अध्याय 3

कक्षा 12 Science भौतिकी अध्याय 3

विद्युत धारा

वैद्युत धारा (Electric Current)

किसी पृष्ठ से आवेश के प्रवाह की दर को वैद्युत धारा कहते हैं

सभी गतिमान आवेशों द्वारा धारा स्थापित नहीं होती है यदि किसी पृष्ठ के किसी क्षेत्रफल से कुल आवेश q, समयान्तराल t में पृष्ठ लम्बवत् एक ओर से दूसरी ओर स्थानान्तरित होता तो उस क्षेत्रफल से गुजरने वाली औसत वैद्युत धारा

विद्युत धारा

धारा की दिशा

धनात्मक आवेश के प्रवाह की दिशा में

ऋणात्मक आवेश के प्रवाह के विपरीत दिशा में अर्थात इलेक्ट्रॉन की गति के विपरीत दिशा में। 

vidyut dhara ka SI matrak

वैद्युत धारा का SI मात्रक =  ऐम्पियर (A)

विद्युत् धारा का मात्रक = कुलाम /समय  = Cs-1 

विद्युत् धारा की विमा = यह मूल राशि है इसलिए इसकी विमा Aहोती है।

विद्युत धारा का प्रकार

दिष्ट धारा (Direct Current – DC)

जिस धारा का परिमाण एवं दिशा नियत रहती है उसे दिष्ट धारा कहते है।

यदि धारा की दिशा नियत तथा परिमाण परिवर्ती हो, तो उसे परिवों दिष्ट धारा (varying DC) कहते हैं।

उदाहरणार्थ संधारित्र की आवेशन तथा निरावेशन क्रिया में प्रवाहित धारा

प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current – AC) 

वह धारा जिसका परिमाण तथा दिशा समय के साथ परिवर्तनशील होते हैं तथा एक निश्चित समय T (दोलनकाल अथवा आवर्तकाल) के बाद अपनी पूर्व अवस्था में आ जाते हैं प्रत्यावर्ती धारा (AC) कहलाती है T/2 समय के लिए धारा धनात्मक तथा अगले T/2 समय के लिए धारा ऋणात्मक होती है धारा तथा समय के बीच वक्र एक ज्या (अथवा कोज्या) वक्र होता है

 इसका आयाम नियत रहता है 

विद्युत धारा

वैद्युत धारा के सन्दर्भ में निम्न तथ्य महत्त्वपूर्ण हैं:

  1. अन्तर्राष्ट्रीय पद्धति के अनुसार, धारा की दिशा धन आवेशों के चलने की दिशा अर्थात् वैद्युत क्षेत्र की दिशा में तथा ऋण आवेशों के चलने की दिशा के विपरीत होती है
  2. वैद्युत धारा एक अदिश राशि है
  3. किसी चालक में प्रवाहित धारा चालक के अनुप्रस्थ काट में होने वाले परिवर्तन से अप्रभावित रहती है
  4. चालक में धारा प्रवाहित होने पर चालक वैद्युत उदासीन रहता है
  5. विद्युत धारा को एम्पीयर में मापा जाता है। करंट का एक एम्पीयर एक सेकंड में एक विशिष्ट बिंदु से आगे बढ़ने वाले विद्युत आवेश के एक युग्मन का प्रतिनिधित्व करता है।

ओम का नियम (Ohm’s Law)

जर्मन वैज्ञानिक वैज्ञानिक जॉर्ज साइमन ओम ने प्रयोग द्वारा पता लगाया कि एक चालक के सिरों पर लागू विभवांतर और उसमें बहने वाले विद्युत धारा के बीच एक निश्चित संबंध है, जिसे ओम का नियम कहा जाता है।

यदि भौतिक जैसे ताप  आदि अवस्थायें नियत रखीं जाए तो ओम के नियम (Ohm’s Law) के अनुसार किसी प्रतिरोधक (या, अन्य ओमीय युक्ति) के सिरों के बीच उत्पन्न विभवान्तर उससे प्रवाहित विधुत धारा के समानुपाती होता है।“

ओम का नियम सूत्र -Ohm’s law formula 

V I

या, 

V = I × R

V = वोल्टेज,  वोल्ट (V) 

I = करंट, विधुत धारा, एम्पीयर (A) 

