अध्याय-5

कक्षा 8 विज्ञान रसायन विज्ञान अध्याय-5

कोयला और पेट्रोलियम

प्राकृतिक गैस:-(जिसे जीवाश्म गैस भी कहा जाता है। प्राकृतिक गैस का निर्माण तब होता है जब लाखों वर्षों में पृथ्वी की सतह के नीचे पौधों और जानवरों के पदार्थ की परतें तीव्र गर्मी और दबाव के संपर्क में आती हैं। पौधों को मूल रूप से सूर्य से जो ऊर्जा प्राप्त होती है, वह गैस में रासायनिक बंधों के रूप में संग्रहित होती है। प्राकृतिक गैस एक जीवाश्म ईंधन है प्राकृतिक गैस कई गैसों का मिश्रण है जिसमें मुख्यतः मिथेन होती है तथा 0 – 20% तक अन्य उच्च हाइड्रोकार्बन जैसे इथेन गैसें होती हैं। प्राकृतिक गैस ईंधन का प्रमुख स्रोत है। यह अन्य जीवाश्म ईंधनों के साथ पायी जाती है। यह हजारों करोड़ों साल पहले धरती के अन्दर जमें हुये मरे हुये जीवो के सडे गले पदार्थ से बनती है। यह गैसीय अवस्था मे पाई जाती है। सामान्यत यह मेथेन, एथेन, प्रोपेन, ब्युटेन, पेन्टेन का मिश्रण है, जिसमे मिथेन 80 – 90% तक होती है

  • प्राकृतिक गैस का उपयोग:-
  1. खाद के निर्माण में।
  2. विद्युत को बनाने में।
  3. नगरीय गैस के वितरण में।
  4. घरेलु गैस के उपयोग में।
  5. वाहनों के ईंधन के रूप में।
  6. कारखानों में ईंधन के रूप में।
कोयला और पेट्रोलियम

प्राकृतिक संसाधन:- प्राकृतिक संसाधन वे संसाधन हैं जो मानव जाति के कार्यों के बिना मौजूद हैं। ये संसाधन प्रकृति में असीमित मात्रा में उपस्थित है। मानवीय क्रियाकलापों से समाप्त होने वाला नही हैं। वे संसाधन हैं जो प्रकृति से लिए गए हैं और कुछ संशोधनों के साथ उपयोग किए जाते हैं। इसमें वाणिज्यिक और औद्योगिक उपयोग, सौंदर्य मूल्य, वैज्ञानिक रुचि और सांस्कृतिक मूल्य जैसी मूल्यवान विशेषताओं के स्रोत शामिल हैं। पृथ्वी पर, इसमें सौर प्रकाश, वायुमंडल, जल, भूमि, सभी खनिज के साथ – साथ सभी वनस्पति और पशु जीवन अंतर्गत हैं। 

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  • समाप्त होने वाले प्राकृतिक संसाधन:- जीवाश्म ईंधन समाप्त होने वाले प्राकृतिक संसाधन हैं क्योंकि एक बार इसका उपयोग करने के पश्चात इसे दोबारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है। ये मृत जीवों से बनते हैं और मृत जीवों को ईंधन में परिवर्तित होने में लाखों वर्षों का समय लगता हैं।

वे संसाधन जो हमें प्रकृति से मिलते हैं उन्हें हम प्राकृतिक संसाधन कहते हैं। प्राकृतिक संसाधन मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं।

  1. अक्षय प्राकृतिक संसाधन:– यह प्राकृतिक संसाधन  असीमित मात्रा में है और कभी खत्म नहीं होंगे। उदाहरण, सूर्य का प्रकाश, वायु।
  2. समाप्त होने वाले प्राकृतिक संसाधन:– यह प्राकृतिक संसाधन निरंतर प्रयोग से खत्म हो जाएंगे। उदाहरण, कोयला, पेट्रोलियम, खनिज लवण, प्राकृतिक गैस।
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जीवाश्म ईंधन:- इनका निर्माण सजीव प्राणियों के मृत अवशेषों (जीवाश्मों) से होता है जिन्हें जीवाश्म ईंधन कहते हैं। एक प्रकार का कई वर्षों पहले बना प्राकृतिक ईंधन है।  इसमें मृत जीव जंतुओं तथा वृक्षों की संरचनाएं शामिल होती हैं यह लगभग 65 करोड़ वर्ष पूर्व जीवों के जल कर उच्च दाब और ताप में दबने से हुई है। यह ईंधन पेट्रोल, डीजल, घासलेट आदि के रूप में होता है। इसका उपयोग वाहन चलाने, खाना पकाने, रोशनी करने आदि में किया जाता है।

