अध्याय-4

कक्षा 6 गणित अध्याय-4

आधारभूत ज्यामितीय अवधारणाएँ

ज्यामिती

इतिहासकारों के अनुसार, प्राचीन समय में ज्यामितीय अवधारणाएँ संभवत: कला, वास्तु कला या शिल्प-कला (Architecture ) और भूमि मापन की आवश्यकताओं के कारण विकसित हुईं। इनमें वे अवसर भी सम्मिलित हैं जब खेतिहर की भूमि की परिसीमाओं (boundaries ) को बिना किसी शिकायत की संभावना रखते हुए, अंकित किया जाता था।

ज्यामिति का एक लंबा और शानदार (बहुमूल्य) इतिहास है। शब्द ‘ज्यामिति’ (Geometry) यूनानी शब्द जिओमीट्रोन (Geometron) का अंग्रेजी तुल्य है। जिया (Geo) का अर्थ है ‘भूमि’ और ‘मीट्रोन (Metron) का अर्थ है ‘मापना’।

आधारभूत ज्यामितीय अवधारणाएँ

ज्यामिति की परिभाषा

ज्यामिति रेखागणित या ज्यामिति गणित की तीन विशाल शाखाओं में से एक हैं ज्यामिति के अंतर्गत बिंदुओं, रेखाओं, तलों और ठोस चीजों के गुण तथा इसके स्वभाव, मापन और उनके अंतरिक्ष में सापेक्षिक स्थिति के बारे में अध्ययन किया जाता हैं।

सबसे पहले जब भूमि का नाम लिया गया तब ज्यामिति की शुरुआत हुई इसलिए तब से इसे भूमिति भी कहाँ गया।

शुरुआत में यह अध्ययन रेखाओं से घिरे क्षेत्रों के गुणों तक ही सीमित रहा जिसके कारण ज्यामिति का नाम रेखागणित भी हैं।

ज्यामिति में प्रयुक्त होने वाले कुछ महत्वपूर्ण अंग:

  1. बिंदु: बिंदु (Point) एक स्थिति (या अवस्थिति) (Location) निर्धारित करता है।
  2. रेखाखंड: दो बिन्दुओं को मिलाने वाली रेखा को रेखाखंड कहते हैं। जैसे: किसी सतह पर अवस्थिति बिंदु A और B को मिलाने वाली रेखा को रेखाखंड AB कहते हैं।

बिंदु

बिंदु (Point in geometry)यह समतल में एक स्थिति को बताने के लिए एक सूक्ष्म चिन्ह है। इसमें न लम्बाई होती है और न ही चैड़ाई।

कलम या पेंसिल की नोक को कागज पर दबाने से जो निशान प्राप्त होता है उसे बिंदु कहते हैं

जीरो त्रिज्या वाले वृत्त को बिंदु कहते हैं

“बिंदु”- बिना आकृति व आकार वाले गणित संकेतिक चिन्ह को बिंदु कहते है। यह समतल में एक स्थिति को बताने के लिए एक सूक्ष्म चिन्ह है।

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बिंदु की विशेषताएँ

  • बिंदु की लम्बाई शून्य होती है।
  • बिंदु की चौड़ाई शून्य होती है।
  • बिन्दु का क्षेत्रफल शून्य होता है।
  • बिंदु का आयतन शून्य होता है।