R = प्रतिरोध, ओम (ohm,Ω

  • वोल्टेज या विभवांतर v का मान बढ़ाने पर धारा का मान भी बढ़ता है |
  • यदि चालक के विभवांतर (वोल्टेज) और धारा (वर्तमान) के बीच ग्राफ खीचे तो एक सरल रेखा प्राप्त होती है जो बताती है की विभवांतर के बढने पर धारा भी बढ़ेगी और विभवांतर के कम होने पर धारा भी होगी |
विद्युत धारा
  • ओम का लॉ मेटल कंडक्टर के लिए ही लागू होता है |
  • प्रोफेसर जॉर्ज साइमन ओम ने 1827 में इस नियम का प्रस्ताव रखा था

ओम के नियम की सीमाएं

  • यदि तापमान या दबाव जैसी भौतिक स्थितियों को स्थिर नहीं रखा जाता है तो ओम का नियम वांछित परिणाम नहीं दे सकता है।
  • ओम का नियम अर्धचालक और एकतरफा उपकरणों जैसे डायोड के व्यवहार की व्याख्या करने में विफल रहता है। डायोड और ट्रांजिस्टर जैसे एकतरफा विद्युत तत्वों के लिए ओम का नियम लागू नहीं है क्योंकि वे करंट को केवल एक दिशा में प्रवाहित करने की अनुमति देते हैं।
  • ओम का नियम ज्यादातर परिस्थितियों में केवल धातुओं पर लागू होता है।
  • इलेक्ट्रॉनिक सर्किट में ओम का नियम लागू नहीं होता है।
  • ओम का नियम ऐसी धातुओं पर लागू नहीं होता है जो विद्युत प्रवाह के प्रवाह से गर्म होती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि गर्म होते ही धातुओं का प्रतिरोध भी बदल जाता है।
  • ऐसे प्रतिरोधक जो रैखिक नहीं हैं जैसे डायोड, ट्रांजिस्टर, वैक्यूम ट्यूब, गैस ट्यूब आदि भी ओम के नियम को लागू नहीं करते हैं।
  • ओम का नियम इलेक्ट्रोलाइट्स पर भी लागू नहीं होता है।
  • कुछ उपकरणों जैसे कि मेटल रेक्टिफायर्स, क्रिस्टल डिटेक्टरों में, ओम का नियम लागू नहीं होता है।
  • आर्क लैंप के लिए ओम का नियम भी सही नहीं है।
  • वैसे, सभी सर्किट जिनके विद्युत गुण विद्युत प्रवाह की दिशा पर निर्भर करते हैं, वे ओम के नियम का पालन नहीं करते हैं।

ओम के नियम का उपयोग 

  • विद्युत सर्किट के वोल्टेज, प्रतिरोध याविधुत धारा का निर्धारण करने के लिए।
  • ओम के नियम का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक घटकों में वांछित वोल्टेज ड्रॉप को बनाए रखने के लिए किया जाता है।
  • ohm के नियम का उपयोग dc ammeter और अन्य dc शंट में करंट को मोड़ने के लिए भी किया जाता है।

ओम का नियम का सवाल

उदाहरण 1: यदि विद्युत लोहे का प्रतिरोध 50 ohm है और प्रतिरोध के माध्यम से  3.2 A विधुत धारा प्रवाह होता है। दो बिंदुओं के बीच वोल्टेज का पता लगाएं।

हल :

V = I × R 
V = 3.2 A × 50 = 160 V 
V = 160V

उदाहरण 2: 8.0 V का EMF स्रोत विशुद्ध रूप से प्रतिरोधक विद्युत उपकरण (एक प्रकाश बल्ब) से जुड़ा है। 2.0 A का विद्युत प्रवाह इसके माध्यम से बहता है। प्रतिरोध तारों को प्रतिरोध मुक्त मानें। विद्युत उपकरण द्वारा प्रस्तुत प्रतिरोध की गणना करें।

हल : जब हमें वोल्टेज और करंट के मान दिए जाने पर प्रतिरोध का मान ज्ञात करने के लिए कहा  है, 

R = V / I 

R = 8 V  / 2 A = 4 Ω 

R = 4Ω

उदाहरण 3: एक विधुत  जनित्र 500 वोल्ट पर विधुत  शक्ति उत्पन्न कर रहा है इस शक्ति को दो तारों के द्वारा 5 किलोमीटर की दूरी पर भेजा जाता है प्रत्येक तार का प्रतिरोध 0.01 ओम / मी है तारों के दूसरे सिरों के बीच जुड़े  900 ओम के प्रतिरोध (लोड) के सिरों के बीच कितना विभवान्तर प्राप्त होगा? 

