (By Electro Static Induction)

यदि एक आवेशित वस्तु को किसी अनावेशित वस्तु के समीप लाएँ तो अनावेशित वस्तु की पास वाली सतह पर विपरीत प्रकृति का आवेश एवं दूर वाली सतह पर समान प्रकृति का आवेश उत्पन्न हो जाता है।

इस घटना को स्थिर वैद्युत प्रेरण कहा जाता है। प्रेरण विधि द्वारा वस्तु पर प्रेरित आवेश की अधिकतम मात्रा Q=Q[1-1/K] हो सकती है। जहाँ Q, प्रेरक वस्तु पर आवेश तथा K, अनावेशित वस्तु का परावैद्युतांक है।

वैद्युत आवेश

(c) चालन द्वारा (By Conduction)

किसी आवेशित चालक को किसी अनावेशित चालक के सम्पर्क में लाने पर, दोनों चालकों पर समान प्रकृति का आवेश फैल जाता है। इसे सम्पर्क द्वारा आवेशन कहा जाता है।

कूलॉम का नियम (coulomb’s law)

1785 में, Charles Augustine Coulomb (C.A coulomb) ने दो बिंदु आवेशों के बीच आकर्षण और प्रतिकर्षण बल का मान ज्ञात करने के लिए कूलॉम के नियम के रूप में जाना जाने वाला एक नियम बनाया।

कूलॉम के नियम (Coulomb’s law) भौतिक विज्ञान का एक नियम है जो स्थिर इलेक्ट्रिक चार्ज कणों के बीच लगता है।

इस नियम के अनुसार:- “इस नियम के अनुसार: “दो आवेशों के बीच बल उन दोनों आवेशों के मान के  समानुपाती होते हैं और उनकी दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होते हैं।”

कूलॉम के नियम का गणितीय निरूपण:

मान लीजिए कि दो आवेश q1 और q2  r दूरी पर स्थित हैं, तो उनके बीच आकर्षण या प्रतिकर्षण का बल F है। आवेश का बल दोनों आवेशों के परिमाण के गुणनफल के समानुपाती होता है। अर्थात

वैद्युत आवेश

अत: स्पष्ट है कि F12 = –F21​​ अर्थात् दोनों आवेश एक दूसरे पर बराबर व विपरीत दिशा में स्थिर वैद्युत बल लगाते हैं जोकि आवेशों को मिलाने वाली रेखा के अनुदिश होते हैं।

कूलाम के नियम की सीमाएं

  1. यह नियम केवल स्थिर आवेशों के लिए ही सत्य है, गतिशील आवेशों के लिए नहीं|
    2.यह नियम केवल बिंदु आवेशों  के लिए सत्य है|

3. यह नियम 10-15 मीटर से कम दूरियों पर लागू नहीं होता है|

वैद्युत क्षेत्र (Electric Field)

किसी आवेश के चारों ओर का वह स्थान अथवा क्षेत्र जिसे एक अन्य वैद्युत आवेश प्रभावित करता है, वैद्युत क्षेत्र कहलाता है वैद्युत क्षेत्र में किसी बिन्दु पर रखे परीक्षण – आवेश पर लगने वाले बल तथा परीक्षण – आवेश के मान की निष्पत्ति को उस बिन्दु पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता E कहते हैं

विद्युत क्षेत्र, अंतरिक्ष में प्रत्येक बिंदु से जुड़ा एक विद्युत गुण जब चार्ज किसी भी रूप में मौजूद होता है।

अत : यदि वैद्युत क्षेत्र में किसी बिन्दु पर रखे परीक्षण आवेश q पर लगने वाला बल F हो, तो उस बिन्दु पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता 

E=Fq

बल F एक सदिश राशि है तथा आवेश q एक अदिश राशि है

अत : वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता E भी एक सदिश राशि है, जिसकी दिशा वैद्युत क्षेत्र में उस बिन्दु पर रखे धन आवेश पर लगने वाले बल की होती है

उपरोक्त समीकरण के अनुसार वैद्युत क्षेत्र E का मात्रक न्यूटन / कूलॉम होगा

विद्युत् क्षेत्र एक सदिश राशि है। किसी बिंदु पर विद्युत् क्षेत्र को निम्न तीन प्रकार से व्यक्त किया जाता है:-

