अध्याय-5

कक्षा 6 सामाजिक विज्ञान इतिहास अध्याय-5

राज्य, राजा और एक प्राचीन गणराज्य

शासक

3000 साल पहले राजा बनने की प्रकिया में कुछ बदलाव आए। अश्वमेघ यज्ञ आयोजित करके राजा के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। अश्वमेघ यज्ञ करने वाला राजा बहुत शक्तिशाली माना जाता था।  महायज्ञों को करने वाले राजा अब जन के राजा न होकर जनपदों के राजा माने जाने लगा। जनपद का शब्दिक अर्थ जन के बसने की जगह होता है। चाणक्य ने शासक बनने और सत्ता संभालने से संबंधित क्या नीतियां बताई हैं…

– चाणक्य कहते हैं कि जो शासक धर्म में आस्था रखता है, वही देश के जन मानस को सुख पहुंचा सकता है। सद्विचार और सद् आचरण को धर्म माना जाता है। जिसमें ये दो गुण हैं वही राजा बनने योग्य है।

– जो राजा प्रजा का पालन करने के लिए धन की समुचित व्यवस्था रखता है और राज्य संचालन के लिए यथोचित राज-कोष एकत्र रखता है, उसकी सुरक्षा को कभी भय नहीं हो रहता।

– एक योग्य राजा को सदैव अपने पड़ोसी राजा के हितों का ध्यान रखना चाहिए और हमेशा सावधान रहना चाहिए। क्योंकि प्राय ये देखा जाता है कि सीमा के निकट वाले राज्य किसी न किसी बात पर आपस में लड़ पड़ते हैं और एक दूसरे के शत्रु बन जाते हैं। जिससे दोनों ही राज्यों का नुकसान होता है।

– किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले तीन सवाल अपने आप से जरूर पूछें- मैं यह क्यूं कर रहा हूं. इसका परिणाम क्या होगा, क्या सफलता मिलेगी। अगर कोई भी राजा इन तीन सवालों को ध्यान में रखते हुए कोई भी कार्य करता है तो उसे सफलता जरूर मिलेगी। जो उसकी प्रजा के लिए भी अच्छा होगा।

– राजनीति यही है कि किसी को भी अपनी गुप्त बाते नहीं बताओं नहीं तो आप तबाह हो सकते हैं।

– हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि हर मित्रता में कोई न कोई स्वार्थ छिपा होता है।

– आचार्य चाणक्य कहते हैं कि कभी भी रिस्क लेने से नहीं डरना चाहिए। कई बार भविष्य में कुछ अच्छा करने के लिए वर्तमान में कुछ कड़े निर्णय लेने पड़ते हैं। यदि कोई व्यक्ति रिस्क लेने से डरेगा तो वह बिजनेस हो या फिर राजनीति में सफल नहीं हो सकेगा। चाणक्य नीति के मुताबिक सफलता पाने के लिए कुछ कड़े फैसले अवश्य लेने चाहिए।

अश्वमेघ यज्ञ

इस यज्ञ में रक घोड़े को राजा के लोगो की देखरेख में स्वतंत्र विचरण के लिए छोड़ दिया जाता था इस घोड़े को किसी दूसरे राजा ने रोका तो उसे वहाँ अश्वमेघ यज्ञ करने वाले राजा से युद्ध करना होगा अगर उसे जाने दिया तो अश्वमेघ यज्ञ वाला राजा अधिक शक्तिशाली है। यज्ञ पुरोहित द्वारा संपन्न होता था तथा विभिन राजा को आमंत्रित किया जाता था।