हल : 

तारा का प्रतिरोध  0.01 × 5000 × 2 = 100 ओम 

I = V/R

I = 500 / (100+900)

I = 0.5 A

V = IR

V = 0.5 × 900 = 450 volt

ओम के नियम का उपयोग करके विद्युत शक्ति की गणना करना

P = VI

V = IR

P = I2 R

किरचॉफ के परिपथ के नियम

किरचॉफ के परिपथ के नियम का पहला नियम  – किरचॉफ का धारा(current) का नियम
(Kirchhoff’s current law-KCL)

प्रथम नियम किरचॉफ  का धारा(current) का नियम (Kirchhoff’s current law-KCL) – किसी विद्युत परिपथ  में किसी भी बिंदु या जंक्शन पर पाए जाने वाले धाराओं का बीजगणितीय योग शून्य होता है।

या

विद्युत परिपथों में, बिंदु या जंक्शन पर आने वाली धाराओं का योग वहाँ से जाने वाली धाराओं के योग के बराबर होता है।

विद्युत धारा

I3 + I4 + I6 = I1 +I2 + I5 

इस नियम को किरचॉफ का धारा का नियम (किरचॉफ करंट लॉ (KCL)) भी कहते हैं। यह नियम आवेश के सरंक्षण पर आधारित है।

दिए गए परिपथ में i3 का मान ज्ञात करे –

SOL.

दिए गए नोड पर किरचॉफ  का धारा(current) का नियम  को लागू करें।

i1 + i= i3 + i4  ज्ञात मान को प्रतिस्थापित करें 

2 + 9 = i+ 4 i3 के लिए हल करें 

i3 = 7A

किरचॉफ के परिपथ के नियम का द्वितीय नियम– किरचॉफ का विभवान्तर(voltage) का नियम
(Kirchhoff’s voltage law-KVL)

इस नियम के अनुसार किसी विद्युतीय नेटवर्क के किसी बंद परिपथ में सभी स्रोतों के विभवों का बीजगणितीय योग और सभी प्रतिरोधको में होने वाली वोल्टेज ड्रॉप का बीजगणितीय योग शून्य होता है।

या

लूप के भीतर सभी वोल्टेज का बीजगणितीय योग शून्य के बराबर होना चाहिए। किरचॉफ के विचार को ऊर्जा के संरक्षण के रूप में जाना जाता है।

इस नियम को मेश लॉ, किरचॉफ के वोल्ट लॉ, यानी KVL के रूप में भी जाना जाता है।

किरचॉफ के नियम का सूत्र क्या है?

ΣV = 0

इस नियम का उपयोग करने के लिए निम्न बिन्दुओ का ध्यान रखना होता है 

    1. किसी प्रतिरोध पर धारा की दिशा में चलते हुए, प्रतिरोध का विभव परिवर्तन ऋणात्मक (-iR) होता है, चित्र (a) 
    2. किसी प्रतिरोध पर धारा की विपरीत दिशा में चलते हुए, प्रतिरोध पर विभव परिवर्तन धनात्मक (+iR) होता है, चित्र (b) 
    3. किसी बैटरी अथवा emf स्रोत पर इसके ऋणात्मक इलैक्ट्रोड से धनात्मक इलैक्ट्रोड की ओर चलने पर, विभव में परिवर्तन धनात्मक (+E) होता है चित्र (c) 
  • किसी बैटरी अथवा emf  स्रोत पर इसके धनात्मक सिरे से ऋणात्मक सिरे की ओर चलने पर विभव में परिवर्तन ऋणात्मक (- E) होता है, चित्र (d)

दिए गए परिपथ में धारा का मान ज्ञात करे

-10i + 5 – 20i – 2 = 0 

i= 0.1 A

व्हीटस्टोन सेतु (Wheatstone’s Bridge)

व्हीटस्टोन ब्रिज एक सरल सर्किट है जिसमें तीन ज्ञात और एक अज्ञात प्रतिरोध, एक गैल्वेनोमीटर और एक विद्युत सेल एक दूसरे से जुड़े होते हैं। इस सर्किट की मदद से, अज्ञात प्रतिरोध का मान निर्धारित किया जाता है।