    1. बिन्दु की स्थिति के सदिश फलन (vector function of position of the point) द्वारा – इसे E से प्रदर्शित करते हैं तथा वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता (Intensity of electric field) कहते हैं
    2. ग्राफीय विधि द्वारा वैद्युत बल रेखाओं (electric lines of force) से
  • बिंदु की  स्थिति के अदिश  फलन (scalar function of position of the point) द्वारा – इसे V से प्रदर्शित करते हैं तथा वैद्युत विभव कहते हैं

वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता (Electric Field Intensity) 

वैद्युत क्षेत्र में किसी बिन्दु पर, वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता (E) उस बिन्दु पर रखे परीक्षण आवेश के प्रति एकांक धन आवेश (unit positive charge) पर आरोपित वैद्युत बल के बराबर होती है

यदि परीक्षण – आवेश q पर कार्यरत बल F है, तब वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता,

वैद्युत आवेश

विधुत क्षेत्र का SI मात्रक

विद्युत क्षेत्र की SI इकाई न्यूटन/कूलाम  है।

विमीय सूत्र

 यह एक सदिश राशि है जिसकी विमा = E = F/q = MLT-2/AT = M1L1T-3A-1

यदि किसी स्थान पर वैद्युत क्षेत्र एक से अधिक आवेश के कारण हो, तो परिणामी वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता, E = E1 + E2 + E3 +…

विद्युत क्षेत्र सूत्र

एक विद्युत क्षेत्र को प्रति यूनिट आवेश के रूप में विद्युत बल भी कहा जाता है। विद्युत क्षेत्र का सूत्र इस प्रकार दिया गया है; E = F / q

विद्युत क्षेत्र और उसकी इकाई

विद्युत क्षेत्र और चुंबकीय क्षेत्र दोनों विद्युत चुम्बकीय बल की अभिव्यक्तियाँ हैं, जो प्रकृति के चार मूलभूत बलों (या इंटरैक्शन) में से एक है।  

विद्युत क्षेत्र के लिए व्युत्पन्न SI इकाइयाँ वोल्ट प्रति मीटर (V / m) होती हैं, बिल्कुल न्यूटन प्रति कूलॉम  (N / C) के बराबर।

वैद्युत बल रेखायें (Electric Lines of Force) 

वैद्युत बल – रेखा वैद्युत क्षेत्र में खींचा गया वह काल्पनिक, निष्कोण वक्र है, जिस पर एक स्वतन्त्र व पृथक्कृत एकांक धन आवेश चलता है

अत : हम किसी भी वैद्युत क्षेत्र को वैद्युत बल रेखाओं द्वारा प्रदर्शित कर सकते हैं

वैद्युत क्षेत्र में किसी बिन्दु पर इन रेखाओं के लम्बवत् स्थित तल में एकांक क्षेत्रफल से गुजरने वाली बल रेखाओं की संख्या, उस बिन्दु पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता के अनुक्रमानुपाती होती है

वैद्युत बल रेखाओं के निम्नलिखित गुण हैं

  • वैद्युत बल रेखायें धनात्मक आवेश से प्रारम्भ होती हैं तथा ऋणात्मक आवेश पर समाप्त होती हैं
  • वैद्युत बल रेखायें धन आवेश से शुरू होकर ऋण आवेश पर समाप्त होती हैं, ये रेखायें बन्द पाश नहीं बनाती हैं
  • यह एक काल्पनिक रेखा है जिसके किसी बिन्दु पर खींची गयी स्पर्श रेखा उस बिन्दु पर परिणामी वैद्युत क्षेत्र की दिशा प्रदर्शित करती हैं
  • एक बिन्दु आवेश q से उत्पन्न हुई बल रेखाओं की संख्या q/0 होती है
  • दो बल रेखायें एक – दूसरे को नहीं काटती हैं
  • किसी धन आवेश से निकलने वाली अथवा ऋण आवेश की ओर जाने वाली बल रेखाओं की संख्या, आवेश के परिमाण के अनुक्रमानुपाती होती है आवेश + 2q -q पर केवल 8 रेखायें पहुँचती हैं 16 बल रेखायें निकलती हैं तथा आवेश -q पर केवल 8 रेखाये पहुँचती है

विद्युत फ्लक्स

वैद्युत फ्लक्स (Electric Flux) वैद्युत क्षेत्र में किसी पृष्ठ से लम्बवत् गुजरने वाली फ्लक्स रेखाओं की संख्या को उस पृष्ठ से बद्ध ‘ वैद्युत फ्लक्स ‘ कहते हैं इसे अक्षर ϕ से प्रदर्शित करते हैं

