अध्याय-7

कक्षा 6 सामाजिक विज्ञान इतिहास अध्याय-7

अशोकः एक अनोखा सम्राट जिसने युद्ध का त्याग किया

राज्य साम्राज्य से भिन्न है, चूंकि साम्राज्य राज्यों से बड़े होते हैं और उनकी रक्षा के लिए बड़ी सेनाओं की ज़रूरत होती है, इसीलिए सम्राटों को राजाओं की तुलना में ज़्यादा संसाधनों की ज़रूरत होती है। इसी कारण उन्हें बड़ी संख्या में कर इकट्ठा करने वाले अधिकारियों की ज़रूरत होती है।

मौर्य साम्राज्य :-

मौर्य साम्राज्य की स्थापना चन्द्रगुप्त मौर्य ने 2300 साल पहले की थी। चाणक्य या कौटिल्य ने चन्द्रगुप्त की सहायता की इस साम्राज्य में तथा वह चन्द्रगुप्त के मंत्री भी थे चाणक्य ने अर्थशास्त्र की रचना की है। नगरों में व्यपारी ,सरकारी अधिकारी और शिल्पकार रहा करते थे।  गांव में किसान पशुपालक थे मध्य भारत के ज्यादातर इलाके जंगलो में संग्राहण और शिकार करके जीविका चलाते थे मैगास्थनीज एक राजदूत बनकर आया था जो यूनानी राजा सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था इन की प्रसिद्ध पुस्तक है  इंडिका मौर्य साम्राज्य के संस्थापक, चंद्रगुप्त मौर्य थे। जिन्होंने अपने राज्य को मजबूत करना शुरू कर दिया इसी काल मे सिकंदर महान की शक्ति कम होने लगी थी। सिकन्दर की मृत्यु 323 ईसा पूर्व में हो गई। जिसके बाद चंद्रगुप्त ने मौर्य साम्राज्य की शुरुआत किया।

अशोक

चंद्रगुप्त मौर्य ने मगध में एक बड़ी सेना को इकट्ठा किया और नंद शक्ति को उखाड़ फेंका। स्वयं को राजा बनाने के बाद, चंद्रगुप्त ने कई छोटे क्षेत्र को अपने राज्य मे मिला लिया। चंद्रगुप्त के मुख्यमंत्री कौटिल्य, जिन्हें चाणक्य भी कहा जाता था। उन्होंने चंद्रगुप्त को सलाह दी और साम्राज्य की विस्तार में योगदान दिया। एक राजनीतिज्ञ, रणनीतिकार, अर्थशास्त्र के ज्ञाता, होने के अलावा सरकार के बारे में एक ग्रंथ लिखने के लिए भी जाना जाता है। 

अर्थशास्त्र बताता है कि कैसे एक राज्य को अपनी अर्थव्यवस्था को व्यवस्थित करना चाहिए और सत्ता को बनाए रखना चाहिए।

साम्राज्य की राजधानी

  • पाटलिपुत्र 
  • तक्षिला उज्जैन 

प्रशासन –  साम्राज्य बड़ा होने के कारण अलग-अलग हिस्सों पर अलग-अलग ढंग से शासन किया जाता था मौर्य काल में राजधानी पाटलिपुत्र में स्थित थी। प्रशासन को सुचारू रूप से चलने के लिए साम्राज्य को चार प्रमुख भागों में बांटा गया था। पूर्वी क्षेत्र की राजधानी तौसाली थी। उत्तरी क्षेत्र की राजधानी तक्षशिला थी जबकि पश्चिमी उज्जैन में स्थित थी। दक्षिणी क्षेत्र की राजधानी सुवर्णगिरी थी। मौर्य प्रशासन की जानकारी का मुख्य स्त्रोत कौटल्य का अर्थशास्त्र और यूनानी लेखक मेगस्थनीज़ की इंडिका से मिलती है।

पाटलिपुत्र –

अशोक

बिहार की राजधानी पटना का पुराना नाम पाटलिपुत्र है। पवित्र गंगा नदी के दक्षिणी तट पर बसे इस शहर को लगभग 2000 वर्ष पूर्व पाटलिपुत्र के नाम से जाना जाता था। इसी नाम से अब पटना में एक रेलवे स्टेशन भी है। पाटलीपुत्र अथवा पाटलिपुत्र प्राचीन समय से ही भारत के प्रमुख नगरों में गिना जाता था। पाटलीपुत्र वर्तमान पटना का ही नाम था। इतिहास के अनुसार, सम्राट अजातशत्रु के उत्तराधिकारी उदयिन ने अपनी राजधानी को राजगृह से पाटलिपुत्र स्थानांतरित किया और बाद में चन्द्रगुप्त मौर्य ने यहां साम्राज्य स्थापित कर अपनी राजधानी बनाई। इसके आसपास के इलाकों पर सम्राट का सीधा नियंत्रण था इसका अर्थ हुआ गांव व शहरों के किसान, पशुपालक, शिल्पकार, व्यापारियों से कर इकट्ठा करने के लिए राजा अधिकारियों की नियुक्ति करता था 