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 कोयला:- लगभग 300 मिलियन वर्ष पूर्व पृथ्वी पर निचले जलीय क्षेत्रों में घने वन थे। बाढ़ जैसे प्राकृतिक प्रक्रमों के कारण, ये वन मृदा के नीचे दब गए। उनके ऊपर अधिक मृदा जम जाने के कारण वे संपीडित हो गए। जैसे – जैसे ये गहरे होते गए उनका ताप भी बढ़ता गया। आज से लाखों करोड़ों साल पहले पृथ्वी पर एक उल्का गिरने से सभी जीव जंतु और पेड़ पौधे खत्म हो गए। समय बीतने के साथ वह नीचे दबते चले गए। अधिक दबाव होने की वजह से सारे पेड़ पौधे कोयले में परिवर्तित हो गए। पेड़ पौधों से कोयले में परिवर्तन होने की प्रक्रिया को कार्बनीकरण कहते हैं।

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  • कोयला:- उच्च दाब और उच्च ताप पर पृथ्वी के भीतर मृत पेड़ – पौधे धीरे – धीरे कोयले में परिवर्तित हो गए। कोयले में मुख्य रूप से कार्बन होता है। मृत वनस्पति के, धीमे प्रक्रम द्वारा कोयले में परिवर्तन को कार्बनीकरण कहते हैं। यह वनस्पति के अवशेषों से बना है अतः कोयले को जीवाश्म ईंधन भी कहते है।

कोक:- यह एक कठोर, सरंध्र और काला पदार्थ है। यह कार्बन का लगभग शुद्ध रूप है। कोक बहुत से धातुओं के निष्कर्षण में किया जाता है। कोक कोयले से तैयार किया जानेवाला ठोस ईंधन। यह कम राख वाले, कम सल्फरयुक्त, बिटुमिनस कोयले के प्रभंजक आसवन से प्राप्त होता है। सब प्रकार के कोयले कोक के लिये उपयुक्त नहीं होते। जो कोयला गरम करने से कोमल हो जाए और फिर न्यूनाधिक ठोस पिंड में बदल जाए उसे कोक बननेवाला कोयला कहा जाता है। कोक का उपयोग ईंधन के रूप में और ब्लास्ट फर्नेस में लौह अयस्क को गलाने में कम करने वाले एजेंट के रूप में किया जाता है। इसके दहन से उत्पन्न कार्बन इऑक्साइड लोहे के उत्पाद के उत्पादन में आयरन ऑक्साइड (हेमेटाइट) को कम करता है। कोक का उपयोग आमतौर पर लोहार बनाने के लिए ईंधन के रूप में किया जाता है।

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कोलतार:-  अलकतरा, डांबर या कोलतार काले या भूरे रंग का अत्यन्त गाढ़ा द्रव है। जब कोक या कोयला गैस बनाने के लिये कोयले का कार्बनीकरण करते हैं तो एक सहुत्पाद (बाई – प्रोडक्ट) के रूप में कोलतार प्राप्त होता है। यह एक अप्रिय गंध वाला काला गाढ़ा द्रव होता है। यह गाढ़ा काला तरल है जिसकी अप्रिय गंध है। यह लगभग 200 पदार्थों का मिश्रण है। यह पदार्थ दैनिक जीवन में उपयोग आने वाली वस्तुएँ जैसे, पेंट, रंग, प्लास्टिक, चित्र, सुगंध, विस्फोटक, दवाइयाँ आदि के निर्माण का प्रारंभिक पदार्थ है। कोलतार सड़क निर्माण में भी उपयोगी है। कोलतार का सड़क निर्माण, हवाई क्षेत्र रनवे की सतह बनाना और टैक्सी की पटरियां, ऐसे नहर लायनिंग, नदी के किनारे का संरक्षक, बांध निर्माण और समुद्र डीफेंसेस, जैसे हाइड्रोलिक अनुप्रयोगों के लिए प्रयोग किया जाता है। 

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कोयला गैस:- कोयले के प्रक्रमण द्वारा कोक बनाते समय कोयला – गैस प्राप्त होती है। प्रदीपक गैसों में पहली गैस “कोयला गैस” थी। कोयला गैस कोयले के भंजक आसवन या कार्बनीकरण से प्राप्त होती है। एक समय कोक बनाने में उपजात के रूप में यह प्राप्त होती थी। पीछे केवल गैस की प्राप्ति के लिये ही कोयले का कार्बनीकरण होता है। आज भी केवल गैस की प्राप्ति के लिये कोयले का कार्बनीकरण होता है। बहुत से उद्योगों में ईंधन के रूप में उपयोग की जाती हैं