ज्यामिति के सूत्र

  • वर्ग की परिमाप = 4 × a
  • वर्ग का क्षेत्रफल = (भुजा × भुजा) = a²
  • वर्ग का क्षेत्रफल = ½ × (विकर्णो का गुणनफल) = ½ × d²
  • आयत का परिमाप = 2(लम्बाई + चौड़ाई)
  • घन का आयतन = भुजा × भुजा × भुजा = a³
  • घन का परिमाप = 4 a²
  • घन का विकर्ण = √3 × भुजा
  • आयत का क्षेत्रफल = लंबाई × चौड़ाई
  • आयत का विकर्ण = √(लंबाई² + चौड़ाई²)
  • समलम्ब चतुर्भुज का क्षेत्रफल = ½ (समान्तर भुजाओं का योग x ऊंचाई)
  • समलम्ब चतुर्भुज का परिमाप P = a + b+ c + d
  • विषमकोण चतुर्भुज का क्षेत्रफल = ½ × दोनों विकर्णो का गुणनफल
  • समचतुर्भुज की परिमाप = 4 × एक भुजा
  • समचतुर्भुज का सम्पबंध = (AC)² + (BD)² = 4a²
  • चक्रीय चतुर्भुज का क्षेत्रफल = √[s(s – a) (s – b) (s – c) (s – c)]
  • चक्रीय चतुर्भुज का परिमाप = ½ (a + b + c + d)
  • वृत्त का क्षेत्रफल = π r²
  • वृताकार वलय का क्षेत्रफल = π (R² – r²)
  • अर्द्धवृत्त का क्षेत्रफल = ½ πr²
  • त्रिज्याखण्ड का क्षेत्रफल = θ/360° × πr²
  • चाप की लम्बाई = θ/360° × 2πr
  • वृतखण्ड का क्षेत्रफल = (πθ/360° – ½ sinθ)r²
  • घनाभ का आयतन = l × b × h
  • घनाभ का परिमाप = 2(l + b) × h
  • घनाभ के सम्पूर्ण पृष्ठ का क्षेत्रफल = 2(lb + bh + hl)
  • कमरें के चारों दीवारों का क्षेत्रफल = 2h (l + b)
  • बेलन का आयतन = πr²h
  • बेलन का वक्रपृष्ठ का क्षेत्रफल = 2πrh
  • बेलन का सम्पूर्ण पृष्ठ का क्षेत्रफल = 2πr (h + r)
  • शंकु का आयतन = πr²h
  • शंकु के वक्र पृष्ठ का क्षेत्रफल = πrl
  • गोले का वक्रपृष्ठ का क्षेत्रफल = 4πr²
  • गोला का आयतन = ⁴⁄₃ πr³
  • अर्द्ध गोला का आयतन = ²⁄₃ πr³

कोण (Angle)

  1. समकोण (Right Angle) :- जिस कोण की एक भुजा का मान 90° हो वो समकोण कहलाता हैं।
  2. न्यूनकोण (Acute Angle) :- जिस कोण की माप 90° से कम होती हैं उसे न्यूनकोण कहते हैं।
  3. अधिक कोण (Obtuse Angle) :- किसी कोण की माप 90° से अधिक किन्तु 180° से कम होती हैं उसे अधिक कोण कहते हैं।
  4. पुनयुक्त कोण (Reflex Angle) :- जो कोण दो समकोण से बड़ा किन्तु चार समकोण से छोटा होता हैं उसे पुनयुक्त कोण कहते हैं।
  5. ऋजुकोण (Straight Angle) :- जिस कोण की माप 180° के बराबर हैं उसे ऋजुकोण कहते हैं।
  6. कोटीपुरक कोण (Complementary) :- यदि दो कोणों की मापों का जोड़ 90° हो तो वे परस्पर पूरक या कोटीपुरक कहलाते हैं।
  7. सम्पूरक कोण (Supplementary) :- यदि दो कणों की मापों का जोड़ 180° हो तो वे परस्पर सम्पूरक कोण कहलाते हैं।