सर्किट का निर्माण पहली बार 1843 में इंग्लैंड में वैज्ञानिक प्रोफेसर व्हीटस्टोन ने किया था। प्रोफेसर व्हीटस्टोन के सम्मान में, इस सर्किट को व्हीटस्टोन ब्रिज कहा जाता है।

व्हीटस्टोन सेतु सिद्धांत, संरचना

व्हीटस्टोन सेतु (Wheatstone’s Bridge) यह चार प्रतिरोधों की एक व्यवस्था है जिनमें से एक प्रतिरोध अज्ञात होता है तथा शेष तीन ज्ञात होते हैं चित्र में व्हीटस्टोन सेतु दिखाया गया है।

भुजा AB व BC को अनुपातिक भुजा तथा AD a DC संयुग्मी भुजाएँ कहलाती हैं

जब प्रदर्शित गैल्वेनोमीटर में कोई विक्षेप नहीं होता अर्थात् Ig = 0 तब सेतु सन्तुलित कहा जाता है इस स्थिति में बिन्दु B व D मान विभव पर होते हैं

व्हीटस्टोन ब्रिज फॉर्मूला

`P/Q = R/S` 

इस सूत्र में, यदि तीन प्रतिरोधों का मान पहले से ज्ञात है, तो चौथे अज्ञात प्रतिरोध का मान आसानी से निर्धारित किया जा सकता है। इस सूत्र में, यदि किन्हीं दो प्रतिरोधों का अनुपात ज्ञात हो, तो तीसरे प्रतिरोध का मान ज्ञात किया जा सकता है।

व्हीटस्टोन सेत् में बैटरी तथा गैल्वेनोमीटर आपस में बदले जा सकते हैं दोनों ही स्थितियों में गैल्वेनोमीटर में शून्य विक्षेप स्थिति प्राप्त होती है 

व्हीटस्टोन ब्रिज एप्लीकेशन-व्हीटस्टोन ब्रिज का उपयोग 

  1. व्हीटस्टोन पुल का उपयोग कम प्रतिरोध के सटीक माप के लिए किया जाता है।
  2. Wheatstone Bridge के साथ ऑपरेशनल एम्पलीफायर का उपयोग तापमान, प्रकाश और तनाव जैसे भौतिक मापदंडों को मापने के लिए किया जाता है।
  3. व्हीटस्टोन पुल पर विविधताओं का उपयोग करके  impedance, inductance, and capacitance जैसी मात्राओं को मापा जा सकता है।

व्हीटस्टोन ब्रिज की सीमाएँ

उच्च प्रतिरोध माप के लिए, पुल द्वारा प्रस्तुत माप इतना बड़ा है कि गैल्वेनोमीटर असंतुलन के लिए असंवेदनशील है।

मीटर सेतु (Meter Bridge) 

मीटर सेतु (Meter Bridge) मीटर ब्रिज एक प्रयोगात्मक उपकरण है जो एक समान अनुप्रस्थ काट तार से बना है जो व्हीटस्टोन ब्रिज के सिद्धांत के आधार पर अज्ञात प्रतिरोध के मान को निर्धारित करता है। 

मीटर सेतु (Meter Bridge) संरचना – 

मीटर सेतु में एक मीटर लम्बा मैंगनीन या कान्सटेन्टन से बना तार एक लकड़ी के आधार पर सम्बन्धक पेचों a तथा c के मध्य, खिंचा हुआ, व्यवस्थित रहता हैतार का अनुप्रस्थ काट एक समान है तार की लंबाई के साथ एक मीटर की लंबाई  का पैमाना है।

सम्बन्ध पेचों a तथा c को ताँबें / पीतल से बनी L आकृति की पट्टियों  M एवं N से जोड़ देते हैं J एक कुंजी है जो तार ac पर खिसकाई जा सकती है कुंजी का तार पर सम्पर्क बिन्दु b अभीष्ट तार को दो भुजाओं ab तथा bc में विभाजित करता हैएक ताँबे की पट्टी I, पट्टियों M एवं N के मध्य लगी होती है पट्टियों M तथा N एवं I के मध्य रिक्त स्थान होता है पट्टियों पर सम्बन्ध पेंच लगे होते हैं जिनकी सहायता से प्रतिरोधों को जोड़ा  जाता है 