इसका मान E व ds के अदिश (डॉट) गुणन के बराबर होता है किसी पृष्ठ अवयव ds से गुजरने वाला वैद्युत फ्लक्स

विद्युत फ्लक्स फार्मूला (Electric Flux formula in Hindi)

dϕ = E.ds

ϕ = Edscosθ

जहाँ 0 वैद्युत क्षेत्र E व क्षेत्रफल सदिश dS के मध्य कोण है विद्युत फ्लक्स एक अदिश राशि है इसका मात्रक न्यूटन – मी/ कूलॉम और वोल्ट–मी है इसका विमीय सूत्र ML3T-3A-1 है

Φ = EA

Φ = EAcosθ

θ < 90 तो फ्लक्स धनात्मक

θ = 90 तो फ्लक्स शून्य

θ > 90 तो फ्लक्स ऋणात्मक

जब विद्युत क्षेत्र पर बन्द पृष्ठ में प्रवेश कर रहा है तो फ्लक्स (अर्थात पष्ठ के अन्दर की ओर जाने वाला फ्लक्स) ऋणात्मक है और जब विद्युत क्षेत्र बन्द पष्ठ से बाहर निकल रहा है तो फ्लक्स (अर्थात् बाहर की ओर आने वाला फ्लक्स) धनात्मक है तथा जब क्षेत्र पृष्ठ के समान्तर है तो विद्युत फ्लक्स शून्य होता है।

(i) विद्युत क्षेत्र एकसमान है और पृष्ठ समतल है

(Electric Field is Uniform and Surface is Plane)

पृष्ठ के सूक्ष्म क्षेत्रफल अवयव dS से गुजरने वाला विद्युत फ्लक्स

  • यदि विद्युत क्षेत्र सतह के लंबवत है,

फिर लंबवत के साथ विद्युत क्षेत्र E का कोण शून्य है, इसलिए cos0 = 1

  ϕ= E.dS cosθ

  ϕ = E.S

  • यदि विद्युत क्षेत्र सतह के समानांतर है।

E लंबवत साथ कोण = 90 होगा।

इसलिए cos90 = 0

ϕ = E.dS cos90

ϕ = 0

वैद्युत फ्लक्स (Electric Flux) का मात्रक,विमा

वैद्युत फ्लक्स का मात्रक =  N.m2.C-1

वैद्युत फ्लक्स की विमा =  ML3T-3A-1

विद्युत फ्लक्स की निर्भरता

(Dependence of Electric Flux)

(i) किसी पृष्ठ से गुजरने वाला कुल विद्युत फ्लक्स पृष्ठ द्वारा घेरे गए कुल आवेश तथा माध्यम पर, निर्भर करता है।

(ii) किसी पृष्ठ से गुजरने वाला कुल विद्युत फ्लक्स पृष्ठ की आकृति एवं आकार तथा पृष्ठ के अन्दर आवेशों के वितरण पर निर्भर नहीं करता है

विद्युत फ्लक्स से सम्बंधित महत्वपूर्ण बिंदु :-

  • विद्युत फ्लक्स एक वास्तविक अदिश राशि है।
  • विद्युत फ्लक्स की इकाई वोल्ट × मीटर होती है।
  • विद्युत फ्लक्स की विमा या विमीय सूत्र ML3T-3A-1 होती है।
  • किसी बंद वस्तु से बाहर निकलने वाला फ्लक्स धनात्मक तथा अन्दर प्रविष्ठ होने वाला फ्लक्स ऋणात्मक माना जाता है।
  • यह अधिकतम होगा जब cosθ अधिकतम = 1 (θ = 0), अत: विद्युत क्षेत्र तीव्रता सदिश सतह के क्षेत्रफल पर अभिलम्बवत होगा एवं (dϕ)max = E.dS
  • विद्युत फ्लक्स न्यूनतम होगा यदि cosθ न्यूनतम = 0, (θ = 90), अत: यदि विद्युत क्षेत्र, सतह के सामानांतर होगा एवं  (dϕ)min = 0

गॉस का नियम

गॉस का नियम (Gauss’s Law) इस नियम के अनुसार किसी बन्द पृष्ठ से गुजरने वाला कुल विद्युत फ्लक्स उसके अन्दर उपस्थित कुल आवेश 1/ε0 का गुना होता है