ज्यामिति से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु

  1. यदि कोई किरण किसी रेखा पर आधारित हो तो इस प्रकार बने दो आसन्न कोणों का योग 180° होता हैं।
  2. त्रिभुज के तीनों कोणों का योग 180° होता हैं।
  3. चतुर्भुज के चारों कोणों का योग 360° होता हैं।
  4. n भुजाओं के संबहुभुज का प्रत्येक अन्तः कोण = (2n – 4)/n समकोण होता हैं।
  5. n भुजाओं के संबहुभुज का प्रत्येक बहिष्कोण = 4/n समकोण होता हैं।
  6. यदि किसी त्रिभुज की एक भुजा बड़ाई जाए तो इस प्रकार बना बहिष्कोण दो अभिमुख अन्तः कोणों के योग के बराबर होता हैं।
  7. किसी त्रिभुज की समान भुजाओं के सम्मुख कोण बराबर होते हैं।
  8. किसी चाप द्वारा केंद्र पर बनाया गया कोण उस चाप द्वारा व्रत के शेष भाग पर स्थित किसी बिंदु पर बनाए गए कोंण का दुगुना होता हैं।
  9. एक ही वृतखण्ड के कोण समान होते हैं।
  10. किसी चक्रीय चतुर्भुज के सम्मुख कोणों का योग 180° होता हैं। एक ही आधार पर तथा एक ही समांतर रेखाओं के मध्य बने समांतर चतुर्भुजों के क्षेत्रफल बराबर होते हैं।
  11. एक समकोण त्रिभुज के कर्ण का वर्ग अन्य दो भुजाओं के वर्गों के योग के बराबर होता हैं।
  12. यदि एक त्रिभुज का कोण दूसरे त्रिभुज के कोण के बराबर हो और ये भुजाएं, जिनके अंतर्गत ये कोण हैं एक ही अनुपात में हों तो त्रिभुज समरूप होते हैं।
  13. त्रिभुज की माध्यिकाओं के कटान बिंदु को त्रिभुज का मध्य केंद्र कहते हैं।
  14. किसी त्रिभुज की भुजाओं के लम्ब समद्विभाजक जिस बिंदु से होकर जाते हैं उसे परिकेन्द्र कहते हैं।
  15. त्रिभुज के कोणों में समद्विभाजक जिस बिंदु पर मिलते हैं, उसे त्रिभुज का अन्तः केंद्र कहते हैं।
  16. किसी त्रिभुज में शीर्ष बिंदुओ से सम्मुख भुजाओं पर डाले गए लम्बो के कटान बिंदु को त्रिभुज का लम्ब केंद्र कहते हैं।

रेखाखंड

दो बिन्दुओं के मध्य रेखा का वह निश्चित भाग जिसका मापन किया जा सके, रेखाखंड कहलाता है।

दूसरे शब्दों में, यदि एक सरल रेखा पर दो बिन्दु A व B हैं, तब इस रेखा के भाग AB को रेखाखण्ड कहते है तथा AB या BA द्वारा निरूपित करते हैं। A व B के बीच की दूरी को रेखाखण्ड AB की लम्बाई कहते हैं।

  • रेखाखंड के दो अंत: बिंदु होते हैं।
  • एक रेखाखण्ड को दोनों दिशा में अनिश्चित लम्बाई बढ़ाने पर एक रेखा बनती है।
  • रेखाखंड बिना चौड़ाई के साथ केवल लम्बाई रखती है।
  • रेखाखंडों के मिलने से कोण निर्मित होता है।
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प्रतिच्छेदी रेखा

प्रतिच्छेदी रेखा (Intersecting Line) : किसी एक तल (Plane) की दो भिन्न रेखाएँ, जिनमें एक बिंदु उभयनिष्ठ (Common) हो, प्रतिच्छेदी रेखाएँ कहलाती हैं; तथा उभयनिष्ठ बिंदु को प्रतिच्छेद बिंदु (Intersecting Point) कहते हैं।

समांतर रेखा

समान्तर रेखाएँ (Parallel Lines) : एक ही धरातल (Surface) में स्थित वे रेखाएँ, जिनके बीच की दूरी (Distance) हमेशा नियत (Constant) रहती है तथा आगे या पीछे बढ़ाये जाने पर एक-दूसरे से कहीं भी नहीं मिलती हैं, समान्तर रेखाएँ कहलाती हैं।

किरण

कोई एक ऐसी रेखा जिसके एक सिरे पर तीर का निशान हो, जो यह दिखाती है कि वह रेखा किसी एक दिशा में अनंत तक बढ़ सकती है तो ऐसी रेखा को हम किरण कहते हैं।

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वक्र रेखा

वक्र रेखा (Curved Line) : वह रेखा (Line), जो एक बिंदु (Point) से दूसरे बिंदु तक जाने में दिशा बदलती रहती है, वक्र रेखा कहलाती है।

बहुभुज

बहुभुज, सरल रेखाओं से बने और भुजाओं से घिरी 2-आयामी आकृति होती हैं। सरल रेखाओं से बनी, सभी बंद आकृति बहुभुज की श्रेणी में आते हैं। आपको नीचे दिए गए लेख को पढ़कर बहुभुज की परिभाषा, आकार, प्रकार, सूत्र और उदाहरणों के बारे में जानेंगे।