मीटर सेतु (Meter Bridge) कार्यप्रणाली –

मीटर सेतु के खाली स्थानों के मध्य क्रमशः एक प्रतिरोध बॉक्स (RB) तथा अज्ञात प्रतिरोध जिसका मान ज्ञात करना है को सम्बन्धक पेचों की सहायता से जोड़ देते हैं 

बिन्दु a एवं c के मध्य एक लेक्लांशी सेल धारा नियन्त्रक तथा कुंजी K लगा देते हैं संयोजक पेच d एवं विसी कुंजी के मध्य एक धारामापी (G) जोड़ते हैं इस स्थिति में मीटर सेतु व्हीटस्टोन सेतु की तरह कार्य करता है 

प्रतिरोध बॉक्स में से कोई प्रतिरोध R निकालते हैं तथा कुंजी को तार के सिरे पर रखकर दबाते हैं इसी प्रकार सिरे पर रखकर दबाते हैं दोनों स्थितियों में धारामापी में विक्षेप की दिशा को प्रेक्षित करते हैं ये विपरीत होनी चाहिए 

यदि दोनों स्थितियों में विक्षेप एक ही दिशा में प्राप्त हो तो प्रतिरोध बॉक्स में से इस प्रकार का प्रतिरोध निकालते हैं कि विक्षेपों की दिशा परस्पर विपरीत हो जाए 

अब प्रतिरोध बॉक्स में से लिए गए ज्ञात प्रतिरोध R तथा अज्ञात प्रतिरोधक को नियत रखकर विसी कुंजी (J) को तार पर आगे पीछे खिसका कर वह स्थिति ज्ञात करते हैं जिस पर धारामापी में शून्य विक्षेप प्राप्त हो जाए

इस स्थिति में व्हीटस्टोन सेतु संतुलन अवस्था में होता हैं यदि अविक्षेप की स्थिति तार के बिन्दु b पर प्राप्त होती है तो तार का भाग ab प्रतिरोध P की तरह एवं भाग bc प्रतिरोध Q की तरह व्यवहार करते है संतुलन अवस्था में

मीटर सेतु (Meter Bridge) की सीमाएँ 

  • मीटर सेतु के लिए सूत्र की व्युत्पत्ति में ताँबे की पट्टियों के प्रतिरोधों को नगण्य माना गया है वस्तुतः इनका भी कुछ प्रतिरोध होता है इससे परिणाम में त्रुटि आ जाती है

इस त्रुटि को दूर करने के लिए प्रतिरोध बॉक्स तथा अज्ञात प्रतिरोध के स्थानों को आपस में बदलकर अज्ञात प्रतिरोध का मान ज्ञात करना चाहिए इस प्रकार प्राप्त दो पाठयांकों का औसत लेने पर त्रुटि कम हो जाती है

  • मीटर सेतु में अंत्य सिरों (end points) के प्रतिरोधों के कारण इसकी सुग्राहिता प्रभावित होती है इसलिए अंत्य सिरों के प्रतिरोधों के प्रभाव को लुप्त करने के लिए ” कैरी – फॉस्टर सेतु ‘ का उपयोग किया जाता है
  • तार में अधिक देर तक विद्युत धारा प्रवाहित नहीं करनी चाहिए अन्यथा तार गर्म हो जाएगा, फलस्वरूप तार के प्रतिरोध में परिवर्तन हो जाएगा
  • कुंजी को तार पर रगड़कर नहीं चलाना चाहिए ऐसा करने से तार की मोटाई सब स्थानों पर एक समान नहीं रहेगी

विभवमापी (Potentiometer)

विभुवमापी (Potentiometer) विभवमापी एक ऐसा उपकरण (instruments) है जिसकी सहायता से हम किसी परिपथ का विभवान्तर या विद्युत वाहक बल को शुद्धता से माप कर सकते  है 

यह परिपथ से कोई धारा न लेकर विभवान्तर को मापता है परिपथ में बहने वाली धारा वास्तविक मान से कुछ कम होती है जिसके कारण वोल्टमीटर की तुलना में विभवमापी विभवान्तर को अधिक शुद्धता से मापता है

सिद्धान्त तथा कार्यविधि: एक ऐसा उपकरण जिसकी सहायता से किसी विभवान्तर या विद्युत वाहक बल का मापन करते है इसे विभवमापी कहते है, इस युक्ति की सहायता से शुद्धता से विभवान्तर का मापन किया जाता है।