ϵ0 = निर्वात (वायु) की विद्युत शीलता

Q = पृष्ठ द्वारा परिबद्ध कुल आवेश

k = माध्यम का परावैद्युतांक

Φ = कुल फ्लक्स

गॉस के नियम से सम्बंधित महत्वपूर्ण बिंदु

  • गॉसीय सतह से गुजरने वाला फ्लक्स उसके आकार पर निर्भर नहीं करता है।
  • गॉसीय सतह से गुजरने वाला फ्लक्स गॉसीय सतह के अन्दर आवेश की स्थिति पर निर्भर नहीं करता है।
  • गॉसीय सतह से गुजरने वाला फ्लक्स केवल सतह के अन्दर कुल आवेश पर निर्भर करता है।
  • किसी बंद सतह में आने वाले फ्लक्स को ऋणात्मक और बाहर जाने वाले फ्लक्स को धनात्मक माना जाता है।
  • किसी गॉसीय सतह में Φ = 0 का अर्थ यह नहीं है कि प्रत्येक बिंदु पर E = 0 है लेकिन प्रत्येक बिंदु पर E = 0 का अर्थ Φ = 0 होता है।
  • गॉसीय सतह पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता गॉसीय पृष्ठ के अन्दर और बाहर उपस्थित सभी आवेशो के कारण होती है।
  • गॉस का नियम  केवल उन्हीं क्षेत्रों के लिए लागू होता है जो कूलाम के व्युत्क्रम वर्ग के नियम का पालन करते हैं।
  • गॉस का नियम  निर्वात एवं माध्यम दोनों के लिए लागू किया जा सकता है।
  • यदि गॉसियन पृष्ठ (gaussian surface) के अंदर अलग-अलग आवेश रखे जाते हैं तो कुल आवेश अलग-अलग आवेशों के बीजीय योग के बराबर होते हैं।
  • Total charge q = q + 2q + 3q 4q + 9q = 11q
  • बंद पृष्ठ से निर्गत विद्युत फ्लक्स का मान बंद पृष्ठ के अंदर आवेशों के वितरण पर भी निर्भर नहीं करता है।

गॉस के नियम के अनुप्रयोग (Applications of Gauss’s law) 

  • किसी पृष्ठ से गुजरने वाला विद्युत फ्लक्स ज्ञात करते समय विद्युत क्षेत्र सभी आवेशों के कारण होता है, चाहे वह गॉसीय पृष्ठ के अन्दर बाहर
  • किसी गॉसीय सतह के बाहर स्थित आवेश के विद्युत क्षेत्र के कारण, सतह गुजरने वाला कुल फ्लक्स शून्य होगा क्योंकि इस आवेश के कारण बल रेखाएँ सतह के अन्दर जाती हैं, उतनी ही बाहर आती हैं
  • यदि कोई विद्युत द्विध्रुव किसी बन्द पृष्ठ में स्थित हो तब पृष्ठ से गुजरने वाला कुल विद्युत फ्लक्स शून्य होता है

वैद्युत द्विध्रुव (Electric Dipole)

वैद्युत द्विध्रुव वह निकाय है जिसमें दो बराबर परन्तु विपरीत प्रकार के बिन्दु – आवेश एक – दूसरे से अल्प दूरी पर स्थित होते हैं किसी एक आवेश तथा दोनों आवेशों के बीच की अल्प दूरी के गुणनफल को वैद्युत द्विध्रुव का आघूर्ण कहते हैं

P = q × 2a = 2qa

P = q × 2a

चित्र में प्रदर्शित वैद्युत द्विध्रुव का आघूर्ण P = q × 2a इसका मात्रक कूलॉम – मीटर ‘ है दो आवेशों को मिलाने वाली रेखा को द्विध्रुवीय अक्ष कहा जाता है

विद्युत द्विध्रुवीय क्षण का मान किसी आवेश के परिमाण और दो आवेशों के बीच की दूरी के गुणनफल के बराबर होता है। तथा यह एक सदिश राशि है, जिसकी दिशा ऋणावेश से धनावेश की ओर होती है

वैद्युत द्विध्रुव  के कारण वैद्युत क्षेत्र व वैद्युत विभव (Electric Field and Electric Potential due to Electric Dipole) 