तक्षशिला उज्जैन –  छोटे क्षेत्रों या प्रांतों पर इन स्थानों से नियंत्रण रखा जाता था तथा कुछ हद तक पाटलिपुत्र से इन पर नियंत्रण रखा जाता था तथा इन स्थानों पर राजकुमारों को राज्यपाल बनाकर भेजा जाता था तक्षशिला के विषय में किवदंती है कि तक्षशिला को ‘नागराज तक्षक’  ने बसाया था। तक्षक के विष देने या डसने पाण्डव राजा परीक्षित की मृत्यु हो गई थी। इसलिए परीक्षित के पुत्र जन्मेजय ने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए तक्षक पर आक्रमण किया। नागराज तक्षक को पराजित कर जनमेजय ने उसका राज्य और तक्षशिला को अपने राज्य में सम्मलित कर लिया और नागों का विशाल ‘यज्ञ’ किया। इससे यही प्रतीत होता है कि तक्षशिला अत्यंत प्राचीन नगर था।

अशोक

अन्य इलाकों में सिर्फ नदियों और मार्गों पर नियंत्रण रखा जाता था तथा वहां से उन्हें संसाधन भेंट के रूप में मिलते थे उदाहरण के लिए  उत्तर-पश्चिम से कंबल।, दक्षिण भारत से सोना कीमती पत्थर

अशोक सम्राट

सम्राट अशोक प्राचीन मौर्य वंश के तीसरे सबसे प्राचीन विश्व प्रसिद्ध और महान शक्तिशाली राजाओं में गिने जाते है, चक्रवर्ती सम्राट अशोक मौर्य का शासनकाल 269 ई. पू. से 232 ई. पू. तक रहा था, अशोक का पूरा नाम अशोक मौर्य था, अशोक ने शुरू से ही राज्य विस्तार की नीति बनाई, जिसके फलस्वरूप सम्राट अशोक अखंड भारत पर राज करने वाला एक मात्र राजा बना जिसने भारत के लगभग सभी महाद्वीपो हिंदुकुश से गोदावरी नदी, व बांग्लादेश, ईरान, और पश्चिम में अफगानिस्तान तक अपने राज्य का विस्तार किया और मौर्य वंश की नीव रखी थी

अशोक

कलिंग पर आक्रमण (कलिंग युद्ध) के पश्चात भयानक विनाश और खून खराबा देख कर सम्राट अशोक का ह्रदय परिवर्तन हुआ और बुद्ध की शिक्षा से प्रभावित होकर बौद्ध धर्म को अपनाया और बौद्ध धर्म के अनुयाई हो गए, सम्राट अशोक ने भारत और अन्य देशों (पश्चिम एशिया, मिस्र, यूनान श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान) में भी जोर शोर से बौद्ध धर्म का प्रचार करवाया।

अशोक मौर्य वंश के सबसे प्रसिद्ध शासक थे। वह ऐसे शासक थे जिन्होंने अभिलेखों द्वारा जनता तक अपने संदेश पहुँचाने की कोशिश की अशोक के ज़्यादातर अभिलेख प्राकृत भाषा और ब्रह्मी लिपि में हैं।

सम्राट अशोक का शासनकाल

सम्राट अशोक के पिता की मृत्यु 273 ईसा पूर्व में हुई उसके बाद सम्राट अशोक महान का राज्याभिषेक हुआ और 273 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व तक अशोक का शासनकाल रहा.

राज्याभिषेक

बिंदुसार की 16 पटरानियों और 101 पुत्रों का उल्लेख है। उनमें से सुसीम अशोक का सबसे बड़ा भाई था। तिष्य अशोक का सहोदर भाई और सबसे छोटा था। कहते हैं कि भाइयों के साथ गृहयुद्ध के बाद अशोक को राजगद्दी मिली थी। अशोक सीरिया के राजा ‘एण्टियोकस द्वितीय’ और कुछ अन्य यवन राजाओं का समसामयिक था जिनका उल्लेख ‘शिलालेख संख्या 8’ में है। इससे विदित होता है कि अशोक ने ईसा पूर्व 3री शताब्दी के उत्तरार्ध में राज्य किया, किंतु उसके राज्याभिषेक की सही तारीख़ का पता नहीं चलता है। अशोक ने 40 वर्ष राज्य किया इसलिए राज्याभिषेक के समय वह युवक ही रहा होगा।

सम्राट अशोक के शिलालेख

अशोक

सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाने के बाद भारत व विश्व में अलग-अलग स्थानों पर शिलालेखों का निर्माण करवाया, अशोक द्वारा 269 से 232 ईसा पूर्व तक के अपने शासनकाल में चट्टानों और पत्थर के स्तंभों पर कई नैतिक, धार्मिक और राजकीय शिक्षा देते हुए लेख खुदवाए गए थे, जिन्हें के शिलालेख कहते है, आधुनिक भारत के अलावा अशोक ने पाकिस्तान, नेपाल अफगानिस्तान और बांग्लादेश में भी शिलालेख(अभिलेख) गड़वाए थे.