पेट्रोलियम:- ये ईंधन प्राकृतिक स्त्रोत से प्राप्त होते हैं जिसे पेट्रोलियम कहते है। पेट्रोलियम शब्द की उत्पत्ति पेट्रा एवं ओलियम से हुई है। पेट्रोल का उपयोग हल्के स्वचालित वाहनों जैसे- मोटरसाइकिल, स्कूटर, और कारों में होता है। 

  • पेट्रोलियम का निर्माण:- समुद्र में रहने वाले जीवों से हुआ। जब ये जीव मृत हुए, इनके शरीर समुद्र के पेंदे में जाकर जम गए और फिर रेत तथा मिट्टी की तहों द्वारा ढक गए। लाखों वर्षों में, वायु की अनुपस्थिति, उच्च ताप और उच्च दाब ने मृत जीवों को पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस में परिवर्तित कर दिया। पेट्रोलियम धरातल के नीचे स्थित अवसादी परतों के बीच पाया जाने वाला संतृप्त हाइड्रोकार्बनों का काले भूरे रंग का तैलीय द्रव है, जिसका प्रयोग वर्तमान में ईंधन के रूप में किया जाता है| पेट्रोलियम को ‘जीवाश्म ईंधन भी कहते हैं क्योंकि इनका निर्माण धरातल के नीचे उच्च ताप व दाब की परिस्थितियों में मृत जीव – जंतुओं व वनस्पतियों के जीवाश्मों के रासायनिक रूपान्तरण से होती है| पेट्रोलियम शब्द का निर्माण ‘पेट्रो अर्थात ‘चट्टान और ओलियम’अर्थात ‘तेल  से मिलकर हुआ है, इसीलिए इसे ‘चट्टानी तेल’या ‘रॉक ऑयल भी कहा जाता है| वर्तमान विश्व में इसे, इसके ऊर्जा के स्रोत के रूप में महत्व के कारण, ‘काला सोना भी कहा जाता है 
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  • पेट्रोलियम का परिष्करण:- पेट्रोलियम गहरे रंग के तेलीय द्रव है। इसमें विभिन्न संघटकों जैसे, पेट्रोलियम गैस, पेट्रोल, डीजल, स्नेहक तेल, पैराफिन मोम आदि का मिश्रण होता है। पेट्रोलियम का शोधन प्रभाजी आसवन द्वारा किया जाता है। इस प्रक्रिया में, विभिन्न क्वथनांकों पर पेट्रोलियम का पृथक्करण तेल को अम्ल या क्षार विलयन के साथ धोकर किया जाता है, यह प्रक्रिया अशुद्धियों की अम्लीय या क्षारीय प्रकृति पर निर्भर करता है। पेट्रोलियम के विभिन्न संघटकों को पृथक करने का प्रक्रम परिष्करण कहलाता है।

भारत में पेट्रोलियम संरक्षण अनुसंधान संघ:- भारत सरकार के पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तत्वावधान में स्थापित एक पंजीकृत संस्था है। 1978 में एक गैर लाभकारी संगठन के तौर पर पीसीआरए का गठन, भारत में अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता को प्रोत्साहन देने के लिए किया गया था। यह तेल की आवश्यकता पर देश की अत्याधिक निर्भरता को कम करने के लिए पेट्रोलियम संरक्षण नीति और रणनीति प्रस्तावित करने में सरकार की सहायता करता है, जिनका मुख्य उद्देशय न सिर्फ धन के अपव्यय को रोकना है अपितु तेल के बेजा इस्तेमाल से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को भी कम करना है। पिछले कुछ वर्षों में पीसीआरए ने पर्यावरण सुरक्षा और स्थायी विकास अर्जित करने के प्रयोजन हेतु ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों के उपयोग में उत्पादकता सुधारने में अपनी भूमिका का विस्तार किया है।

  1. जहाँ तक संम्भव हो गाड़ी समान और मध्यम गति से चलाइए।
  2. यातयात लाइटों पर अथवा जहाँ आपको प्रतीक्षा करनी हो, गाड़ी का इंजन बंद कर दीजिए।
  3. टायरों का दाब और गाड़ी को नियमित रख – रखाव सुनिश्चित कीजिए।
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