वर्ण :- पुरोहितों ने लोगों को चार वर्गों में विभाजित-

राज्य, राजा

उत्तर वैदिक ग्रन्थ

जो ग्रन्थ ऋगवेद के बाद रचे गए जैसे – सामवेद, यजुर्वेद, अथर्वेद, उपनिषद।

वर्ण वैदिक काल में समाज स्पष्ट रूप से  वर्णों में विभक्त था

  1. सामाजिक व्यवस्था
  2. उत्तर वैदिक कालीन अर्थव्यवस्था
  3. धार्मिक व्यवस्था
  • सामाजिक व्यवस्था
  • इस काल में ब्राह्मणों ने समाज में अपनी श्रेष्ठता स्थापित कर ली थी।
  • क्षत्रियों ने योद्धा वर्ग का प्रतिनिधित्व किया। इन्हें जनता का रक्षक माना गया। राजा का चुनाव इसी वर्ग से किया जाता था।
  • वैश्यों ने व्यापार, कृषि और विभिन्न दस्तकारी के धंधे ऋग्वैदिक काल से ही अपना लिए थे और उत्तर वैदिक काल में एक प्रमुख करदाता बन गए थे।
  • शूद्रों का काम तीनों उच्च वर्ग की सेवा करना था। इस वर्ग के सभी लोग श्रमिक थे।
  • उत्तर वैदिक काल में तीन उच्च वर्गों और शूद्रों के मध्य स्पष्ट विभाजन रेखा उपनयन संस्कार के रूप में देखने को मिलती है।
  • स्त्रियों को सामान्यतः निम्न दर्जा दिया जाने लगा।समाज में स्त्रियों को सम्मान प्राप्त था, परन्तु ऋग्वैदिक काल की अपेक्षा इसमें कुछ गिरावट आ गयी थी। लड़कियों को उच्च दी जाती थी।
  • पारिवारिक जीवन ऋग्वेद के समान था। समाज पित्रसत्तात्मक था, जिसका स्वामी पिता होता था। इस काल में स्त्रियों को पैत्रिक सम्बन्धी कुछ अधिकार भी प्राप्त थे।
  • उत्तर वैदिक काल में गोत्र व्यवस्था स्थापित हुई। गोत्र शब्द का अर्थ है- वह स्थान जहाँ समूचे कुल के गोधन को एक साथ रखा जाता था। परन्तु बाद में इस शब्द का अर्थ एक मूल पुरुष का वंशज हो गया।
  • उत्तर वैदिक काल में केवल तीन आश्रमों ब्रह्मचर्य, गृहस्थ तथा वानप्रस्थ की जानकारी मिलती है, चौथे आश्रम सन्यास की अभी स्पष्ट स्थापना नहीं हुई थी।
  • सर्वप्रथम चारों आश्रमों का उल्लेख जाबाली उपनिषद में मिलता है।
  • उत्तर वैदिक कालीन अर्थव्यवस्था
  • पशुपालन का महत्व कायम था। गाय और घोड़ा अभी भी आर्यों के लिए उपयोगी थे। वैदिक साहित्यों से पता चलता है की लोग देवताओं से पशु की वृद्धि के लिए प्रार्थना करते थे।
  • यव (गौ), व्रीहि (धान), माड़ (उड़द), गुदग (मूंग), गोधूम (गेंहू), मसूर आदि खाद्यान्नों का वर्णन यजुर्वेद में मिलता है।
  • उत्तर वैदिक काल में जीवन में स्थिरता आ जाने के बाद वाणिज्य एवं व्यापार का तीव्र गति से विकास हुआ।
  • इस काल के आर्य सामुद्रिक व्यापार से परिचित हो चुके थे।
  • शतपथ ब्राह्मण में वाणिज्य व्यापार और सूद पर रुपये देने वालों का उल्लेख मिलता है।
  • उत्तर वैदिक काल में मुद्रा का प्रचलन हो चुका था। परन्तु सामान्य लेन-देन में या व्यापार में वस्तु विनिमय का प्रयोग किया जाता था।
  • निष्क, शतमान, कृष्णल और पाद मुद्रा के प्रकार थे।
  • ऐतरेय ब्राह्मण में उल्लिखित ‘श्रेष्ठी’ तथा वाजसनेयी संहिता में उल्लिखित ‘गण या गणपति’ शब्द का प्रयोग संभवतः व्यापारिक संगठन के लिए किया गया है।
  • धार्मिक व्यवस्था
  • उत्तर वैदिक काल में धर्म का प्रमुख आधार यज्ञ बन गया, जबकि इसके पूर्वज ऋग्वैदिक काल में स्तुति और आराधना को महत्व दिया जाता था।
  • यज्ञ आदि कर्मकांडो का महत्त्व इस युग में बढ़ गया था। इसके साथ ही आनेकानेक मन्त्र विधियाँ एवं अनुष्ठान प्रचलित हुए।
  • उपनिषदों में स्पष्ट रूप से यज्ञों तथा कर्मकांडों की निंदा की गयी।
  • इस काल मेंऋग्वैदिक देवता इंद्र, अग्नि और वायु रूप महत्वहीन हो गए। इनका स्थान प्रजापति, विष्णु और रूद्र ने ले लिया।
  • प्रजापति को सर्वोच्च देवता कहा गया, जबकि परीक्षित को मृत्युलोक का देवता कहा गया।
  • उत्तर वैदिक काल में ही वासुदेव साम्प्रदाय एवं 6 दर्शनों – सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, पूर्व मीमांसा व उत्तर मीमांसा का अविर्भाव हुआ।