बहुभुज की परिभाषा

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बहुभुज के प्रकार

बहुभुज, मुख्य रूप से 2 प्रकार के होते हैं:

सम बहुभुज- वह बहुभुज, जिसमें समान भुजाएँ और समान कोण हों। आमतौर पर, परीक्षा में सम बहुभुज से प्रश्न पूछे जाते हैं।

विषम बहुभुज – जिसमें भुजा और कोण असमान हो।

नीचे दी गयी आकृति, सम और विषम बहुभुज को दर्शाती हैं:

बहुभुज के गुण

बहुभुज: यह तीन या तीन से अधिक सरल रेखाओं से घिरी बंद आकृति है।

सम बहुभुज: सभी भुजाएं समान होती हैं साथ ही सभी आंतरिक कोण भी समान होते हैं।

बहुभुज के आंतरिक कोणों का योग = (n – 2) × 180

n भुजाओं की संख्या

बाह्य कोणों का योग = 360

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कोण

कोण की परिभाषा के अनुसार दो किरणों या दो रेखाओं के मध्य का झुकाव , कोण कहलाता है |

सीधे शब्दों में कहा जाए तो जब किसी रेखाखण्ड का एक छोर किसी दूसरे रेखाखण्ड के एक छोर से मिलता है तो दोनों रेखाखण्डो के मध्य एक झुकाव उत्पन्न होता है , रेखाओं के मध्य इस झुकाव को ही कोण कहा जाता है |

इस लेख में हम कोण को θ से व्यक्त करेंगे |

कोण को ∠θ से निरुपित किया जाता है |

जिस बिंदु पर कोण का निर्माण होता है उसे हमेशा मध्य में रखा जाता है | उदाहरण के लिए –

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कोणों के प्रकार

इस लेख में हम कोणों के सभी प्रकारों का चित्र तथा उदाहरण सहित विस्तारपूर्वक अध्धयन करेंगे | कोण के प्रकारों का वर्णन परिभाषा सहित निम्न प्रकार है |

  1. न्यूनकोण ( Acute Angle )

न्यूनकोण की परिभाषा के अनुसार 0° अंश तथा 90° अंश के मध्य के कोण को न्यूनकोण कहते है |

अर्थात् 0° < θ < 90°

अत: 0° से बड़ा परन्तु 90° से छोटे कोण को न्यूनकोण कहते है |

उदहारण – 30° , 45° , 60° आदि |

समकोण

ज्यामिति में समकोण त्रिभुज की परिभाषा एक ऐसे त्रिभुज के रूप में की जाती है जिसका एक कोण 90 अंश का (अर्थात, समकोण) हो।

समकोण के सामने वाली भुजा कर्ण कहलाती है। इसकी भुजाओं की लम्बाई के बीच में एक विशेष सम्बन्ध होता है जिसे बौधायन प्रमेय द्वारा व्यक्त किया जाता है। इसे शब्दों में इस प्रकार व्यक्त करते हैं-

अधिककोण

अधिककोण की परिभाषा के अनुसार 90° अंश तथा 180° अंश के मध्य के कोण को अधिककोण कहते है |

90° < θ < 180°

अत: 90° से बड़ा परन्तु 180° से छोटा कोण अधिककोण कहलाता है |

त्रिभुज

तीन भुजाओं से बनी एक बन्द आकृति को त्रिभुज कहते हैं। त्रिभुज में तीन भुजाएँ, तीन कोण और तीन शीर्ष होते हैं। त्रिभुज सबसे कम भुजाओं वाला एक बहुभुज हैं। त्रिभुज के तीनों आन्तरिक कोणों का योग 180° होता हैं।

त्रिभुज की भुजाओं को A, B, और C के नामों से प्रदर्शित किया जाता हैं। तथा कोणों को A,

त्रिभुज का क्षेत्रफल = ½ × आधार × ऊँचाई

B, और C द्वारा प्रदर्शित किया जाता हैं।

चतुर्भुज

चार सरल रेखाओं से घिरी बन्द आकृति को चतुर्भुज (Quadrilateral) कहते हैं। यूक्लिडियन समतल ज्यामिति में, चतुर्भुज एक बहुभुज है जिसमें चार किनारे (या भुजा) और चार शीर्ष (या कोने) होते हैं।