अशोक स्तंभ और बौद्ध स्तूप

अशोक महान ने जहां-जहां भी अपना साम्राज्य स्थापित किया, वहां-वहां अशोक स्तंभ बनवाए। उनके हजारों स्तंभों को मध्यकाल के मुस्लिमों ने ध्वस्त कर दिया। इसके अलावा उन्होंने हजारों बौद्ध स्तूपों का निर्माण भी करवाया था। अपने धर्मलेखों के स्तंभ आदि पर अंकन के लिए उन्होंने ब्राह्मी और खरोष्ठी दो लिपियों का उपयोग किया था। कहते हैं कि उन्होंने तीन वर्ष के अंतर्गत 84,000 स्तूपों का निर्माण कराया था।

अशोक का कलिंग युद्ध

सम्राट अशोक ने राज्य अभिषेक के 8 वर्ष बाद अपने पिता की दिग्विजय की नीति को जारी रखा उस समय कलिंग का राज्य मगध साम्राज्य की संप्रभुता को चुनौती दे रहा था। अपने राज्य अभिषेक के आठवें वर्ष 261 ईसा पूर्व में अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया और उसे जीत लिया, सम्राट अशोक के तेरहवें शिलालेख के मुताबिक बताया गया कि कलिंग युद्ध में दोनों तरफ से करीब एक लाख लोगो की मौत हुई थी और बहुत सारे लोग इसमें घायल भी हुए थे.

  • उनके शासनकाल के साथ-साथ उनके जीवन में कई महत्वपूर्ण मोड़ आये , जब उन्होंने कलिंग के खिलाफ युद्ध छेड़ा, जिसे वर्तमान में ओडिशा पहले उड़ीसा कहा जाता था। अशोक ने कलिंग के युद्द में जित हासिल की। लेकिन यह युद्द अब तक का सबसे विनाशकारी और विनाशकारी युद्ध था जिसमें 100,000 – 150,000 लोग मारे गए थे। उनमें से 10,000 अशोक के आदमी थे।
  • युद्ध के प्रकोप और नतीजे ने अधिक लोगों के जीवन को खतरे में डाल दिया। अशोक अपनी जीत के बाद भी इस स्तर के विनाश की थाह नहीं ले सका। वह इस सबका एक व्यक्तिगत गवाह था और जैसे-जैसे दिन बीतते गए उसकी पछतावे की भावना बढ़ती गई। इस अथाह काल के दौरान अशोक ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया।  
  • कलिंग तटवर्ती उड़ीसा का प्राचीन नाम है। अशोक ने कलिंग को जीतने के लिए एक युद्ध लड़ा। लेकिन युद्धजनित हिंसा और खून-खराबा देखकर उन्हें युद्ध से वितृष्णा हो गई। उन्होंने निर्णय किया कि वे भविष्य में कभी युद्ध नहीं करेंगे।

अशोक का धर्म क्या था

सम्राट अशोक पहले ब्राह्मण धर्म का अनुयाई था कल्हण की राजतरंगिणी के अनुसार वह शैव धर्म का उपासक था, कलिंग युद्ध में हुए भीषण नरसंहार को देखकर सम्राट अशोक का हृदय परिवर्तन हुआ और उसने बौद्ध धर्म अपना लिया, बौद्ध धर्म को अपनाने के बाद सम्राट अशोक ने अपने राज्य में लोगों को जीव और मानव के प्रति दया भाव रखने का संदेश दिया। मौर्य सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र और अपनी पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए श्रीलंका भेजा.

अशोक के धम्म में किसी देवता की पूजा अथवा किसी कर्मकांड की आवश्यकता नहीं थी उन्हें लगता था कि जैसे पिता अपने बच्चों को अच्छे व्यवहार की शिक्षा देते है वैसे ही यह उनका कर्तव्य था की अपनी प्रजा को निर्देश दें। वे बुध के उपदेशों से भी प्रेरित हुए थे। अशोक ने धम्म के विचरों को प्रसारित करने के लिए सीरिया, मिस्र , ग्रीस तथा श्रीलंका में भी दूत भेजे।

  • अशोक एक महान धार्मिक सहिष्णु शासक था और वह बौद्ध धर्म का अनुयायी था। वह पूरी तरह से पशु हत्या के खिलाफ थे और उन्होंने हमेशा लोगों को जीवन का ज्ञान दिया और उन्हें जीने दिया।
  • सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए श्रीलंका, नेपाल, सीरिया, अफगानिस्तान आदि में अपने दूत यानि प्रचारक भी भेजे थे। उन्होंने अपने बेटे और बेटी को भी इन देशों की यात्रा पर भेजा, ताकि वे बौद्ध धर्म का प्रचार कर सकें और इन देशों में लोगों को धार्मिक बना सकें।
  • उनके सबसे बड़े पुत्र महेंद्र को बौद्ध धर्म के प्रचार में सबसे अधिक सफलता मिली। उन्होंने श्रीलंका राज्य के राजा तिस्सा को बौद्ध धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया। उसके बाद राजा तिस्सा ने बौद्ध धर्म को राजधर्म में परिवर्तित कर दिया। अशोक से प्रेरित होकर तीस ने स्वयं को दी ‘देवनामप्रिया’ की उपाधि दी।

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