जनपद

जनपद का शब्दिक अर्थ जन के बसने की जगह होता है। महायज्ञों को करने वाले राजा अब जन के राजा न होकर जनपदों के राजा माने जाने लगे।  इन में लोग झोपड़ियों में रहते थे और मवेशी तथा जानवरो को पालते थे चावल, गेहू,धान, जो, दाल, तिल, सरसो उगते थे कुछ जनपद है। 

राज्य, राजा

महाजनपद

2500 साल पहले, कुछ जनपद अधिक महत्वपूर्ण हो गए। इन्हे महाजनपद कहा जाने लगा। अधिकतर महाजनपदों की एक राजधानी होती थी। कई राजधानियों में किलेबंदी की गई थी अर्थात इनके चारों ओर विशाल, ऊँची और प्रभावशाली दीवार खड़ी कर अपनी समृद्धि और शक्ति का प्रदर्शन भी करते थे इस तरह क्षेत्रों पर नियत्रंण रखना भी सरल हो गया।

कर

महाजनपदों के राजा विशाल किले बनवाते थे और बड़ी सेना रखते थे इसलिए अब नियमित रूप से कर वसूलने लगे। – अधकांश लोग कृषक ही हिस्सा थे प्राय: फसल का उपज का 1/6 कर लेते थे। –करीगरों के ऊपर भी कर लगाए गए श्रमिकों को राजा के लिए महीने में एक दिन काम करना पड़ता था।

पशुपालक :- जानवरों या उनके उत्पाद के रूप में कर देना पड़ता था।

व्यपारियों :- सामान खरीदने-बेचने पर भी कर देना पड़ता था।

आखेटकों :- जंगल से प्राप्त वस्तुएँ देनी होती थीं।

कृषि में परिवर्तन :- इस युग में कृषि के क्षेत्र में दो बड़े परिवर्तन आए-

  1. हल के फाल अब लोहे के बनने लगे जिससे अब कठोर जमीन को आसानी से जोता जा सकता था इससे फ़सलों की उपज बढ़ गई।
  2. लोगो ने धान के पौधों का रोपण शुरू किया जिससे अब पहले से की तुलना में बहुत पौधे जीवित रह जाते थे, इसलिए पैदावार भी ज़्यादा होने लगी। सूक्ष्म- निरीक्षण

मगध  

लगभग दो सौ सालों के भीतर मगध सबसे महत्वपूर्ण जनपद बन गया। गंगा और सोन जैसी नदियाँ मगध से होकर बहती थीं। मगध का एक हिस्सा जंगलो से भरा था। इन जंगलो में रहने वाले हाथियों को पकड़ कर उन्हें प्रशिक्षित कर सेना के काम में लगाया जाता था।

बिम्बिसार  मगध का शक्तिशली शासक था आजातशत्रु  राजगृह में स्तूप का निर्माण। करवाया।

एक और महत्वपूर्ण शासक थे। उन्होंने अपने नियंत्रण का क्षेत्र इस उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग तक फैला लिया था। बिहार में राजगृह (आधुनिक राजगीर) कई सालों तक मगध की राजधानी बनी रही और बाद में पाटलिपुत्र (आज का पटना) को राजधानी बनया गया

वज्जि : इसकी राजधानी वैशाली थी यह मगध के समीप था यहां शासन व्यवस्था गण/ संघ थी।  इन गण/ संघ में कई  शासक होते थे कभी कभी लोग एक साथ शासन करते थे वे सभी राजा होते थे।  

2300 साल पहले मेसीडोनिया का राजा सिकन्दर विश्व-विजय करना चाहता था। वह मिस्र और पश्चिमी एशिया के कुछ राज्यों को जीतता हुआ भरतीय उपमहाद्वीप में व्यास नदी के किनारे तक पहुँच गया। जब उसने मगध की और कूच करना चाहा, तो उसके सिपाहियों ने इंकार कर दिया। वे इस बात से भयभीत थे की भारत के शासकों के पास पैदल, रथ हाथियों की बहुत बड़ी सेना थी।

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