विभवमापी दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर मापने की एक आदर्श युक्ति device) है इसमें एकसमान अनुप्रस्थ काट का एक लम्बा प्रतिरोधक तार AB होता है जिसमें एक बैटरी की सहायता से धारा स्थापित होती है

एक पोटेंशियोमीटर एक विद्युत उपकरण है जिसका उपयोग सर्किट के दो बिंदुओं के बीच वोल्टेज को मापने के लिए किया जाता है

इसकी सुग्राहिता अत्यधिक होती है यह केवल विद्युत वाहक बल या विभवान्तर मापता है यह शून्य विक्षेप विधि पर आधारित है

विभवमापी की संरचना (Construction of Potentiometer)- 

विभवमापी में मुख्यतः उच्च विशिष्ट प्रतिरोध (high specific resistance) व निम्न प्रतिरोध ताप गुणांक (low temperature coefficient) की मिश्र धातु (alloys) (जैसे – कॉन्स्टेन्टन या मैगनिन आदि) का 4 से 12 मीटर लम्बा एक समान व्यास (diameter) का एक तार होता है  एक – एक मीटर के फेरों (turns) के रूप में धातु की घिरनियों (pulleys) से होकर गुजरता है। अथवा एक – एक मीटर लम्बे टुकड़े ताँबे की पत्तियों द्वारा सिरों पर जुड़े होते हैं। 

प्रारंभिक एवं अंतिम सिरे A व B संयोजक पेंचों से जोड़ दिये जाते हैं। तारों की लम्बाई के समान्तर एक मीटर पैमाना लगा रहता है। जिसके द्वारा जॉकी की सहायता से पाठ्यांक (reading) लिया जाता है।

संरचना चित्र

विभवमापी के अनुप्रयोग (Applications of Potentiometer) 

(i) अज्ञात बैटरी का विद्युत वाहक बल ज्ञात करना (To find emf of an unknown battery) 

निम्न परिपथों (a) तथा (b) में E2, के स्थान पर क्रमश : ज्ञात स्रोत Ek तथा अज्ञात स्रोत Eu लगाए गए हैं

(ii) अज्ञात बैटरी का आन्तरिक प्रतिरोध ज्ञात करना (To find internal resistance of unknown battery) 

पहले सेल E को लम्बाई AD = l1, पर सन्तुलित करते है इसके लिए, स्विच S’ को खोल देते है तथा S को बन्द कर देते हैं एक ज्ञात प्रतिरोध R सेल से चित्रानुसार जोड़ते हैं

विभवमापी की सुग्राहिता (Sensitivity of Potentiometer) 

किसी विभवमापी को अत्यधिक सुग्राही कहा जाता है यदि यह अत्यन्त सूक्ष्म विभवान्तर को भी अधिक शुद्धता से मापता है

एक  विभवमापी को अत्यधिक संवेदनशील कहा जाता है यदि यह अधिक सूक्ष्मता के साथ सबसे सूक्ष्म वोल्टेज को मापता है।

(i) विभवमापी की सुग्राहिता इसकी विभव प्रवणता द्वारा निर्धारित होती है सुग्राहिता विभव प्रवणता के व्युत्क्रमानुपाती होती है 

(ii) विभवमापी की सुग्राहिता बढ़ाने के लिए 

(a) प्राथमिक परिपथ का प्रतिरोध घटाना होगा  

(b) विभवमापी तार की लम्बाई बढ़ानी होगी ताकि अधिक लम्बाई से अधिक शुद्धता आ सके

वोल्टमीटर व विभवमापी में अंतर 

वोल्टमीटर इसका प्रतिरोध उच्च किन्तु निश्चित होता विद्युत वाहक बल स्रोत से कुछ धारा इसमें से होकर बहती है 

इसके द्वारा मापा गया विभवान्तर वास्तविक विभवान्तर से कम होता है इसकी सुग्राहिता कम होती है यह एक बहुउपयोगी यत्र है यह विक्षेप विधि पर आधारित है

विभवमापी इसका प्रतिरोध उच्च तथा अनन्त होता है विद्युत वाहक बल स्रोत से कोई धारा इसमें से होकर नहीं बहती इसके द्वारा गया विभवान्तर वास्तविक विभवान्तर के बराबर होता है

इसकी सुग्राहिता अत्यधिक होती है यह केवल विद्युत वाहक बल या विभवान्तर मापता है यह शून्य विक्षेप विधि पर आधारित है

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