यदि वैद्युत द्विध्रुव AB आवेशों + q तथा – q आवेशों से मिलकर बना है  जिनके बीच की दूरी 2a है वैधुत द्विध्रुव के केन्द्र o से r दूरी पर स्थित बिन्दु p पर

एकसमान वैद्युत क्षेत्र में रखे वैद्युत द्विध्रुव (Electric Dipole in Uniform Electric Field) 

(i) यदि वैद्युत द्विध्रुव वैद्युत क्षेत्र के समान्तर स्थित है तो द्विध्रुव पर कुल बल शून्य होता है

(ii) वैद्युत क्षेत्र में क्षेत्र से 0 कोण पर रखे वैद्युत पर आरोपित बल आघूर्ण

    = pE sinθ

जहाँ θ, p व E के मध्य कोण हैं

(iii) द्विध्रुव को वैद्युत क्षेत्र में e कोण पर घुमाने में किया गया कार्य 

W = pE (coseθ1 – cosθ2)

(iv) द्विध्रुव को क्षेत्र से 9 कोण पर घुमाने में द्विध्रुव की वैद्युत स्थितिज ऊर्जा 

U = -pEcosθ

वेक्टर स्वरूप में, U = -p . E 

(a) यदि 0 = 0°, तथा U = + pE (न्यूनतम), अत : द्विध्रुव वैद्युत क्षेत्र में स्थायी सन्तुलन होता है

(b) यदि 0 = 180° तथा U = + pE (अधिकतम), अत : द्विध्रुव वैद्युत अस्थायी सन्तुलन में होता है।

स्थिर – वैद्युत स्थितिज ऊर्जा

दो अथवा अधिक आवेशों को एक – दूसरे से दूर ले जाने अथवा समीप लाने में कुछ कार्य करना पड़ता है यह कार्य उन आवेशों के निकाय में स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है जिसे स्थिर निकाय की वैद्युत स्थितिज ऊर्जा कहते हैं

  • स्थिर – वैद्युत स्थितिज ऊर्जा का मात्रक ‘ जूल ‘ है
  • यदि दोनों आवेश सजातीय हैं तो ये एक – दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैंतब इन्हें एक दूसरे के समीप लाने में प्रतिकर्षण के विरुद्ध कार्य करना पड़ता है
  • जिससे निकाय की स्थितिज ऊर्जा बढ़ती है यदि इन्हें एक – दूसरे से दूर लेकर जाते हैं तो स्वयं निकाय से कार्य प्राप्त होता हैजिससे निकाय की स्थितिज ऊर्जा घटती है
  • यदि आवेश विपरीत प्रकार के (विजातीय) हैं तो एक – दूसरे को आकर्षित करते हैं अत : इस दशा में उन्हें परस्पर समीप लाने में निकाय स्वयं कार्य करता है अत : स्थितिज ऊर्जा घटती है
  • यदि इन्हें एक – दूसरे से दूर ले जायें तो निकाय पर कार्य करना पड़ता है अत : निकाय की स्थितिज ऊर्जा बढ़ती है

अत : आवेशों के किसी निकाय की वैद्युत स्थितिज ऊर्जा उन आवेशों को अनन्त से परस्पर समीप लाकर निकाय की रचना करने में किए गए कार्य के बराबर होती है

 q1 आवेश को अनन्त से q2 आवेश के वैद्युत क्षेत्र में बिन्दु P तक लाने में किया गया कार्य,यह ही निकाय की स्थितिज ऊर्जा है

एकसमान रूप से आवेशित गोले की स्थिर- वैद्युत स्थितिज ऊर्जा 

(Electro – static Potential Energy of a Uniformely Charged Sphere) 

किसी आवेशित गोले की स्थितिज ऊर्जा उस कार्य के बराबर होगी जो आवेश Q को अनन्त से गोले पर व्यवस्थित करने में करना पड़ता है यदि R त्रिज्या के गोले पर q आवेश एकसमान रूप से वितरित हो तब गोले की स्थिर  वैद्युत स्थितिज ऊर्जा,

तीन आवेशों से मिलकर बने निकाय की स्थिर – वैद्युत स्थितिज ऊर्जा (Electro – static Potential Energy of System of Three Charges) 

तीन आवेशों q1, q2 व q3 से मिलकर बने निकाय की स्थिर-वैद्युत स्थितिज ऊर्जा

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