चतुर्भुज सरल (स्वप्रतिच्छेदी नहीं) या जटिल (स्वप्रतिच्छेदी) होते हैं। सरल चतुर्भुज उत्तल या अवतल होते हैं।

एक साधारण (और समतलीय) चतुर्भुज ABCD के आंतरिक कोणों का योग 360° होता है, अर्थात-

भुजाएँ व शीर्षों की संख्या 4

सभी आंतरिक कोणों का योग 360°

A + B + C + D = 360°

चतुर्भुज के सूत्र

चतुर्भुज का क्षेत्रफल = ½ × विकर्णों का गुणनफल

चतुर्भुज के क्षेत्रफल = ½ × d(h + h)

वृत्त

वह घिरा हुआ तल जो एक निश्चित बिंदु से हमेशा समदूरस्थ होता हैं वृत्त कहलाता हैं। अर्थात किसी निश्चित बिंदु से समान दूरी पर स्थित बिंदुओं का बिन्दुपथ वृत्त कहलाता हैं। वृत्त के वक्र समतल आतंरिक एवं बाह्य को दो भागों में विभाजित किया जाता हैं।

वृत्त एक ऐसी बिंदु का बिंदुपथ हैं, जो इस तरह घूमता हैं कि उसकी दूरी एक स्थिर बिंदु से सदैव बराबर रहती हैं स्थिर बिंदु को वृत्त का केंद्र, अचल दूरी को वृत्त की त्रिज्या तथा बिंदु पथ को परिधि कहते हैं।

केंद्र से गुजरने वाली वह सीधी रेखा जो वृत्त को दो बराबर भागों में विभक्त करती हैं वृत्त का व्यास कहलाती हैं वृत्त का व्यास उसकी त्रिज्या का दोगुना होता हैं।

किसी वृत्त की परिधि की लम्बाई उसकी व्यास की लम्बाई की लगभग 22/7 गुना होती हैं इसे ग्रीक अक्षर π द्वारा प्रदर्शित किया जाता हैं अक्षर π को हिंदी में पाई पढ़ा जाता हैं।

जहाँ π = परिधि/व्यास = 22/7 = 3.1428571 होता हैं।

वृत्त के सूत्र

  • वृत्त का व्यास = 2r
  • वृत्त की परिधि = 2πr
  • वृत्त की परिधि = πd
  • वृत्त का क्षेत्रफल = πr²
  • वृत्त की त्रिज्या = √वृत्त का क्षेत्रफल/π
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वृत्त के भाग

एक वृत्त में पदों और उनके गुणों के आधार पर अलग-अलग भाग होते हैं चलिए नीचे दिए विभिन्न भागों को पढ़ते और समझते हैं।

  1. केंद्र किसे कहते हैं

वह बिंदु जो वृत्त के सभी बिंदुओं से समान दूरी पर स्थिर होता है।

अर्थात वह निश्चित बिंदु जो वृत्त के मध्य स्थिर होता है केंद्र कहलाता है।

  1. त्रिज्या किसे कहते हैं

वृत्त में केंद्र से परिधि तक की दूरी को त्रिज्या कहते है। वृत्त में असंख्य त्रिज्याएँ होती है। सभी की लम्बाई आपस में समान होती है।

  1. व्यास किसे कहते हैं

वृत्त की दो बराबर भागों में बांटने वाली रेखाखंड को व्यास कहते है।

अर्थात वृत्त में दो बिंदुओं के बीच की सबसे बड़ी दूरी व्यास कहलाती है। यह वृत्त की सबसे बड़ी जीवा भी होती है जो त्रिज्या की दोगुनी होती है।

4.अर्द्धवृत्त किसे कहते हैं

किसी वृत का अर्ध भाग अर्द्धवृत्त कहलाता हैं। इसके चाप के अन्तिम दोनों बिन्दुओं को केन्द्र से जोड़ने वाली रेखाएँ मिल कर एक ऋजु रेखा का निर्माण करती हैं।

अर्द्धवृत्त के कोण का मान सदैव 180° होता हैं। यही कोण की रेखा व्यास कहलाती है।

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